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खुदीराम के अंतिम संस्कार पर लगाये पेड़ को दीमक ने काट गिराया
मुजफ्फरपुर : दवारा सोडा गोदाम चौक स्थित शहीद खुदीराम बोस चिता भूमि की निशानी और धरोहर एक-एक कर गायब हो रहे हैं. गायब हो रही निशानी में शहीद खुदीराम बोस के अंतिम संस्कार पर लगाये पेड़ भी शामिल हो गया है. इस पेड़ को दीमक ने काट गिराय. वह धराशायी हो गया. भाषण चाहे जितना […]
मुजफ्फरपुर : दवारा सोडा गोदाम चौक स्थित शहीद खुदीराम बोस चिता भूमि की निशानी और धरोहर एक-एक कर गायब हो रहे हैं. गायब हो रही निशानी में शहीद खुदीराम बोस के अंतिम संस्कार पर लगाये पेड़ भी शामिल हो गया है.
इस पेड़ को दीमक ने काट गिराय. वह धराशायी हो गया. भाषण चाहे जितना हो जाये लेकिन, इन शहीदों के त्याग व बलिदान को भूल सब अपने-अपने में लगे हैं. शहीद के अंतिम संस्कार के दिन 11 अगस्त 1908 को बंगाली समुदाय के लोगों ने अंतिम निशानी के रूप में एक पेड़ लगाये थे.
इसे डीएम, सीएम व पीएम भी नहीं बचा सके. इन कार्यालयों को लोग लगातार पत्र भेजते रहे. लेकिन, उपेक्षा के शिकार हुए इस पेड़ को दीमक ने काट-काट कर गिरा दिया. किसी भी अधिकारियों को शहीद भूमि के इस धरोहर पर दया तक नहीं आयी. शहीद खुदीराम बोस चिता भूमि बचाओ अभियान समिति के संयोजक पिंकु शुक्ला बताते हैं कि मांग पत्र सौंपते रहे, लेकिन सब कुछ कागजों में ही सिमट कर रह गया है. उनकी चिता भूमि पर कोई भी काम नहीं हुआ. निगम मेहरबान हुआ तो अनर्थ कर शहीद का घोर अपमान कर दिया. सौंदर्यीकरण के नाम पर चिता स्थल के समीप एक शौचालय बना दिया. आखिर इसकी यहां शौचालय की क्या जरूरत थी.
चिता भूमि पर गंदगी का अंबार
वे बताते हैं कि फांसी स्थल केंद्रीय कारा में है. यहां आम आदमी व आम देशभक्त दर्शन नहीं कर सकते हैं. दूसरा स्थल के रूप में चिता भूमि है. यह अतिक्रमण का शिकार है. गंदगी का अंबार है. जल-जमाव है. इस भूमि का सौंदर्यीकरण हो जाता तो दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित हो सकता था. ऐतिहासिक महत्व बढ़ता. नई पीढ़ी के लोगों में जागरूकता आती. इसे पर्यटन स्थल बनाया जाता. इसकी घेराबंदी होती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. केवल आश्वासन मिला.
डीएम, सीएम व पीएम भी नहीं बचा सके चिताभूमि की निशानी
जमीनी विवाद में फंसे पैसे : काफी पहल के बाद सांसद अजय निषाद ने अपने ऐच्छिक कोष से 25 लाख रुपये खर्च करने के लिए जिला योजना विभाग को सहमति पत्र दिया. लेकिन, जमीनी विवाद में यह योजना फंस गया. यहां सुरक्षा प्रहरी की तैनाती करने की जरूरत है. लेकिन, प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया. 11 अगस्त को यहां पर मेला का आयोजन किया जाना चाहिए था. लेकिन, किसी को कोई मतलब नहीं रह गया.
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