नालंदा : पांच सौ सदस्यों का जागृति यात्री दल मंगलवार को नालंदा पहुंचा. इस दल में 50 फीसदी महिलाएं हैं. यात्रियों के अतिरिक्त इस दल में जाने माने उद्यमी ट्रेनर भी शामिल हैं, जो यात्रियों को निरंतर मार्गदर्शन करते हैं. नववर्ष में जाग्रति दल का यह पहला पड़ाव है. देश दुनिया से आये जागृति प्रतिनिधियों ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास को जानकर बेहद खुश थे. दल के सदस्यों ने कहा कि इस विश्वविद्यालय में बहुमंजिला पुस्तकालय भवन था.
नालंदा दुनिया का सबसे बड़ा आवसीय शिक्षण संस्थान था. यह विद्या केंद्र कुषाण वास्तुकला के अनुसार बनाये गये थे, जिनके आंगन में पंक्तियों में कूप बनें हैं. पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने मार्च 2006 में नालंदा ध्वंस के आठ सौ साल बाद विश्वविद्यालय को फिर से शुरू करने का विचार किया गया था. लगभग उसी वक्त सिंगापुर की सरकार ने ‘नालंदा प्रस्ताव’ नाम से एक प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा था.
उसी प्रस्ताव ने एक बार फिर से एशिया को केंद्र में रखकर नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू की गयी है. जागृति के कार्यकारी निदेशक आशुतोष ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय के राख से निकली ज्ञान परंपरा अमरपक्षी की तरह बढ़ रहा है. इसे निहारना और दर्शन करना किसी आश्चर्य से कम नहीं है. यह दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित और महान विरासत का परिभ्रमण कर यात्रियों ने अन्वेषण किया. उन्होंने कहा कि पिछले नौ वर्षों में जागृति यात्रा दल द्वारा तय की गयी दूरी धरती की परिधि की दो परिक्रमा किये जाने के समान है. इस जागृति दल में संस्थान के अध्यक्ष शशांक मणि त्रिपाठी, कार्यकारी निदेशक आशुतोष, मीडिया प्रभारी सोम्या जैन समेत सभी सदस्यों ने इस विश्व धरोहर को करीब से देखा, सुना और समझा.