मधुबनी : आम जनता को त्वरित व सुलभ न्याय को आयोजित हो रहे राष्ट्रीय लोक अदालत लोगों के लिए काफी अहम माना जा रहा है. न्यायालय से मिली जानकारी के अनुसार चालू साल के मात्र दो लोक अदालत में जहां 974 मामलों का निष्पादन किया गया वहीं विभिन्न मामलों के तहत करीब तीन करोड़ 37 […]
मधुबनी : आम जनता को त्वरित व सुलभ न्याय को आयोजित हो रहे राष्ट्रीय लोक अदालत लोगों के लिए काफी अहम माना जा रहा है. न्यायालय से मिली जानकारी के अनुसार चालू साल के मात्र दो लोक अदालत में जहां 974 मामलों का निष्पादन किया गया वहीं विभिन्न मामलों के तहत करीब तीन करोड़ 37 लाख से अधिक रुपये पर उपभोक्ताओं से समझौता किया गया
तो करीब डेढ़ करोड़ रुपये तत्काल वसूल भी किये गये. ये राशि ऐसे थे जिसे भुगतान करने में उपभोक्ताओं व विभागों के बीच सालों से मामला उलझा हुआ था. पर राष्ट्रीय लोक अदालत में सुनवाई कर एक तो मामलों का त्वरित निष्पादन कर दिया गया. वहीं विभागों व उपभोक्ताओं के बीच चल रहा खींचातानी भी समाप्त हो गया.
974 मामलों का निष्पादन . चालू सत्र में अब तक दो बार राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकार के निर्देश पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार के तत्वावधान में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया है. इसमें पहला लोक अदालत बीते 11 फरवरी को किया गया था. जिसमें कुल 700 मामलों का निपटारा करते हुए दो करोड़ 38 लाख रुपये से अधिक पर समझौता हुआ.
वहीं 90 लाख से अधिक रुपये कि तत्काल पक्षकारों से वसूल की गई. जबकि दूसरा लोक अदालत 8 अप्रैल को किया गया. इसमें विभिन्न मामलों में समझौता के आधार पर 274 मामलों में 99 लाख 29 हजार 839 रुपये पर समझौता करते हुए तत्काल 58 लाख 23 हजार 802 वसूल की गई.
अव्वल रहा स्टेट बैंक. राष्ट्रीय लोक अदालत में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सबसे अधिक 426 मामलों का निपटारा करते हुए एक करोड़ 84 लाख 88 हजार हजार 598 रुपये पर समझौता करते हुए 86 लाख 27 हजार 233 रुपये वसूल की गई. वहीं पंजाब नेशनल बैंक 181 मामलों में 83 लाख 12 हजार 916 रुपये पर समझौता करते हुए 27 लाख 32 हजार 809 रुपये वसूल किया. इसी प्रकार सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 92 मामलों में 22 लाख 78 हजार 700 रुपये पर एक लाख ग्यारह हजार एक सौ रुपये वसूल किया गया.
बैंक ऋणधारकों को हो रहा फायदा. लोक अदालत बैंक ऋण धारकों के लिये फायदेमंद साबित हो रहा है. सालों से लंबित ऋण व व्याज की रकम अधिक हो जाने के कारण ऋण चुकता करने में असमर्थ हो चुके ऋण धारक सहूलियत के साथ लोक अदालत में ऋण का समझौता कर चुकता कर रहे हैं.
वहीं, इससे बैंकों भी काफी अधिक सहूलियत हो रही है. बैंकों को भी अपने ऋण की वसूली के लिये बार बार ना तो उपभोक्ताओं के पास जाने की जरूरत हो रही है और ना ही कोर्ट कचहरी के मामले होने के कारण उन्हें अपने कर्मियों को भेजना पड़ रहा है.
तीन करोड़ से अधिक पर समझौता, डेढ़ करोड़ से अधिक की हुई वसूली
राष्ट्रीय लोक अदालत बन रही वरदान