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वाइब्रेटर के शोर में जच्चा-बच्चा का दम घुट रहा, नहीं हुई वैकल्पिक व्यवस्था

मुंगेर : पिछले कई महीनों से सदर अस्पताल स्थित प्रसव केंद्र के विस्तारीकरण का कार्य चल रहा है. जिसको लेकर प्रसव केंद्र के उपरी तल पर कंस्ट्रक्शन का कार्य लगभग पूरा होने के उपरांत अब प्रसव केंद्र के भीतर रिमॉडलिंग का कार्य आरंभ किया गया है. जिसके कारण यहां लगातार वाइब्रेटर से दीवारों की कटिंग […]

मुंगेर : पिछले कई महीनों से सदर अस्पताल स्थित प्रसव केंद्र के विस्तारीकरण का कार्य चल रहा है. जिसको लेकर प्रसव केंद्र के उपरी तल पर कंस्ट्रक्शन का कार्य लगभग पूरा होने के उपरांत अब प्रसव केंद्र के भीतर रिमॉडलिंग का कार्य आरंभ किया गया है. जिसके कारण यहां लगातार वाइब्रेटर से दीवारों की कटिंग की जा रही है. जिससे काफी शोर होता है. वाइब्रेटर के शोर के बीच यहां भरती जच्चा-बच्चा को घुटन सा महसूस हो रहा है.

मालूम हो कि ध्वनि प्रदूषण से न केवल बहरे होने की संभावना बढ़ जाती है, बल्कि लोग याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसी बीमारियों के अलावा नपुंसकता और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में भी आ सकते हैं. बावजूद अस्पताल प्रशासन द्वारा प्रसव केंद्र के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जा रही है.
जच्चा-बच्चा के धड़कन को तेज कर रहा वाइब्रेटर का शोर: नियमों के अनुसार कंस्ट्रक्शन कार्य रिमॉडलिंग कार्य के पूर्व कार्य स्थल को खाली करा लिये जाने का प्रावधान है.
ताकि कार्य के दौरान किसी प्रकार के दुर्घटनाओं की संभावना न रहे. किंतु सदर अस्पताल में ऐसे नियमों के कोई मायने नहीं हैं. पिछले कई महीनों से यहां पर बीएमआईसीएल द्वारा लगातार कंस्ट्रक्शन का कार्य किया जा रहा है.
जिसके कारण प्रसव केंद्र एक कबाड़खाने में तब्दील हो गयी है. वहीं कंस्ट्रक्शन का कार्य लगभग पूरा हो जाने के बाद पिछले एक महीने से प्रसव केंद्र के भीतर रिमॉडलिंग का कार्य चल रहा है. जिसके लिए अंदर में कई जगहों पर दीवारों को तोड़े जा रहे हैं तथा दीवारों की कटिंग की जा रही है. जिसके लिए तीव्र ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले वाईवरेटर का प्रयोग किया जा रहा है.
वाईवेरेटर के शोर से यहां भरती जच्चा-बच्चा के दिल की धड़कन काफी तेज हो जाती है. यहां फैलाये जा रहे ध्वनि प्रदूषण के कारण प्रसूती माताओं के साथ-साथ जन्म लेने वाले नवजातों के स्वास्थ्य भी बुरा असर पड़ सकता है. इतना ही नहीं प्रसव केंद्र के भीतर कार्य होने के कारण यहां हमेशा धूल व गंदगी की स्थिति बनी रहती है, जो कि जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है.
क्या होता है ध्वनि प्रदूषण : मनुष्य के कान 20 हर्ट्ज से लेकर 20000 हर्ट्ज वाली ध्वनि के प्रति संवेदनशील होते हैं. ध्वनि का मानक डेसीबल होता है, सामान्यतया 85 डेसीबल से तेज ध्वनि को कार्य करने में बाध्यकारी माना जाता है, जो कि ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आता है
. जैसे-जैसे ध्वनि की गति 85 डेसीबल से अधिक बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे धवनि प्रदूषण भी परवान चढ़ते जाता है. वहीं वाईवरेटर जैसे यंत्रों की बात करें तो इसकी ध्वनि जेनरेटर के शोर से भी अधिक खतरनाक मानी जाती है. ऐसे ध्वनि से न सिर्फ मरीज, बल्कि स्वस्थ लोगों को भी बचना चाहिए, वरना यह स्वस्थ व्यक्ति को भी बीमार बना सकती है.

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