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लीची पर गरमी व नमी की मार

10-15 प्रतिशत कम लीची उत्पादन की आशंका मुजफ्फरपुर : पिछले साल लीची उत्पादन में मात खा चुके लीची उत्पादकों पर इस साल भी मौसम कर मार पड़ रही है. जल स्तर नीचे जाने का असर लीची पर दिखने लगा है. बाग में नमी कम होने से फल तेजी से गिरने लगे हैं. अनुमान लगाया जा […]

10-15 प्रतिशत कम लीची उत्पादन की आशंका

मुजफ्फरपुर : पिछले साल लीची उत्पादन में मात खा चुके लीची उत्पादकों पर इस साल भी मौसम कर मार पड़ रही है. जल स्तर नीचे जाने का असर लीची पर दिखने लगा है. बाग में नमी कम होने से फल तेजी से गिरने लगे हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि जिस तरह से फल झड़ रहे हैं, इससे 10 – 15 प्रतिशत कम उत्पादन होने का अनुमान है. अप्रैल महीने में लगातार पूरवा हवा चलने से लीची को नुकसान पहुंचा है. लीची में कीड़ा लगने का खतरा मंडराने लगा है.
मीनापुर के किसानों ने राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र से फल गिरने की शिकायत की है. इधर, विशेषज्ञों का कहना है कि जो किसान अप्रैल के प्रथम व दूसरे सप्ताह में लीची बाग में सिंचाई व दवा का छिड़काव नहीं किये हैं. उनको ज्यादा नुकसान है. लीची व्यवसायी सुबोध कुमार बताते हैं कि जिस तरह फल झड़ रहे हैं.
इससे अधिक नुकसान हो सकता है. इस मौसम में पूरवा हवा का चलना भी लीची के सेहत के लिए ठीक नहीं है. लीची में वेजिटेटिव ग्रोथ होने से इस साल चाइना लीची में कम फल लगे हैं. दस बागों में से एक में ही ठीक – ठाक फल लगा है. विशेषज्ञों का मानना है कि फरवरी में ही वसंती हवा चलने से फलन पर असर हुआ है. दरअसल, मंजर आने के समय नया पत्ता आने से यह स्थिति हुई है. लीची के अच्छे उत्पादन के लिए लिए पछिया व पूरवा हवा के मिश्रित रूप से चलना फायदेमंद है. लीची सिटी के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर में औसत 1.63 लाख मीटरिक टन लीची का उत्पादन होता है. सबसे अधिक लीची के बाग कांटी, मुशहरी, बोचहां, कुढ़नी व मीनापुर में हैं. कुल 21 हजार हेक्टेयर में शाही व लीची के बाग है. कांटी व मीनापुर को तो लीची का नैहर कहा जाता है.

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