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रोकें … सूर्य घाट में पानी की कमी, आनेवाले खतरे का है संकेत

रोकें … सूर्य घाट में पानी की कमी, आनेवाले खतरे का है संकेत जिला में जल संचय के साधन हो रहे विलुप्त जल संरक्षण की है आवश्यकताजल के स्थायी श्रोत हो रहे समाप्तकुआं, आहर, तालाब का मिट रहा अस्तित्व फोटो- 7नवादा, नगरसूर्य धाम घाट पर पानी की कमी आनेवाले दिनों में जल संकट की भयावहता […]

रोकें … सूर्य घाट में पानी की कमी, आनेवाले खतरे का है संकेत जिला में जल संचय के साधन हो रहे विलुप्त जल संरक्षण की है आवश्यकताजल के स्थायी श्रोत हो रहे समाप्तकुआं, आहर, तालाब का मिट रहा अस्तित्व फोटो- 7नवादा, नगरसूर्य धाम घाट पर पानी की कमी आनेवाले दिनों में जल संकट की भयावहता को दर्शाता है. स्थानीय किसानों व अधिकारियों की मदद से भले ही सूर्य घाट के पास पानी का इंतजाम हो गया है. लेकिन यदि यह संभव नहीं हो पाता तो निश्चित ही छठ पर्व में अर्घ्य की परंपरा निभाने के लिए लोगों को कई प्रकार के परेशानियों का सामना उठाना पड़ता. जिस प्रकार से हम लोग पानी को बर्बाद कर रहे है और इसके संचय के श्रोतों को समाप्त करते जा रहे है. आने वाले कुछ ही सालों में इसके दुष्परिणाम नगर वासियों को देखने को मिलने लगेगा. जल को संचय करने में नदी, आहर, तालाब, कुआं, पोखर आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. लेकिन आधुनिकता के दौर में इन श्रोतों को हम खुद ही मिटाते जा रहे है. नगर में कभी सैकड़ों कुआं हुआ करता था. जो जल संचय में अहम भूमिका निभाता था. आज नगर में गिने-चुने स्थानों पर ही कुआं देखने को मिलता है. इसके अलावे नगर की धड़कन कहे जानेवाली खुरी नदी अतिक्रमण की शिकार है.धार्मिक अनुष्ठान पूरा करने के लिए भी नहीं मिलता है कुआं हिंदू धर्म में जल श्रोतों को संचय करने की परंपरा रही है. कुआं का उपयोग हमारे कई अनुष्ठानों को पूरा करने में किया जाता है. जन्म से लेकर मृत्यु तक होनेवाले पूजा-पाठों में कुआं का विशेष महत्व रहा है. जन्म के समय छठी पूजन, शादी के समय दलधोई, मृत्यु के उपरांत बरखी जैसे कई मौको पर कुआं का उपयोग होता है. छठ पर्व के समय कुआं के जल से ही प्रसाद बनाने का काम किया जाता था. लेकिन नये दौर में कुआं समाप्त होते जा रहे है. नगर में अब गिने-चुने मंदिरों में ही कुआं का अस्तित्व बचा है. अधिकतर कुआं को भरकर अतिक्रमण कर लिया गया है. वहीं घरों में पानी के श्रोत के रूप में मोटर व चापाकल लग गये है. कुआं के समाप्त होने के साथ ही जल संचय करने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो रही है. इसी का असर है कि गर्मी के दिनों में वाटर लेयर शहरी क्षेत्रों में 15 से 20 फीट नीचे चला जाता है जो बहुत बड़े जल संकट की ओर इशारा कर रहा है. खुरी नदी अतिक्रमण की हुई शिकारनगर के बीचोबीच से गुजरने वाले खुरी नदी को लोग अंधाधुंध तरीके से अतिक्रमण करते हुए इसे संकुचित करते जा रहे है. खुरी नदी में अब साल में कुछ दिन ही पानी की धार देखने को मिलती है. वह भी गंदगी के अंबार के कारण जगह-जगह जल जमाव का कारण बनता है. नदी के दोनों किनारों पर जबरदस्त तरीके से अतिक्रमण किया जा रहा है. मिर्जापुर सूर्य घाट से लेकर मोती बिगहा सूर्य मंदिर घाट तक अतिक्रमण का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है. शहरी क्षेत्र में खुरी नदी एक बड़े नाले के रूप में बदला हुआ दिखाई देता है. नदी के इस अतिक्रमण के कारण जल संचय का यह श्रोत भी अब समाप्ति के कगार पर है. नदी से अंधाधुंध निकाले जा रहे बालू के कारण भी नदी के प्रकृति में असर पड़ रहा है. जल संचय की आदत हुई समाप्तपहले के समय में जितने पानी की आवश्यकता होती थी उतनी पानी ही कुआं व अन्य जल श्रोतों से निकाला जाता था. लेकिन आधुनिकता के दौर में मोटर व चापाकल के द्वारा पानी निकाल कर बेवजह खर्च करने की आदत बढ़ी है. मोटर चलाने से टंकी भरने के बाद भी कई घरों में पानी बहता रहता है. वही पानी भी बेवजह खर्च करने की आदत बढ़ी है. एक ओर जहां हमलोग पानी को संचय करनेवाले श्रोतों को समाप्त करते जा रहे है वही उपलब्ध पानी को भी बेहिसाब खर्च कर रहे है. पानी की कमी का एहसास छठ पर्व पर देखने को मिल रहा है. सूर्य घाट धाम तक पानी पहुंचाने में हुई दिक्कत आनेवाले दिनों में और बढ़ने की संभावना है. यदि अभी से नहीं चेते तो भविष्य में जल संकट की समस्या और भयंकर रूप लेगी.

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