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पैसे लेकर दिन भर इधर-उधर भटकता रहा मेराज

मुजफ्फरपुर: कोर्ट परिसर में लगी राष्ट्रीय लोक अदालत में पंजाब एंड सिंध बैंक का कोई अधिकारी शामिल नहीं हुआ. इसका खामियाजा एक 12 साल पुराने ऋण धारक मो. मेराज को भुगतना पड़ा. वह बैग में ऋण चुकता करने की मोटी राशि लेकर दिन भर इस बेंच से उस बेंच दौड़ता रहा. इसके बाद भी उसके […]

मुजफ्फरपुर: कोर्ट परिसर में लगी राष्ट्रीय लोक अदालत में पंजाब एंड सिंध बैंक का कोई अधिकारी शामिल नहीं हुआ. इसका खामियाजा एक 12 साल पुराने ऋण धारक मो. मेराज को भुगतना पड़ा. वह बैग में ऋण चुकता करने की मोटी राशि लेकर दिन भर इस बेंच से उस बेंच दौड़ता रहा. इसके बाद भी उसके मामले का निष्पादन नहीं हुआ. शाम में निराश होकर वह घर लौट गया.

कुढ़नी प्रखंड के लुक्की नंदलाल पुर निवासी मो. मेराज ने बताया कि 2002 में उसने पंजाब एंड सिंध बैंक की मोतीझील शाखा से प्रधानमंत्री ग्रामीण स्वरोजगार योजना से एक लाख रुपये ऋण लिया था. वह नाबालिग था, इसलिए बैंक ने उसके पिता के नाम की जमीन मॉरगेज रखा था. ऋण की राशि में दस हजार रुपये अनुदान था. 90 हजार रुपये ऋण आज मूलधन व ब्याज सहित 3.67 लाख हो चुका है.

इस ऋण का हिसाब चुकता करने के लिए वह गत वर्ष लगी पहली राष्ट्रीय लोक अदालत में भी आया था, लेकिन संयोग से उस अदालत में भी बैंक का कोई अधिकारी शामिल नहीं हुआ, तब कई बार बैंक शाखा में जाकर समझौता के लिए अपील की. इसके बाद भी उसके मामले का निष्पादन नहीं हुआ. इस बार उसे उम्मीद थी कि ऋण मामले का समझौता हो जायेगा व उसे मुक्ति मिल जायेगी. मगर ऐसा नहीं हुआ. उसका यह भी कहना था कि वह गरीब है. ऋण की राशि का ब्याज बहुत हो गयी है. एक समझौता के तहत वह पूरी राशि को एकमुश्त चुका देना चाह रहा था. हार कर उसने अधिवक्ता डॉ संगीता शाही के माध्यम से प्राधिकार के सचिव से शिकायत की.

रबिया को मिली राहत

लोक अदालत में पक्की सराय की राबिया खातून न्याय मिलने से काफी खुश थीं. उसके पड़ोसी मो. लड्डू ने 65000 रुपये उधार लिया था, जिसे देने में आनाकानी कर रहा था. रबिया ने अपने अधिवक्ता अमित प्रकाश श्रीवास्तव के माध्यम से इस मामले में आपसी समझौता किया. उधर, करजा के दुकानदार संदीप कुमार को बिजली बोर्ड के चोरी मामले में मुक्ति मिल गयी. उसका कोर्ट में ट्रायल चल रहा था. उसने 10 हजार रुपये सुलहनामा राशि जमा कर मामले से मुक्ति पा ली. संदीप पर 26 हजार रुपये के जुर्माने की मुकदमा थी.

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