बिहारशरीफ : दुनिया में कोई काम छोटा नहीं होता. बस सोचने के तरींके में अंतर है. मेहनत से किया गया हर काम आत्म संतोष देता है. घरों में इस्तेमाल होने वाले जूते-चप्पल व अन्य सामान व बेकार हो जाते हैं तो लोग उसे घरों से बाहर फेेंक देते हैं. बाहर फेंके सामान को जमा कर सैकड़ों लोग अपने घर की जीविका चला रहे हैं. वैसे ही एक परिवार है कमला देवी का. जो स्थानीय सदर अस्पताल के पास रहती है. उक्त परिवार के लोग बेकार वसतुओं को जमा कर जीवन-यापन कर रही है. वह बताती है कि मेहनत का काम है. परिवार के सभी सदस्य इस काम को करते हैं.
धूप हो या कड़ाके की ठंड बारिक नजर से काम की वस्तुओं को खोज निकालना भी चुनौती होता है.बहुत ज्यादा कमाई नहीं होती है .लेकिन एक महीने में दो से ढाई हजार रुपये की कमाई हो जाती है. कचरे के ढेर से व जहां-तहां फेके हुए जूते चप्पल व अन्य सामान को पहले जमा करते हैं. इसके बाद साफ करके उसे दो हिस्सा करना पड़ता है.एक में प्लास्टिक व दूसरे में रैक्सिन. प्रति किलो बारह से पन्द्रह रुपये दाम मिल जाता है.वह बताती है कि जिस दिन पैसा हाथ में आता है.
उस दिन बढ़िया खाना खाकर खुशी मनाते हैं. ऐसा सिर्फ कमला का ही परिवार नहीं है. शहर में सैकड़ों ऐसे परिवार हैं. जिसकी जिंदगी कचरे के सामानों से चल रहा है. ऐसे लोगों को उपेक्षा की नजर से देखने की बजाय उनकी कड़ी मेहनत से सीख लेने की आवश्यकता है . कचरे के सामान को पुन: रूप देने के लिए मुकाम स्थल पर पहुंचाने में ऐसे लोग जुटे हैं.