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15 माह से उपभोक्ता सरंक्षण फोरम का काम ठप

अनदेखी. उपभोक्ता हितों की हो रही उपेक्षा, कैसे जागेंगे लोग!, विभाग में कर्मचारियों की कमी नवादा कार्यालय : आजाद भारत में उपभोक्ता के हितों को ध्यान में रखते हुए 24 दिसंबर 1986 को उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम को पारित किया गया. समय के साथ सन 1991, 1993 व 2002 में ग्राहकों के फायदे को लेकर संसद […]

अनदेखी. उपभोक्ता हितों की हो रही उपेक्षा, कैसे जागेंगे लोग!, विभाग में कर्मचारियों की कमी

नवादा कार्यालय : आजाद भारत में उपभोक्ता के हितों को ध्यान में रखते हुए 24 दिसंबर 1986 को उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम को पारित किया गया. समय के साथ सन 1991, 1993 व 2002 में ग्राहकों के फायदे को लेकर संसद में इस विधेयक में संशोधन किया गया. बाजारवाद के दौर में बड़ी कंपनियों व पूंजीपतियों के गोलबंदी से ग्राहकों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. ऐसे में सरकार ने उपभोक्ता को समस्याओं से निदान दिलाने को लेकर कानून बनाये. दीवानी अदालतों से हट कर जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर क्रमशः जिला मंच, राज्य व राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गयी.
जिला मुख्यालय में भी न्यायालय सह कार्यालय उपभोक्ता सरंक्षण फोरम की स्थापना सन 1989 में हुई. जिला मंच में ग्राहक 20 लाख की क्षति, राज्य आयोग में 20 लाख से एक करोड़ और राष्ट्रीय आयोग में एक करोड़ से अधिक के पारितोष का परिवाद ला सकते हैं. ग्राहक निःशुल्क अपनी समस्याओं के निराकरण को इन मंचों में लाकर क्षति पा सकते हैं. लेकिन ग्राहक के हितों की रक्षा करनेवाला न्यायालय ही सदस्यों व कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा हैं. ऐसे में जिला के ग्राहक जागने के बावजूद कंपनियों, दुकानदारों, सेवा प्रदाताओं के विरुद्ध पारितोष का दावा करने से हिचकिचा रहे हैं. उपभोक्ता हितों की पड़ताल करती प्रभात खबर की रिपोर्ट..
फाइलों पर जम रही धूल की परत
समाहरणालय स्थित उपभोक्ता सरंक्षण फोरम में विगत 15 महीनों से काम ठप हैं. पिछले साल के एक सितंबर से फोरम के अध्यक्ष का पद रिक्त है, जबकि फोरम की महिला सदस्य का कार्यकाल भी उसी वर्ष छह सितंबर को पूरा हो चुका था. तब से यह पद भी रिक्त पड़ा है. ज्यूरी के तीन सदस्यों में से दो पद रिक्त होने से वादों का निस्तारण बंद हैं.
10 कर्मचारियों की जगह मात्र एक नियमित, एक प्रतिनियुक्त व एक सेवा विस्तार की प्रत्याशा में कार्य कर रहे मात्र तीन कर्मचारी हैं. बड़ी संख्या में परिवाद लंबित पड़े हैं. लेकिन सरकार इन मामलों से बेखबर ग्राहक के हितों की अनदेखी कर रही हैं. ऐसे में जिले के उपभोक्ता शोषण का शिकार हो रहे हैं. जागो, ग्राहक, जागो का नारा देने वाला उपभोक्ता मंच खुद अपने कर्मचारियों की कमी से ऊंघ रहा हैं. लंबे समय से परिवादों का निबटारा नहीं होने से फाइलों पर धूल जम चुकी हैं.
ज्यूरी में एक सदस्य और मात्र तीन कर्मचारी कार्यरत
उपभोक्ता संरक्षण फोरम कार्यालय में धूल पड़ी फाइल.
एक साल में एक तारीख, हो रही परेशानी
स्टेशन रोड स्थित मोबाइल दुकान से रिलायंस जियो की लाइफ मोबाइल का सेट खरीदा था. लगातार कई दिन टहलाने के बाद 22 वें दिन सिम चालू किया गया. इससे काफी परेशानी हुई. मामले को उपभोक्ता फोरम में दर्ज कराया, लेकिन फोरम में काम नहीं होने से मामला लंबित पड़ा हुआ हैं. ऐसे में उपभोक्ता कहां जाये.
संतोष कुमार, गांधी नगर, नवादा
शहर के एक प्रतिष्ठित इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान से एलसीडी टेलीविजन खरीदा था. कुछ ही महीने में स्क्रीन फ्रैक्चर हो गया. लेकिन दुकानदार द्वारा कोई बदलाव नहीं किया गया. उपभोक्ता फोरम में मामला पिछले एक साल से लंबित हैं. मात्र एक तारीख पड़ी हैं. शारीरिक व मानसिक रूप से परेशानी उठानी पड़ रही हैं.
श्यामदेव सिंह, कुंभी, वारिसलीगंज
अपने ही क्षेत्र के एक मोबाइल दुकान में माइक्रोमैक्स का एक मोबाइल फोन खरीदा था. इसमें गड़बड़ी के कारण फोटो सही नहीं आ रहा था. पिछले साल उपभोक्ता फोरम में केस दर्ज कराया. नोटिस के बाद दुकानदार हरकत में आया. लंबे समय के बाद पिछले महीने राष्ट्रीय लोक अदालत में दुकानदार ने नया मोबाइल देकर समझौता कर लिया. फोरम में वादों के निबटारा में देर से काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा हैं.
सुनील शर्मा, आंती, कादिरगंज

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