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आम लोगों की बात करते थे बापू, नोट पर तसवीर ठीक नहीं
मुजफ्फरपुर: महत्मा गांधी आम लोगों की बात करते थे, इसलिए नोट पर उनकी तस्वीर ठीक नहीं. नोट पर तस्वीर सामंतवादी मानसिकता का प्रतीक है. ये बातें वरिष्ठ समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने कहीं. वे सोमवार को एलएस कॉलेज के आर्ट्स ब्लॉक में गांधी की शहादत और विरासत विषययक गोष्ठी में बोल रहे थे. इसका आयोजन […]
मुजफ्फरपुर: महत्मा गांधी आम लोगों की बात करते थे, इसलिए नोट पर उनकी तस्वीर ठीक नहीं. नोट पर तस्वीर सामंतवादी मानसिकता का प्रतीक है. ये बातें वरिष्ठ समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने कहीं. वे सोमवार को एलएस कॉलेज के आर्ट्स ब्लॉक में गांधी की शहादत और विरासत विषययक गोष्ठी में बोल रहे थे. इसका आयोजन गांधी शांति प्रतिष्ठान की ओर से किया गया.
उन्होंने कहा कि आजादी के समय देश दो धाराओं में बंटा था. एक धारा देश को एक रखना चाहती थी, जिसका नेतृत्व गांधी कर रहे थे. दूसरी धारा विभाजन की पक्षधर थी. इनमें मुसलमान और हिंदू दोनों शामिल थे. मुसलमान विभाजनकारियों का नेतृत्व मुसलिम लीग कर रही थी, तो हिंदू विभाजनकारियों का आरएसएस, जबकि गांधी हिंदू और मुसलमानों को एक मानते थे. भारत में दोनों के साथ-साथ रहने में देश की भलाई समझते थे. वे सहअस्तित्व की भावना के हिमायती थे. यही बात कईयों को पसंद नहीं थी. ऐसे लोग ही अपना वर्चस्व कायम करना चाहते थे.
समाजवादी चिंतक ने कहा कि आज वैसा ही भावनात्मक विभाजन सामने लाने और वर्चस्ववादी भावना की प्रबलता का दौर है. ऐसे में गांधीजी आज और अधिक प्रासंगिक हो गये हैं. आज गांधी को केंद्र में रखकर ही मानवीय समाज की बात आगे बढ़ाई जा सकती हैं. दुनिया ने मार्क्सवाद से लेकर पूंजीवाद तक के प्रयोग देखे हैं, लेकिन उम्मीद की आखिरी किरण गांधीवाद ही बचा है. गांधी चीजों को समग्रता में देखते थे, लेकिन हम चीजों को टुकड़ों में देखने के आदी हो गये हैं.
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ उपेंद्र कुंवर ने कहा कि गांधीजी के साथ जो रहते थे, वे खुद गांधीजी की तरह रहने लगते थे. हमें अपना व्यक्तिगत आचरण स्वच्छ करना होगा. सहयोगी भाव रखना होगो. निर्मल मन रखें. यही गांधी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. इससे पहले विषय प्रवेश कराते हुए डॉ प्रमोद कुमार ने कहा, जिन गांधीजी को राष्ट्रपिता की सर्वोच्च पदवी से नवाजा गया, उन्हें शुरू से ही राष्ट्र निर्माण के एजेंडे से बाहर रखा गया. गांधीजी पर आठ बार हमले किये गये, ये किसने किये, यह आज नये सिरे से समझने की जरूरत है. आद दुनिया में गांधी जी के दिखाये रास्ते के अलावा दूसरा विकल्प नहीं दिखता है.
गोष्ठा का संचालन व अतिथियों का स्वागत गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव अरविंद वरुण ने किया. धन्यवाद ज्ञापन अवधेश कुमार सिंह ने किया. मौके पर प्रो बीएस झा, सुरेंद्र कुमार, प्रो भोजनंदन सिंह, प्रो विजय कुमार जायसवाल, प्रो नंद किशोर नंदन, प्रो अनिल कुमार ओझा, प्रो अवधेश कुमार, प्रो केके झा, अनिल कुमार सिंह, डॉ एमएन रिजवी, डॉ ब्रजेश कुमार शर्मा, प्रो मंजू सिन्हा, डॉ पुष्पा कुमारी, प्रो विकास नारायण उपाध्याय, डॉ राकेश कुमार सिंह, कामता प्रताप आदि मौजूद रहे.
विभाजन के बाद भी गांधी को क्यों मारा?
संबोधन के दौरान सच्चिदानंद सिन्हा ने सवाल उठाया कि देश का विभाजन हो चुका था, उसके बाद गांधीजी की हत्या क्यों की गयी? इसे आज फिर से समझने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि गांधी जी अनेक प्रयोग किये. स्वच्छता इनमें प्रमुख थी. आज स्वच्छता के नाम पर ड्रामा हो रहा है. जिनकों प्रकृति अपने में समाहित कर लेती है. उन कचरों को समाहित करने पर जोर है, जबकि प्लास्टिक कचरे का बड़ा भंडार हम जमा करते जा रहे हैं. इ-कचरे का भी निष्पादन कठिन दिख रहा है.
गांधी जी जैसी समग्रता की जरूरत
सच्चिदानंद सिन्हा ने कहा कि गांधी जी चीजों को समग्रता में देखते थे, जबकि हम लोगों की आदत चीजों को टुकड़ों में देखने की पड़ गयी है. आज पर्यावरण के संकट की चर्चा दुनियाभर में हो रही है. इसके मकड़जाल में हम उलझते जा रहे हैं. इसे सुलझाने का रास्ता सिर्फ गांधी के पास ही है. गांधी जी की विरासत का अर्थ है कि हम उनके ग्राम गणराज्य को समझें, अपनी जिंदगी को सरल बनायें. प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का रिश्ता बनायें.
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