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सव्रे में क्लब की आधी जमीन को बता दिया था सरकारी

मुजफ्फरपुर: मुझे याद है 1972 में, उस समय मैं ओरियंट क्लब का सचिव था. सरकारी सव्रे हो रहा था. मैं बाहर गया था. वहीं, हमको पता चला, सव्रे में क्लब की आधी जमीन को सरकारी बना दिया गया है. इसके बाद हमने जमीन को फिर से क्लब के नाम पर करवाने की कवायद की. इसमें […]

मुजफ्फरपुर: मुझे याद है 1972 में, उस समय मैं ओरियंट क्लब का सचिव था. सरकारी सव्रे हो रहा था. मैं बाहर गया था. वहीं, हमको पता चला, सव्रे में क्लब की आधी जमीन को सरकारी बना दिया गया है. इसके बाद हमने जमीन को फिर से क्लब के नाम पर करवाने की कवायद की. इसमें करीब चार साल लगे. हमें कोर्ट से न्याय मिला था. काफी मशक्कत करनी पड़ी, तब जाकर क्लब के नाम फिर से पूरी जमीन हुई. ये कहते हुए क्लब के पूर्व सचिव असित बनर्जी अब के हाल पर चिंता जाहिर करते हैं.

कहते हैं, हमने तो क्लब काम छोड़ दिया था और लोग अपने कामों में लग गये. इस बीच क्लब और उसकी धरोहर के साथ ऐसा खिलवाड़ किया गया. हम लोगों को इसके बारे में जानकारी मिलती थी, लेकिन हमने ऐसा नहीं सोचा था. जब मुक्ता वर्मा की रिपोर्ट देखी तो गंभीरता का पता चला. तब हमने तय किया है, चुप नहीं बैठेंगे. क्लब के गौरव को वासप लाने की लड़ाई अब हम सबकी हो गयी है. क्लब के उपाध्यक्ष एके पालित कहते हैं, क्लब को बचाने के लिए सबसे वर्तमान कमेटी को भंग कर दिया जाना चाहिए. जैसा की जांच रिपोर्ट में लिखा गया है. इसके बिना काम नहीं चलेगा. ये बहुत जरूरी है. इसके बाद ही सुधार हो सकता है, क्योंकि कुछ लोग क्लब को निजी संपत्ति समझ कर इसका उपयोग कर रहे हैं. वह क्लब के बॉयलॉज का हवाला देते हैं. कहते हैं, उसमें इस बात का जिक्र नहीं है, क्लब की जमीन को किसी को लीज पर दिया जा सकता है. या फिर बेचा जा सकता है. क्लब की जमीन पर जिस तरह से दुकानें खुली हैं, निर्माण किया गया है. गैरकानूनी है.

एसके बोस कहते हैं, क्लब के मैदान से केवल फुटबॉल के ही राष्ट्रीय व राज्य स्तर के खिलाड़ी नहीं निकले, बल्कि अन्य खेलों में भी यहां खीसे खिलाड़ियों ने नाम किया है. वह ऐसे दर्जनों लोगों के नाम गिनाते हैं. इसमें से ज्यादातर लोगों को खेल कोटे से ही नौकरी मिली. कई लोग ऐसे हैं, जो अब इस शहर से निकल कर किसी दूसरे शहर में बस गये हैं, लेकिन उनका दिल भी क्लब की दुदर्शा पर रोता है. श्री बोस बताते हैं, जैसे-जैसे इस बात की लोगों को जानकारी मिल रही है, क्लब की धरोहर नष्ट हो रही है. लोगों को दुख हो रहा है. वह चाहते हैं, हमारी विरासत संभाल कर रखी जाये.

जदयू नेता सुबोध कुमार की यादों में भी ओरियंट क्लब की यादें हैं. कहते हैं, हम लोग 1982 के आसपास क्लब के मैदान में क्रिकेट खेलने के लिए जाया करते थे, तब बड़ी फील्ड थी. क्रिकेट के साथ अन्य खेल भी मैदान में होते रहते थे. हम लोग खूब खेलते थे. मैदान पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे. वहीं, सीनियर सीटिजंस से जुड़े एचएल गुप्ता भी क्लब का पुराना समय याद करते हैं. इकहत्तर वर्षीय श्री गुप्ता कहते हैं, जिस तरह से क्लब के मैदान के चारों ओर अतिक्रमण हुआ है. उससे साफ लगता है, सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. अगर मैदान की चारों ओर से बाउंड्री आदि करवा दी जाये तो इस धरोहर को बचाया जा सकता है.

क्या किया क्लब की कमेटी ने ?
एसके बोस कहते हैं, क्लब के पास 50 हजार किताबें थीं. उनके सड़ जाने की बात हो रही है. क्या एक साथ सब किताबें सड़ गयीं? ऐसा कैसे हो सकता है, अगर किताबें सड़नी शुरू हो गयी थीं तो बची किताबों के संरक्षण की कोशिश की जानी चाहिए थी ? क्या ऐसा किया गया? आखिर क्या ऐसा नहीं करने के पीछे क्या वजह थी? क्लब में जिस तरह की गतिविधियां होती हैं और जैसे उसकी आमदनी है. उससे लाइब्रेरी का संरक्षण बड़ी बात नहीं है. इसका जवाब कमेटी में शामिल लोगों को देना चाहिए. साथ ही ये भी बताना चाहिए, क्लब की जमीन का अतिक्रमण आखिर किन परिस्थितियों में हुआ है? इसे रोकने के लिए क्या किया गया है?

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