मुजफ्फरपुर : पॉलीथिन बैग भले ही हम अपनी सुविधा के लिए करते हैं. लेकिन यह हमारे लिये भी जान लेवा है. पॉलीथिन बैग को प्रकृति स्वीकार नहीं कर पाती. जमीन में यह वर्षो तक दबा रहे तब भी यह नष्ट नहीं होता. नतीजा जमीन बंजर हो जाती है.
यदि इसे जलाया जाये तो इससे निकलने वाला कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं डाईऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें सांस व त्वचा संबंधी बीमारियां पैदा करती है. डॉक्टरों का मानना है कि पॉलीथिन बैग किसी भी लिहाज से हित कर नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि इसे घर में रखा जा सके. रोजमर्रा की सामान खरीद कर लोग इसे कचरे में फेंक देते हैं. जब यह कचरा के साथ जलता है तो आसपास के लोगों के लिए बीमारियों को जन्म देता है.
एक अध्ययन से इस बात की पुष्टि हुई है कि पॉलीथिन के विषैलेपन के कारण इसके अधिक संपर्क में रहने वाली स्त्रियों के गर्भ में शिशु का विकास रु क जाता है व अविकिसत संतान पैदा होने का खतरा बढ जाता है. यह प्रजनन अंगों को भी नुकसान पहुंचा रहा है. इसमें प्रयोग होने वाला बिस्फेनॉल रसायन शरीर में डायिबटीज व लीवर एंजाइम को असामान्य कर देता है.
जिससे डायिबटीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ रही है. इसके कचरे के दुष्प्रभाव के कारण लाखो जीवों की मौत एक वर्ष में हो जाती है. ओजोन की परत में हुए छेद का मुख्य कारण पॉलीथिन व प्लास्टिक को ही माना जा रहा है. लेकिन हम इसके खतरे को जानते हुए भी सजग नही हों रहे हैं.
* पॉलीथिन बहुत हानिकारक है. इससे होने वाले खतरे शुरू में पता नहीं चलता. यह जितना मानव के लिए नुकसानदेह है, उतना प्रकृति के लिए भी. सबसे अधिक खतरा इसके जलने से होता है. इससे उत्पन्न होने वाली रसायनिक गैसें सांस संबंधी रोग सहित कैंसर भी उत्पन्न करती है. जिन लोगों को पहले से दमा की बीमारी है, उनके लिए तो यह और भी घातक है
डॉ सुमन कुमार, फिजिशियन