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राष्ट्रपति के यहां नहीं जायेगी लीची
मुजफ्फरपुर: मौसम व बीमारी की मार ङोल रही लीची इस बार राष्ट्रपति के यहां भी नहीं जायेगी. इससे संबंधित फैसला जिला प्रशासन की ओर से लिया गया है. इससे पहले राष्ट्रपति के यहां लीची भेजे के लिए अधिकारियों ने कई प्रखंडों का दौरा किया, लेकिन कहीं भी ऐसी लीची नहीं मिल पायी, जिसे राष्ट्रपति के […]
मुजफ्फरपुर: मौसम व बीमारी की मार ङोल रही लीची इस बार राष्ट्रपति के यहां भी नहीं जायेगी. इससे संबंधित फैसला जिला प्रशासन की ओर से लिया गया है. इससे पहले राष्ट्रपति के यहां लीची भेजे के लिए अधिकारियों ने कई प्रखंडों का दौरा किया, लेकिन कहीं भी ऐसी लीची नहीं मिल पायी, जिसे राष्ट्रपति के यहां भेजा जा सके. दिल्ली जानेवाली लीची राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री, अन्य नेताओं व अधिकारियों के यहां जाती है.
शुक्रवार तक लीची की खोज में अधिकारी चार प्रखंडों के प्रगतिशील किसानों से संपर्क कर चुके थे. उनके बागों को देख चुके थे, लेकिन कहीं भी ऐसी लीची नहीं मिली, जिसे दिल्ली भेजा जा सके. इसके बाद शनिवार को भी लीची की खोज की गयी. कांटी, मीनापुर, पारू व सरैया में लीची की तलाश हुई है, लेकिन कहीं भी अच्छी लीची नहीं मिल सकी. इसके बाद बैठक हुई, जिसमें लीची उत्पादकों, निर्यातकों, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ अमरेंद्र कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी सुधीर कुमार, सहायक निदेशक उद्यान राधेश्याम ने भाग लिया. बैठक में डीडीसी कंवल तनुज भी मौजूद थे. इसमें विशेषज्ञों का कहना है कि पांच में से तीन लीची में पिल्लू है. ऐसे में लीची भेजना ठीक नहीं है. बैठक में सभी स्थानों से आयी शाही लीची का मुआयना किया गया. इस दौरान ये भी पाया गया कि लीची में छिलका व गुठली है, लेकिन पल्प कम है.
बैठक में कहा गया कि अगर इस लीची को दिल्ली भेजा भी जायेगा, तो वहां से इसके लौट आने की संभावना काफी है. इससे पहले लीची की प्रोसेसिंग कर निर्यात करनेवाले राज कुमार केडिया ने दिल्ली भेजने के लिए लीची देने से इनकार कर दिया था, उन्होंने लीची में फंगस व पिल्लू की शिकायत की थी. पिछले सालों में केडिया के यहां से ही प्रोसेसिंग होकर लीची को दिल्ली ले जाया जाता रहा है. दिल्ली पांच हजार किलो लीची भेजी जाती रही है, लेकिन इस बार ये परंपरा टूट जायेगी.
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