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तिलकुट ने बेरोजगारों के जीवन में बिखेर दी सोंधी खुशबू

मौसमी व्यवसाय ने कारीगरों को किया व्यस्त शहर में लगीं 100 दुकानें खिलखिला रहे चेहरे नवादा : बेरोजगारी के दौर में कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए तिलकुट का कारोबार वरदान साबित हो रहा है. हर साल सीजन में करीब एक दर्जन ऐसे दुकानें खुल रही हैं, जिनके दुकानदार कभी दूसरे की दुकानों में नौकरी करते […]

मौसमी व्यवसाय ने कारीगरों को किया व्यस्त

शहर में लगीं 100 दुकानें खिलखिला रहे चेहरे
नवादा : बेरोजगारी के दौर में कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए तिलकुट का कारोबार वरदान साबित हो रहा है. हर साल सीजन में करीब एक दर्जन ऐसे दुकानें खुल रही हैं, जिनके दुकानदार कभी दूसरे की दुकानों में नौकरी करते थे. वर्तमान दिनों में शहर में करीब 100 से अधिक तिलकुल की दुकानें खुली हैं. इस कारोबार से जुड़े लोगों को नौकरी से दोगुनी कमाई होने लगी है. उनकी माली हालत में भी सुधार भी होने लगा है. सीजनवाले इस व्यवसाय में कई ऐसे भी लोग हैं, जिनका पूरा कई पीढ़ी से इस रोजगार से जुड़े हैं.
यह रोजगार एक सीजन की कमाई से कर्ज तोड़ने के साथ ही धन कमाई का भी बेहतर विकल्प बन गया है. इसमें उन कारीगरों ने भी दुकानें खोली हैं, जिन्होंने दूसरे की दुकानों में नौकरी कर तिलकुट बनाने का हुनर सीखा है. दो-तीन सीजन में ही बेहतर कारीगर बन कर वैसे लोग अपनी दुकानें खोल कर आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं.
पांच साल में तिलकुट की दुकानें हुईं दोगुनी
पिछले पांच सालों में यहां तिलकुट के दुकान दुगना हो गया है. लोग तिलकुट दुकानों को प्रखंड स्तर भी खोलकर कमाई करने लगे हैं. तिलकुट का व्यवसाय तीन माह का होता है जिसमें पूरे साल के लिये प्रयाप्त धन कमाने का मौका मिल जाता है. हालांकि शहरी क्षेत्र की बात करें तो यहां कुछ पुराने दुकान हैं जिसके चलते छोटे दुकानदारों को लाभ मिलने लगा है. तिलकुट के लिये मुख्य तौर पर शहर के पुरानी बाजार सबसे बड़ी मंडी है. यहां एक दर्जन दुकानें संचालित हैं.
इसके अलावा मकर संक्रान्ति आने के एक सप्ताह पूर्व से भी कई फुटपाथी दुकानदारों का भी कमाई हो जाता है. नगर के सोनार पट्टी रोड में गया तिलकुट भंडार में काफी मांग रहता है. लेकिन अपूर्ति नहीं हो पाने के कारण लोग जल्दी में दुसरे अगल-बगल के दुकानों से खरीदारी कर लेते हैं. इस तरह से उन दुकानों के कारण काफी फायदा हो जा रहा है. शहर के पार नवादा, नारदीगंज रोड गढ़पर, अस्पताल रोड, मेन रोड, भगत सिंह चैक, इंदिरा चैक तथा स्टेशन रोड आदि मुहल्लों में भी दुकानों की भरमार हो गई है. इसमें वैसे दुकानदार भी हैं जिन्होने दुसरे के दुकानों की नौकरी छोड़कर खुद का दुकान खोल रखा है.
लालसा ने बना दिया तिलकुट का कारीगर
जब तिलकुट की कारीगरी करते थे तब परिवार चलाना मुश्किल था,लेकिन सीखने की लालसा ने कारीगर बना दिया. कुछ सालों की कड़ी मेहनत के बाद तिलकुट बनाने की कला सीख ली़ उसके बाद जगह की तलाश की, नहीं मिलने पर अपने घर में ही दुकान खोल ली. आज इस तिलकुट के कारोबार से पूरा परिवार खुश है़ इस महंगाई में आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है. तिलकुट के कई क्वालिटी बनाने लगे हैं़ इसे लोग पसंद कर खरीदने आ रहे हैं.
राजेश कुमार, स्टेशन रोड
पांच साल सालों से दूसरे की दुकान में कारीगरी करते थे. तीन हजार से नौकरी शुरू करने के बाद यह बढ़ कर जब 28 हजार एक सीजन का मिलने लगा तब लगा कि अब अपनी दुकान खोल ली जाये. इसी को लेकर पुराना बाजार मंडी में ही दुकान खोल कर बड़े व पुराने दुकानदारों से कंपीटीशन कर दुकान चला रहे हैं. दुकान में कई स्टाफ काम करते हैं़ अब अपना काम करने लगा हूं़ पहली बार दुकान खोला हूं़ इसमें खर्च काट कर दोगुनी कमाई हो रही है़
किशोर साव
तिलकुट की कारीगरी करने के बाद जब इस काम में पारंगत हुए, तो आर्थिक तंगी सामने आ गयी. उसमें एक मित्र ने अपनी दुकान व पूंजी देकर दुकानदार बना दिया. आज उसी दुकान से भाइयों को भी प्रेरणा देकर तिलकुट के व्यवसाय से जोड़ दिये हैं. लगन और मेहनत रंग लायी है़ बड़े-बड़े दुकानदारों को पीछे कर दिये हैं. खास्ते तिलकुट ने पहचान दिला दी है़
अशोक कुमार, पुरानी बाजार
बड़े भाई ने जब तिलकुट की कारीगरी छोड़ कर दुकान खोली, तब हम छोटे भाइयों में प्रेरणा जगने लगी. हम सभी भाई उतना पढ़े-लिखे नहीं हैं कि कहीं नौकरी कर इस महंगाई में परिवार चला सकते थे. लेकिन, तिलकुट के रोजगार को शुरू कर आज हम सभी भाई अलग-अलग तिलकुट की दुकान चला रहे हैं. इससे आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुई है.
छोटू कुमार गुप्ता, गढ़पर

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