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18 साल में खुद को मानसिक रूप से फिट साबित नहीं कर पाया शिवरंजन
मुजफ्फरपुर: धनबाद के सरायढेला के रहनेवाले शिवरंजन पिछले 18 साल से रेलवे का चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन वो अभी तक खुद को मानसिक रूप से फिट घोषित नहीं करवा पायें हैं. इस वजह से उन्हें रेलवे की परीक्षा में पास होने के बाद भी नौकरी नहीं मिली है. शिव रंजन को उस समय साइको […]
मुजफ्फरपुर: धनबाद के सरायढेला के रहनेवाले शिवरंजन पिछले 18 साल से रेलवे का चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन वो अभी तक खुद को मानसिक रूप से फिट घोषित नहीं करवा पायें हैं. इस वजह से उन्हें रेलवे की परीक्षा में पास होने के बाद भी नौकरी नहीं मिली है. शिव रंजन को उस समय साइको टेस्ट में फेल कर दिया गया था, जबकि शून्य नंबर पानेवालों को उसमें पास कर दिया गया था. शिव रंजन को समझ में नहीं आ रहा है, वो क्या करें. इसी वजह से उन्होंने रेलवे बोर्ड के सामने आत्मदाह करने की घोषणा की थी, लेकिन जीआरपी अधिकारियों के आग्रह पर उन्होंने अपना फैसला बदल लिया है, लेकिन उन्हें अब भी उस दिन का इंतजार है, जब रेलवे की ओर से उन्हें नौकरी दी जाये.
शिव रंजन का कहना है कि उन्होंने एएसएम पद की परीक्षा पास की थी. जीआरपी प्रभारी प्रमोद कुमार के बुलाने पर शिव रंजन सिंह को सोमवार को मुजफ्फरपुर आये थे. यहां वे मौर्य एक्सप्रेस से आये और जीआरपी में पहुंचे. जीआरपी प्रभारी के समक्ष शिव रंजन ने बताया कि उन्होंने एक जून 1997 को रेलवे के एएसएम पद के लिये परीक्षा दिया था. इसमें वह पास थे.
इसके बाद उनका अक्तूबर 1998 में साइको टेस्ट हुआ, जिसमें उन्हें रेलवे भरती बोर्ड ने अनफिट करार दे दिया, लेकिन उन्हें विश्वास था कि वह साइको टेस्ट में भी पास हो गये हैं. इसके बाद उन्होंने रेलवे भरती बोर्ड से फिर से संपर्क साधा, तो वहां एक कर्मचारी ने उनसे एक लाख रुपये मांगे. जिसे शिव रंजन नहीं दे सके.
आरटीआइ से हुआ खुलासा
शिवरंजन ने बताया कि उन्होंने सच्चई जानने के लिए आरटीआइ का सहारा लेना का फैसला किया. इसमें उन्होंने साइको टेस्ट में उत्तीर्ण हुए छात्रों की सूची रेलवे भरती बोर्ड से मांगी. उनको जो जानकारी मिली वे देख कर दंग रह गये. सूची में जो अभ्यर्थी उनके साथ साइको टेस्ट में बैठे थे. उनका रोल नंबर 2575, 2867, 2979 था, उन्हें जीरो नंबर आने के बाद भी फिट करार दिया गया था, जबकि शिवरंजन को चार अंक मिलने के बाद भी अनफिट करार कर दिया गया था. इसके बाद शिवरंजन ने रेलवे भरती बोर्ड के अधिकारियों से संपर्क साधा, लेकिन उन्होंने भी कुछ मदद करने इनकार कर दिया.
2000 से कोर्ट में मामला
शिवरंजन ने 2000 में न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. न्यायालय ने रेलवे भरती बोर्ड से साइको परीक्षा की पूरी फाइल मांगी, लेकिन रेलवे भरती बोर्ड ने न्यायालय को जबाव भेजा कि फाइल नहीं मिल रही है. शिवरंजन ने बताया कि इस दौरान वे तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार से भी मिले. वहां भी उन्होंने सभी कागजात दिखाये. रेल मंत्री ने आश्वासन दिया कि मामले की जांच करायी जायेगी और नौकरी उन्हें मिलेगी. सालों इंतजार करने के बाद शिव रंजन को जब कोई आशा नहीं दिखी तो वह एक बार फिर रेल मंत्री से मिलने पहुंचे, लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया गया. अंत में शिव रंजन ने तय किया कि वह न्याय के लिये रेलवे भरती बोर्ड के सामने आत्मदाह कर लेंगे.
आत्मदाह की सूचना मिलने पर शिव रंजन को धनबाद से बुलाया गया. शिव रंजन से बात की गयी कि कहीं, वह दिमागी रूप से बीमार तो नहीं है, लेकिन वह पूरी तरह फिट है. शिव रंजन को समझाने के बाद उसने आत्मदाह करने का फैसला बदल दिया है. उसने लिख कर दिया है कि वह अभी आत्मदाह नहीं करेगा. उसने अपने सभी कागजात भी दिया है. उसके कागजात रेलवे भरती बोर्ड भेजे जायेंगे.
प्रमोद कुमार, जीआरपी प्रभारी
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