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558 छात्रों के नाम पर 28 लाख का गोलमाल

मुजफ्फरपुर: शिक्षा विभाग छात्रों पर किस कदर मेहरबान होता है. इसका उदाहरण देखने को मिला, 2013 व 3014 की विज्ञान प्रदर्शनी में. प्रदर्शनी में शामिल नहीं होनेवाले 558 छात्रों के नाम पर भी राशि निकाल ली गयी. ये राशि हजार व लाख-दो लाख नहीं, 28 लाख है. इसका खुलासा ऑडिट के दौरान हुआ, तो महालेखाकार […]

मुजफ्फरपुर: शिक्षा विभाग छात्रों पर किस कदर मेहरबान होता है. इसका उदाहरण देखने को मिला, 2013 व 3014 की विज्ञान प्रदर्शनी में. प्रदर्शनी में शामिल नहीं होनेवाले 558 छात्रों के नाम पर भी राशि निकाल ली गयी. ये राशि हजार व लाख-दो लाख नहीं, 28 लाख है. इसका खुलासा ऑडिट के दौरान हुआ, तो महालेखाकार की ओर से इस संबंध में विभाग के अधिकारियों से जानकारी मांगी गयी, तो अधिकारियों ने कहा कि अगले साल प्रदर्शनी में शामिल होनेवाले छात्रों को ये राशि दे दी जायेगी. अधिकारियों के इस उत्तर को महालेखाकार ने सिरे से खारिज कर दिया.
2013 -2014 में इंसपायर अवार्ड योजना के तहत विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. पहली प्रदर्शनी 27 अगस्त 2013 को लगी, जिसमें केवल 26 छात्र शामिल हुये. इसके बाद 24 जनवरी 2014 को भी जिला स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन हुआ. इसमें 601 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया. दोनों प्रदर्शनी में 1185 छात्र-छात्रओं को भाग लेना था, लेकिन 627 छात्र-छात्राएं ही शामिल हुये.
जब प्रदर्शनी में शामिल छात्र-छात्राओं के नाम पर राशि निकासी की बात आयी, तो 1185 छात्रों के नाम पर पांच-पांच हजार की निकासी कर ली गयी. इसमें 627 छात्रों को तो राशि मिली, लेकिन उन 558 छात्रों को भी राशि मिला दिखा दिया गया, जो प्रदर्शनी में आये ही नहीं थे. इनके नाम पर 27.90 लाख का हिसाब बनता है. इस रुपये के बंदरबांट का खेल राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के डीपीओ कार्यालय से जुड़ा हुआ है. महालेखाकार की टीम ने 11 सितंबर 2014 को यह जांच रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट जारी होने के बाद हाइ स्कूल के प्राचार्य व अफसरों के हाथ-पांव फूल रहे हैं. इस खेल में शामिल अधिकारी व प्राचार्य कागज को दुरुस्त करने में लगे हुए हैं.
छात्रों को जमा करना था प्रोजेक्ट
इंसपायर अवार्ड योजना का लाभ विज्ञान विषय में रुचि रखने वाले वर्ग छह से 10 तक के छात्र व छात्रओं को दिया जाता है. चयनित छात्र व छात्रओं को विज्ञान विषय से जुड़ा प्रोजेक्ट तैयार करने व प्रदर्शित करने के लिए भारत सरकार सहयोग के तौर पर प्रति छात्र पांच हजार रुपये देती है. राशि को प्रोजेक्ट बनाने व प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए खर्च किया जाता है. जिले में आयोजित प्रदर्शनी में सभी चयनित छात्र व छात्रों को प्रोजेक्ट के साथ उपस्थित होना था. गाइड लाइन के अनुसार यह तय किया जाना था कि चयनित सभी छात्र-छात्र को प्रदर्शनी में उपस्थित होना था. राज्य परियोजना निदेशक ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को निर्देश दिया था कि प्रदर्शनी के आयोजन से पूर्व अपने स्तर से संबंधित विद्यालयों के प्रधानाध्यापक को प्रोजेक्ट तैयार कराने का निर्देश दिया जाये. ताकि ,छात्र व छात्राएं प्रोजेक्ट के साथ चयनित छात्र व छात्रएं प्रदर्शनी में शामिल हो सके. लेकिन विभाग के आदेश का पालन नहीं हुआ.
जवाब से चौंक गये जांच अधिकारी
इधर, शिक्षा विभाग ने महालेखाकार टीम के जांच अधिकारियों को जवाब दिया वह चौंकाने वाला है, जब अधिकारियों ने जानकारी ली तो कहा गया कि इस संबंध में निदेशालय से वार्ता की जायेगी, जो छात्र व छात्रएं विगत प्रतियोगिता में शामिल नहीं हो सके थे. उनको आगामी प्रतियोगिता में चिह्न्ति कर शामिल कर लिया जायेगा. जांच टीम ने विभाग के इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि जिस वित्तीय वर्ष में राशि प्राप्त हुआ उसी वर्ष की प्रदर्शनी में छात्र व छात्रओं को भाग लेना था. बाद में भाग लेने का कोई औचित्य ही नहीं है.

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