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घने कोहरे ने यातायात में डाली खलल, ठंड बरकरार

मुंगेर: बीते एक पखवारे से जहां ठंड ने अपनी रफ्तार को बरकरार रखा है. वहीं कोहरे ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. मंगलवार की सुबह घने कोहरे ने सड़क से लेकर रेल यातायात को बाधित किया. यहां तक कि गंगानदी में स्टीमर सेवा व नौका परिचालन भी प्रभावित हुई. प्रात: 7:30 बजे खुलने […]

मुंगेर: बीते एक पखवारे से जहां ठंड ने अपनी रफ्तार को बरकरार रखा है. वहीं कोहरे ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. मंगलवार की सुबह घने कोहरे ने सड़क से लेकर रेल यातायात को बाधित किया. यहां तक कि गंगानदी में स्टीमर सेवा व नौका परिचालन भी प्रभावित हुई. प्रात: 7:30 बजे खुलने वाले स्टीमर लगभग 10 बजे खुली. सड़क मार्ग पर चलने वाले वाहन घने कोहरे की वजह से दिन में भी लाइट जलाकर चलते नजर आये.

साथ ही वाहनों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में काफी विलंब हुआ. कोहरा इतना घना था कि 10-15 मीटर से अधिक दूरी की चीजें दिखाई नहीं पड़ रही थी. पैदल चलने वाले राहगीरों को काफी सतर्कता के साथ सड़क पार करना पड़ रहा था. रेल मार्ग की यदि बात की जाय तो ट्रेनों को दूर से सिगनल दिखाई नहीं पड़ने के कारण रफ्तार को धीमा करना पड़ा. जिसके कारण लगभग ट्रेनों का परिचालन में विलंब पाया गया. वहीं जहाज घाट से खुलने वाली स्टीमर नीयत समय पर खुलने के बाद भी काफी विलंब से गंगा पार किया. साथ ही घने कोहरे के कारण गंगा में चलने वाली नौकाओं की संख्या काफी कम पायी गयी.

शीतलहर से नहीं मिल रहा निजात . दिन प्रतिदिन तापमान में भले ही ऊतार-चढ़ाव देखा जा रहा है. किंतु लोगों को शीतलहर से फिलहाल निजात नहीं मिल पायी है. दिन में धूप तो निकला हुआ रहता है लेकिन मौसम ठंड का एहसास कराने से बाज नहीं आती. शाम होते ही कनकनी अपना डेरा डाल देती है. जिसके कारण लोगों को अलाव का सहारा लेना पर रहा है. कड़ाके की ठंड में लोग शाम होते ही अपने-अपने घर पहुंचना ही मुनासिब समझते हैं. सुबह घर से निकलने में लोग परहेज कर रहे हैं.

अलाव की अल्प व्यवस्था . एक ओर जहां राज्य सरकार द्वारा जिले में पूर्व से ही अलाव की व्यवस्था के लिए राशि उपलब्ध करा दी गयी. वहीं विभागीय उदासीनता के कारण शहर में अलाव की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण मजदूरों में काफी आक्रोश है. बस स्टैंड हो या सरकारी अस्पताल, रेलवे स्टेशन हो या फिर रिक्शा पड़ाव एक भी जगह अलाव की पर्याप्त व्यवस्था देखने को नहीं मिल रही है. रिक्शा चालक कमलेश राम, राघो मंडल, संतोष कुमार, अजय साह सहित अन्य मजदूरों ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा प्रतिदिन अलाव की व्यवस्था नहीं की जाती है. किसी-किसी दिन शाम में चार-पांच किलोग्राम लकड़ी बस स्टैंड व रिक्शा पड़ाव में जला दिया जाता है. जो महज एक-डेढ़ घंटे में अपना दम तोड़ देती है. जबकि रिक्शा चालक यात्रियों की सेवा व अपने पेट के खातिर देर रात तक कड़ाके की ठंड व शीतलहर के बीच जूझते रहते है.

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