लंबित मामलों में कुछ मामले 5-8 साल पुराने हैं. ऐसे वाहन मालिकों का कहना है कि वह एनओसी लेकर साथ में इंट्री कराने के लिए कागजात जमा कराते हैं. लेकिन उनके द्वारा लाये गये एनओसी (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) की फिर से जांच की जाती है. परिवहन नियम के अनुसार जब तक वाहन मालिकों द्वारा दिये गये एनओसी की विभागीय स्तर पर जांच नहीं हो जाती है, तब तक उन वाहनों का स्थानीय स्तर पर इंट्री नहीं हो सकती है. जांच के लिए स्थानीय कार्यालय से संबंधित परिवहन कार्यालय को चिट्ठी जारी की जाती है, जहां से एनओसी जारी हुई है. वहां से सत्यापन की चिट्ठी स्थानीय कार्यालय में आने पर ही वाहनों की इंट्री की जाती है.
जिन मामलों में देरी होती है, उसमें परिवहन विभाग द्वारा दोबारा जांच के लिये रिमाइंडर भेजा जाता है. लेकिन उनका जवाब नहीं मिला है और जिस एनओसी का जवाब नहीं मिलता है, ऐसे में स्थानीय परिवहन कार्यालय में वाहन की इंट्री नहीं होती है. ऐसे वाहन मालिकों को लगता है कि उन्हें जबरन दौड़ाया जा रहा है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. इस परेशानी से बचने के लिए कुछ वाहन मालिकों ने खुद से उस चिट्ठी की कॉपी लेकर संबंधित कार्यालय से उसकी जांच का जवाब भिजवा कर अपने वाहनों की इंट्री करवा चुके हैं.