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नील के धब्बे में दिखी चंपारण के किसानों की बेबसी

मुजफ्फरपुर: एलएस कॉलेज में नील के धब्बे नाटक के जरिए किसानों ने के दर्द को बेहद संजीदगी से उकेर कर उनकी बेबसी की दास्तां प्रस्तुत की गयी. रंगश्री दिल्ली के कलाकार व एलएस कॉलेज के छात्रों ने अपनी बेहतरीन प्रदर्शन से लोगों को 100 साल पहले चंपारण सत्याग्रह ओर से लेते चले गए. बताया किस […]

मुजफ्फरपुर: एलएस कॉलेज में नील के धब्बे नाटक के जरिए किसानों ने के दर्द को बेहद संजीदगी से उकेर कर उनकी बेबसी की दास्तां प्रस्तुत की गयी. रंगश्री दिल्ली के कलाकार व एलएस कॉलेज के छात्रों ने अपनी बेहतरीन प्रदर्शन से लोगों को 100 साल पहले चंपारण सत्याग्रह ओर से लेते चले गए. बताया किस तरह अंग्रेजों की ज्यादती, जुल्म लोगों को जकड़े हुए थे. अंधविश्वास के जरिए एक-दूसरे को लड़ाना अंग्रेजों की नीयत बन गई थी. इन सब से पार पाने के लिए कैसे रामचंद्र शुक्ल ने गांधी को चंपारण में बुलाया. वहां पहुंचकर किस तरह उन्होंने सत्याग्रह की लड़ाई लड़ी और निलहों के आंतक से किसानों को मुक्त कराया. नाटक के हर एक प्रस्तुति पर लोगों की तालियां कलाकारों को बल दे रही थी.

कहानी की शुरुआत उस दौर से होती है, जब चंपारण में बच्चा पैदा होने से लेकर बाप के मरने तक हर रस्म पर अंग्रेजों की ओर से किसानों से कर वसूले जाते थे. कर न देने पर किस तरह उनके बहन बेटियों के साथ दुर्व्यहार किया जाता था. विरोध पर अंग्रेजों की लाठियां मिलती थी. बहू बेटियों को कोठी पर जबरन बुला लिया जाता था. यहां तक अंग्रेजों की गाड़ी व पशु खरीदने के लिए भी किसानों से कर वसूल जाते थे. बात यही तक नहीं थी. अंग्रेजों की ओर से कर वसूलने के लिए रखे गए पटवारी भी किसानों का जमकर शोषण करते थे.19 लाख चंपारण वासियों पर अंग्रेजों के जुल्म का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा था. इनसे पार पाने के उपाय हर घड़ी टूट रहे थे. किसानों के आंखों में उस दर्द के आंसू थे, जो उन्हें नीलहों व अंग्रेजों के आंतक से मिल रहे थे. लेकिन डर ऐसा था कि किसान किसी के सामने अपनी जुबान तक नहीं खोल सकते थे. इस बीच रामचंद्र शुक्ल ने गांधी को चंपारण बुलाया. गांधी ने चंपारण पहुंचकर निलहों के खिलाफ किसानों को निडर बनाया. एक-एक किसानों को सत्याग्रह से जोड़ा.

और लंबी लड़ाई लड़ते हुए चंपारण सत्याग्रह के जरिए किसानों को निलहों व अंग्रेजों के आंतक से मुक्त कराया. नाटक के सूत्रधार व निर्देशक रंगश्री के महेंद्र प्रसाद सिंह, पटवारी व तहसीलदार की भूमिका में सौमित्र वर्मा, बैज एवं गया प्रसाद सिंहअखिलेश कुमार पांडेय, कौफिन एवं गांधी रौशन महावीर, शेख गुलाब, शत्रुधन कुमार, सिपाही मुन्ना कुमार, भिखारी एवं अरिक्षण सिन्हा, धीरेंद्र कुमार, राजकुमार शुक्ल राजू उपाध्याय, युवक एवं रामदयालु सिंह आरजी श्याम की भूमिका में रहे. इससे पहले वीसी डॉ अमरेंद्र नारायण यादव व एलएस कॉलेज प्राचार्य ने संयुक्त रूप से नाटक का उद्घाटन किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रमोद कुमार ने किया.

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