मधुबनीः बिहार के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व छठ की महिमा के संबंध में बहुत सारे पौराणिक आख्यान उपलब्ध है. छठ के घाट पर कथा में भी इस महिमा का उल्लेख होता है.लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य जो गौण रह जाता वह है नारी सशक्तीकरण के प्रति छठ पर्व की प्रासंगिकता.
संभवत: भारतीय पर्व त्योहारों में छठ ही एक मात्र पर्व है जिसमें व्रती छठ मैया से संतान के रूप में बेटी देने का आग्रह करती हैं.’रूनकी-झुनकी बेटी दियù, पंडित पढ़ल जमाय’ छठ मैया के गीत की इन पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि इस पर्व में नारी सशक्तीकरण को धार्मिक स्वीकृति प्रदान करने की कोशिश किस हद तक की गयी है. वैसे सूर्योपासना के पर्व छठ को छठ मैया या छठ परमेश्वरी बना कर स्त्री रूप में पूजा कब से शुरू हो गयी.
यह तो पता नहीं लेकिन शताब्दियों से यह परंपरा चली आ रही है. मिथिला में मध्यकाल से ही मौजूद नारी सशक्तीकरण के तत्वों की सुदृढ़ता का ही प्रतिफल है कि नाग पंचमी से लेकर मधुश्रवणी तक 14 दिवसीय नवविवाहिता द्वारा की जाने वाली पूजा में प्राय: पुरूष प्रवेश पूर्णत: वजिर्त होता है. इसी तरह जीमूत वाहन महाराज की पूजा और व्रत महिलाएं ही करती हैं. लेकिन मधुश्रवणी व्रत और जीमूतवाहन(जिउतिया) व्रत क्रमश: पति और पुत्र के लिये की जाती है जबकि छठ व्रत पुत्री के लिये की जाती है. इससे बड़ा नारी सशक्तीकरण का उदाहरण और क्या हो सकता है.