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नये साल के पहले दिन इन जगहों पर मनाएं पिकनिक

नये साल के पहले दिन आप परिवार के साथ ऐतिहासिक या आध्यात्मिक जगहों पर पिकनिक मनाना चाह रहे हों, तो आपको ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं. शहर के आसपास ही ऐसे कई स्थल हैं, जहां नये साल का पहला दिन परिवार के संग गुजारा जा सकता है. इनमें कुछ स्थान तो जिले में हैं, […]

नये साल के पहले दिन आप परिवार के साथ ऐतिहासिक या आध्यात्मिक जगहों पर पिकनिक मनाना चाह रहे हों, तो आपको ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं. शहर के आसपास ही ऐसे कई स्थल हैं, जहां नये साल का पहला दिन परिवार के संग गुजारा जा सकता है. इनमें कुछ स्थान तो जिले में हैं, जबकि कुछ 150 किमी की दूरी पर है. पूरा दिन घूमने के बाद शाम में वापस लौटा भी जा सकता है. यहां शहर के ऐसे ही कुछ स्थलों का जिक्र किया जा रहा है.

वैशाली
सड़क मार्ग से दूरी : 37 किमी.
ऐतिहासिक महत्व : वैशाली को नगर वधू आम्रपाली की भूमि के रूप में भी जाना जाता है. कई लोक कथाओं के साथ-साथ बौद्ध साहित्य में भी इसका वर्णन है. आम्रपाली बुद्ध की शिष्या बन गयी थी. मनुदेव संघ के लिच्छवी कबीले के प्रसिद्ध राजा थे, जिन्होंने वैशाली में उसके नृत्य प्रदर्शन को देखने के बाद आम्रपाली के पास रहना चाहा.
वैशाली को 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म स्थल का गौरव भी प्राप्त है. जैन धर्मावलंबियों के लिए वैशाली काफी महत्त्‍वपूर्ण है. यहीं पर 599 ईसा पूर्व में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्‍म कुंडलपुर (कुंडग्राम) में हुआ था. वज्जिकुल में जन्में भगवान महावीर यहां 22 वर्ष तक रहे.
चामुंडा स्थान
सड़क मार्ग से दूरी- 30 किमी
कटरा गढ़ में शक्तिपीठ चामुंडा स्थान स्थित है. देवी चामुंडा का स्वरूप पिंडनुमा है, जो स्वअंकुरित बताया जाता है. यहां सालों भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है. माना जाता है कि यहीं पर चंड और मुंड का वध हुआ था.
देवी पूजन के लिए सोमवार, बुधवार और शुक्रवार का दिन शुभ माना जाता है, इसलिए इन दिनों भीड़ अधिक होती है. शास्त्रीय आख्यानों के अनुसार चंड-मुंड असुर का संहार देवी ने इसी स्थल पर किया, जहां वे विराजमान हैं. तभी से वे चामुंडा कहलायीं. कहते हैं कि इस ऐतिहासिक स्थल पर चंद्रवंशी राजाओं का साम्राज्य था. 13वीं सदी में चंद्रसेन सिंह नामक राजा यहां राज्य करता था और माता चामुंडा की आराधना कुलदेवी के रूप में करता था.
केसरिया स्तूप
सड़क मार्ग से दूरी – 69.4 किमी
यह केसरिया साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास स्थित है. यह पुरातात्विक महत्व का प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है. यहां एक वृहद बौद्धकालीन स्तूप है, जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है. केसरिया एक महत्‍वपूर्ण बौद्ध स्‍थल है. इसका इतिहास काफी पुराना व समृद्ध है. बौद्ध तीर्थस्‍थलों में इसका महत्‍वपूर्ण स्‍थान है.
बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाते हुए एक रात केसरिया में बितायी थी और लिच्‍छवियों को अपना भिक्षा-पात्र प्रदान किया था. कहा जाता है कि जब भगवान बुद्ध यहां से जाने लगे तो लिच्‍छवियों ने उन्‍हें रोकने का काफी प्रयास किया, लेकिन जब लिच्‍छवी नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने उन्‍हें रोकने के लिए नदी में कृत्रिम बाढ़ उत्‍पन्‍न की. इसके बाद ही भगवान बुद्ध यहां से जा पाने में सफल हो सके थे.
सम्राट अशोक ने यहां एक स्‍तूप का निर्माण करवाया था. इसे विश्‍व का सबसे बड़ा स्‍तूप माना जाता है.
वाल्मीकि आश्रम
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने वन क्षेत्र से होकर गुजरने वाले रास्ते के द्वारा नेपाली क्षेत्र में वाल्मीकि आश्रम स्थापित है. जो भारत नेपाल सीमा पर स्थित है और महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली है. माता सीता ने लव कुश जैसे वीर बालकों को यही जन्म दिया था. माता सीता ने यही पताल प्रवेश भी किया.
कैनोपी वाक
वाल्मीकि नगर में वाल्मीकि बिहार होटल से लगभग 500 मीटर की दूरी पर शॉर्टकट रास्ते के रूप में महाकालेश्वर मंदिर दर्शन करने का यह एकमात्र रास्ता है, जो कैनोपी वाक से होकर गुजरता है. इस कैनेपी वॉक को रोपवे कहना ज्यादा उचित होगा. यह लगभग 500 मीटर लंबा है. बिना पाये के हवा में झूलता रहता है.
इको पार्क
आकर्षण का केंद्र होगा चंपापुर पोखरा : दिसंबर माह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा उद्घाटन के पश्चात चंपापुर पोखरा अपनी अद्भुत सुंदरता बिखेर रहा है. जहां शांत वातावरण व गंवई माहौल में पोखरा के किनारे लगे हजारों हरे भरे पौध व चबूतरे नव वर्ष पर सज धज कर अतिथियों के स्वागत को तैयार बैठे हैं.
ट्री हट
वाल्मीकिनगर में ठहरने के स्थान : वाल्मीकिनगर में वैसे तो ठहरने के कई स्थान इन दिनों पर्यटकों को लुभा रहे हैं. किंतु वन प्रशासन द्वारा तैयार वाल्मीकि बिहार होटल के वातानुकूलित व सामान्य कमरे जंगल कैंप परिसर में बने चार वातानुकूलित कमरे, ट्री हट, बंबू हट, पर्यटकों के आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं. जिनकी ऑनलाइन बुकिंग के द्वारा आरक्षण कराया जा सकता है.

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