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कोर्स वर्क पूरा होने के डेढ़ साल बाद मिली उपाधि

मुजफ्फरपुर: पीएचडी के यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत पीआरटी टेस्ट पास करने के बाद अभ्यर्थियों को छह माह का को प्री पीएचडी कोर्स वर्क करना होता है. उसके बाद ही शोध की अनुमति मिलती है. विवि में इन नियम की अनदेखी कर, शोधार्थियों को न सिर्फ कोर्स वर्क से पूर्व की पंजीयन तिथि एलॉट कर […]

मुजफ्फरपुर: पीएचडी के यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत पीआरटी टेस्ट पास करने के बाद अभ्यर्थियों को छह माह का को प्री पीएचडी कोर्स वर्क करना होता है. उसके बाद ही शोध की अनुमति मिलती है. विवि में इन नियम की अनदेखी कर, शोधार्थियों को न सिर्फ कोर्स वर्क से पूर्व की पंजीयन तिथि एलॉट कर दी, बल्कि उसी को मानक मान कर पीएचडी की उपाधि भी दे दी.

इसका लाभ पाकर एक दर्जन छात्रों ने डेढ़ साल या उससे भी कम समय में शोध कार्य पूरा कर लिया. मानकों के तहत शोध के लिए न्यूनतम दो साल की समय सीमा तय है. शोधकर्ताओं को यह छूट देने के लिए विवि ने 20 मई 2012 को जारी अधिसूचना को आधार बनाया है. लेकिन अभी तक उसे राजभवन की मंजूरी नहीं मिली है. रोचक बात यह है कि जिन बारह शोधार्थियों को इसका लाभ मिला है, उसमें से नौ ने विवि अधिकारियों, उनके परिजन या तत्कालीन विभागाध्यक्षों के अधीन शोध कार्य पूरा किया है.

विवि ने मई 2012 में जारी की थी रेगुलेशन की अधिसूचना

राजभवन ने नवंबर 2011 में विवि को पत्र लिख कर पीएचडी कोर्स में यूजीसी रेगुलेशन 2009 को लागू करने का आदेश दिया था. प्रक्रिया पूरी करने के बाद 20 मई 2012 को विवि प्रशासन ने एक अधिसूचना जारी की. इसके तहत एक जून 2012 से विवि में यूजीसी रेगुलेशन 2009 लागू होना था. साथ ही उसमें छूट दी गयी थी कि जिन शोधार्थियों ने 01 जून 2012 से पूर्व सिनॉप्सिस जमा की थी, वे रेगुलेशन में शामिल होने या न होने का फैसला ले सकते थे. जो रेगुलेशन में शामिल होने का फैसला लेते हैं, उनकी पंजीयन तिथि एक जून 2012 मानी जायेगी. तब विवि का तर्क था कि ऐसा राजभवन से रेगुलेशन लागू करने संबंधी पत्र देर से आने के कारण यह छूट दी गयी है. इसके लिए राजभवन की मंजूरी लेने का भी फैसला हुआ था, लेकिन आज तक उसे मंजूरी नहीं मिली है. रोचक बात यह है कि बारह में से तीन शोध कर्ताओं ने रेगुलेशन लागू होने की तिथि (01 जून, 2012) के बाद सिनॉप्सिस जमा किया था.

जुलाई 2013 में शुरू हुआ कोर्स वर्क

राजभवन से पत्र देर से आने के आधार पर ‘राहत’ की घोषणा करने वाला विवि खुद यूूजीसी रेगुलेशन 2009 के प्रावधानों के तहत कोर्स वर्क शुरू करने में देरी कर दी. रिसर्च डेवलपमेंट कौंसिल व एकेडमिक कौंसिल की मंजूरी के बाद जुलाई 2013 में पहली बार बॉटनी विभाग में छह माह का कोर्स वर्क शुरू हुआ. इसके बाद जून 2014 में अन्य विभागों ने भी अपने यहां कोर्स वर्क शुरू किया. मान लिया जाये की उपाधि हासिल करने वाले सभी शोध कर्ताओं ने जुलाई 2013 में कोर्स वर्क शुरू किया. ऐसे में उनका कोर्स वर्क दिसंबर 2013 में पूरा हुआ होगा. यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत वे नवंबर 2015 में शोध पत्र जमा कर सकते थे. लेकिन अधिकांश ने जून-जुलाई 2015 में ही शोध पत्र जमा कर दिया. यही नहीं विवि प्रशासन ने गत 14 जुलाई को हुए दीक्षांत समारोह में उन बारह शोध कर्ताओं को पीएचडी की उपाधि भी दे दी. हकीकत यह है उपाधि हासिल करने वाले अधिकांश शोधकर्ताओं ने जनवरी 2014 या उसके बाद कोर्स वर्क शुरू किया था. यानी कोर्स वर्क पूरा करने के डेढ़ साल से भी कम समय में शोध कार्य पूरा हो गया.

मामला प्रकाश में आया है. इस पर कुलपति के साथ चर्चा भी हो चुकी है. इस मामले को राजभवन के समक्ष भी रखा जायेगा. जो भी फैसला होगा वह छात्र हित व विधि सम्मत होगा.

डॉ सतीश कुमार राय, कुलानुशासक

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