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विवि से जारी ‘छूट’ प्रमाण पत्र अमान्य!

मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि की ओर से जारी प्रमाण पत्र एक बार फिर सवालों के घेरे में है. मामला 10 जुलाई 2009 से पूर्व शोध पूरा कर चुके शोधकर्ताओं का है. विवि प्रशासन ने ऐसे एक हजार से अधिक शोधकर्ताओं को यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत ‘छूट प्रमाण पत्र’ (एक्जम्पटेड सर्टिफिकेट) जारी किया है. इस […]

मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि की ओर से जारी प्रमाण पत्र एक बार फिर सवालों के घेरे में है. मामला 10 जुलाई 2009 से पूर्व शोध पूरा कर चुके शोधकर्ताओं का है. विवि प्रशासन ने ऐसे एक हजार से अधिक शोधकर्ताओं को यूजीसी रेगुलेशन 2009 के तहत ‘छूट प्रमाण पत्र’ (एक्जम्पटेड सर्टिफिकेट) जारी किया है.

इस प्रमाण पत्र को जारी करने के लिए 12 अगस्त 2010 व 27 सितंबर 2010 को क्रमश: यूजीसी की 471 वीं व 472 वीं बैठक के फैसले को आधार बनाया गया था.

विवि की पीजीआरसी ने भी इस पर सहमति दी थी. हकीकत यह है कि यूजीसी की इन दो बैठकों में छूट से संबंधित कोई फैसला नहीं लिया गया था, बल्कि छूट पर विचार विमर्श किया गया था. केंद्र सरकार ने तीन नवंबर 2010 को पत्र जारी किया था, जिसमें इन दोनों बैठकों की प्रोसिडिंग को मंजूरी मिली ही नहीं थी.

इसका खुलासा लोक सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत यूजीसी के अवर सचिव सह जन सूचना अधिकारी सतीश कुमार के दिये गये जवाब से हुआ है. नया टोला निवासी अमित कुमार ने आरटीआइ के तहत असिसटेंट प्रोफेसर या लेक्चरर की बहाली में शैक्षणिक योग्यता व छूट से संबंधित जानकारी मांगी थी. इसका जवाब उन्हें 12 नवंबर 2013 को मिला था. इसमें यूजीसी की ओर से 12 अक्तूबर 2012 को जारी की गयी पब्लिक नोटिस की कॉपी भी संलग्न है.

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