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बच्चों के बचे कपड़े देख चीख उठती है सुजाता
मधुबनी/हरलाखी : जटही से दरभंगा जा रही संगम ट्रेवल्स बस में बैठी सुजाता श्रेष्ट रह रहकर सुबक जाती. आंखों से बहती आंसू और झोला में रखें बच्चों के कपड़े को देखकर अचानक बिलख जाती थी. बगल की सीट पर बैठे लोग ढांढ़स बंधाते तो वह चुप हो जाती थी, लेकिन विपदा का तोड़ अपने तीनों […]
मधुबनी/हरलाखी : जटही से दरभंगा जा रही संगम ट्रेवल्स बस में बैठी सुजाता श्रेष्ट रह रहकर सुबक जाती. आंखों से बहती आंसू और झोला में रखें बच्चों के कपड़े को देखकर अचानक बिलख जाती थी.
बगल की सीट पर बैठे लोग ढांढ़स बंधाते तो वह चुप हो जाती थी, लेकिन विपदा का तोड़ अपने तीनों बच्चों व पति को दफनाकर बस में अकेली बैठी थी. ऐसे में उसकी सिसकियां लाजमी थी. संगम ट्रेवल्स में सवार होकर वह समस्तीपुर जिला के रोसड़ा अपनी बहन के यहां जा रही थी.
दरअसल, 25 अप्रैल को आये भूकंप में नेपाल के पोखरा स्थित उसका दोनों मकान व दुकान ध्वस्त हो गया. बताती है कि घर गिरने से उसमें दबकर उसके बच्चों (अक्षर व प्रीति) की मौत हो गयी. वहीं, पति दुकान में दब गये. परिवार के अन्य लोग कहां गये, उसका पता नहीं चल सका. तीन दिनों तक खोजबीन की.
बाद में हार कर बहन के घर जाने के लिए रवाना हुई. इस बस में ऐसे कई लोग थे जो नेपाल से आयी भूकंप में अपना सब कुछ खोकर रिश्तेदार के यहां जा रहे थे. राधे साब इनमें एक थे. भक्तपुर में इनके पिता का किराना व्यवसाय था. व्यवसाय चल निकला था तो सहरसा के किशनपुर में अपने हिस्सा की जमीन बेचकर वहीं बस गये, लेकिन शनिवार की भूकंप में इनका वहां नामोनिशान तक मिट गया.
राधे के माता-पिता, एक छोटा भाई व पत्नी की मकान गिरने से उसके नीचे दबकर मौत हो गयी. अब वहां कुछ नहीं बचा है सिवाय मलवा के. कहता है कि दिन में आये अचानक भूकंप ने किसी को संभलने का मौका नहीं दिया. दुकान पर भीड़ थी और पिताजी उसको निबटाने में जुटे थे.
दुकान के ऊपर ही आवास था. अचानक जमीन हिली और सब कुछ मलवा में तब्दील हो गया. इसी तरह श्री गणोश ट्रेवल्स में बैठे सूर्या देवी व उनके पति देवेंद्र भी आंसुओं के साथ यात्रा कर रहे थे. यह भूकंप पीड़ित दंपति भी पोखरा (नेपाल) के रहने वाला हैं.
फिलहाल अपने ससुराल लखीसराय जा रहे थे. कहते हैं कि पिता शिक्षक थे. घर परिवार पश्चिमी पोखरा में था. भूकंप के दौरान अचानक मकान बैठक गया. मैं और पत्नी बाहर वाले कमरें में थे. दोनों भाग निकले, लेकिन पिता, माता और छोटा भाई नहीं निकल सका.
कुछ समय बाद मलवे को हटाकर मां को जिंदा निकाला, लेकिन उसकी हालत खराब थी. रविवार की देर रात इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी. भूकंप में सब कुछ गंवा कर अब ससुराल जा रहे है. इसी बस में में सवार नेपाली यात्राी अरुण थापा बताते हैं कि हालत बहुत खराब है. पोखरा जीरो माइल में इनका अपना व्यवसाय था. परिवार के साथ रहे थे.
अब सब कुछ खत्म हो चुका है. ये दरभंगा स्थित अपने रिश्तेदार के यहां जा रहे थे. वहीं, सुमन कोइराला एक छात्र है. कहते है कि पोखरा व अन्य प्रभावित इलाकों में लोग अभी दहशत में है. लगातार भूकंप आ रहा है. खाना-पानी व रहने की समस्या जबरदस्त है.
इसी लिए शरण लेने अपने रिश्तेदार के घर जा रहे है. दरअसल, नेपाल में तबाही के बाद हजारों अपनों हाथ और साथ छूट गया है. किसी ने मां बाप को खोया तो कोई भाई व पति. कोई बच्चों को दफना कर आ रहा है तो किसी के पिता का शव जलने का इंतजार कर रहा है. नेपाल से आने वाली बस में ऐसी त्रसदी के अनेक चेहरे दिख जाते है.
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