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शहर में सिमट रही खुरी नदी

शहर में सिमट रही खुरी नदी हर तरफ हो रहा अतिक्रमण मिर्जापुर से लेकर मोती बिगहा तक नदी कब्जाने की मची होड़अतिक्रमण कर पांच-पांच लाख रुपये में मौखिक बेची जा रही जमीनफोटो-7,8प्रतिनिधि, नवादा कार्यालयनवादा शहर से होकर गुजर रही और जिले के सैकड़ों गांवों में सिंचाई का मुख्य साधन मानी जाने वाली खुरी नदी का […]

शहर में सिमट रही खुरी नदी हर तरफ हो रहा अतिक्रमण मिर्जापुर से लेकर मोती बिगहा तक नदी कब्जाने की मची होड़अतिक्रमण कर पांच-पांच लाख रुपये में मौखिक बेची जा रही जमीनफोटो-7,8प्रतिनिधि, नवादा कार्यालयनवादा शहर से होकर गुजर रही और जिले के सैकड़ों गांवों में सिंचाई का मुख्य साधन मानी जाने वाली खुरी नदी का पाट दिन-प्रतिदिन सिकुड़ता जा रहा है. नवादा के मिर्जापुर से शहर में प्रवेश करनेवाली खुरी नदी का अतिक्रमण मोती बिगहा तक काफी तेजी से हो रहा है. अतिक्रमणकारियों द्वारा नदी को हड़प कर मकान बनाने व दूसरे के हाथों बेच कर पैसे कमाने की होड़ मची है. शहर के मिर्जापुर, गढ़पर, न्यूएरिया, मंगर बिगहा, गोपाल नगर, मोती बिगहा व दूसरे छोर से तकिया पर, पार नवादा-गया रोड, बड़ी दरगाह, गोंदापुर, बुधौल, लोहानी बिगहा में नदी के दोनों पाटों पर कब्जा कर धड़ल्ले से मकान का निर्माण किया जा रहा है.प्रशासन की अनदेखी का परिणामनदी का अतिक्रमण प्रशासन की अनदेखी का परिणाम है़ कभी तीन सौ फुट से अधिक चौड़ी खुरी नदी अब 20 फुट के नाले में बदल गयी है. कभी खेतों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने वाली खुरी नदी अब घरों से निकल रही नालियों की पानी बहाने का काम कर रही है. प्रशासन की ओर से पिछले 25 वर्षों के दौरान नदी अतिक्रमण के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. बरसात में मचती है तबाहीशहर के बीच से गुजरी खुरी नदी बरसात के दिनों में तबाही मचाती है, तो लोगों में हाय तौबा मच जाती है. तीन सौ फुट चौड़ी खुरी नदी के पार्ट को 20 से 25 फुट तक सिमटा दिये जाने का परिणाम है कि बरसात में पानी का जलस्तर तेज होने के कारण नदी अपने पुरानी अवतार में आती है़ इसके कारण अतिक्रमण कर बनाये गये मकानों में रहनेवाले लोगों के बीच हड़कंप मच जाता है. वर्ष 2013 व 2014 में भी इसी तरह की बाढ़ आने से कई घरों के लोग अपने घरों को छोड़ कर दूसरे जगह शरण ले रखे थे. नदी में बने घरों के ध्वस्त होने की आशंका से लोग काफी भयभीत थे.ऐसे हो रहा नदी का अतिक्रमणखुरी नदी का में कब्जा करने के लिए अतिक्रमणकारी तरह-तरह के उपाय निकालते हैं. नदी में कूड़ा-कचरा फेंक कर पहले तो वहां मवेशी बांधते हैं और मवेशी को सुरक्षित करने के नाम पर झुग्गी-झोपड़ी डालते हैं. इन झुग्गी-झोपड़ी के भीतर ही भीतर पिलर व दीवार का निर्माण भी कर दिया जाता है. प्रशासन की आंखों में धूल झोंक कर ऐसे अतिक्रमणकारी रात के अंधेरे में अपने झुग्गी-झोपड़ी हटा कर दीवार का प्लास्टर का काम भी शुरू करा देते हैं. वहीं, दूसरी तरफ अवैध रूप से नदी की जमीन को खतियानी जमीन बता कर मकान निर्माण शुरू कर देते हैं और प्रशासन की ओर से विरोध किये जाने पर न्यायालय का शरण लेकर मामले को लंबा खिंचते है. इन क्षेत्रों में ज्यादा अतिक्रमणगढ़ पर से गोंदापुर को जोड़नेवाली खुरी नदी पुल से लेकर मंगर बिगहा पुल तक नदी के दोनों किनारों पर विगत एक माह से कब्जा जमाने की होड़ मची है. कुछ दबंगों द्वारा नदी के भू-भाग पर बाहरी मिट्टी जमा कर टीला बना दिया जाता है और उसे खुद का दावा की जमीन बताते हुए लोगों के बीच चार से पांच लाख रुपये में मौखिक बेंच दी जाती है. जबकि, सरकारी खाता के अनुसार 609 खाता में नदी का भू-भाग रहने के कारण रजिस्ट्री नहीं किया जा सकता है. ऐसे भू-भागों पर बनाये गये मकान का रसीद आज तक न तो नगर पर्षद से कटा है और न ही राजस्व कर्मचारी की ओर से काटा जाता है. प्रतिदिन फेंका जा रहा एक सौ टन कचरा शहर से प्रतिदिन एक सौ टन से अधिक निकलने वाले कचरे को नदी में फेंक कर नदी के आकार को छोटा किया जा रहा है. कचरा फेंके गये स्थानों पर अतिक्रमणकारियों की पहले से नजर रहती है. नदी के किनारों पर कचरा फेंकवा कर उस पर खुद का दावा जताया जाता है. ऐसे में नदी का हो रहे अतिक्रमण कहीं न कहीं फेंके गये कचरों का भी काफी योगदान माना जाता है.

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