मधुबनी : दिन के 11.45 बजे मैं सदर अस्पताल के गायनिक ओपीडी में पहुंचा. जहां डा. गार्गी सिन्हा मौजूद थी. उस समय तक डा. श्रीमति सिन्हा द्वारा 145 मरीजों को देखा जा चुका था. जबकि लगभग 50 से अधिक मरीज लाइन खड़े होकर अपनी उपचार का इंतजार कर रही थी. ज्ञात हो कि ओपीडी 8 बजे से 2 बजे चलता है.
इस क्रम में 225 मिनट में 145 मरीज को चिकित्सक द्वारा देखा गया. इस हिसाब से एक मरीज को महज एक मिनट कुछ सेकेंड में चिकित्सक द्वारा देखा जाता है. ऐसे मे किस मरीज की क्या परेशानी है और इसका क्या इलाज होगा, यह किस तरह हो रहा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
आशा का भी है दबदबा. सदर अस्पताल में आने वाले महिला मरीजों को आशा व अन्य महिला दलालों द्वारा यह कहकर कि मैं आशा हूं, चलों तुम्हारा नंबर पहले लगा देती हूं. कहकर लाया जाता है. फिर शुरू होता है उनका आर्थिक शोषण. सदर अस्पताल की विडंबना है कि यहां आने वाली कई आशा बिना ड्रेस कोड के ही यहां आती है.
लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा मूक दर्शक बन इसे देखने के सिवा कोई कार्रवाई नहीं किया जाता है. दर्जनों आशा ऐसी भी है जो कभी भी अपने क्षेत्र में नहीं रहकर दिनभर सदर अस्पताल में अपना समय गुजारती है. डा. गार्गी सिन्हा बताती है कि एक दाई के सहारे 200 महिला मरीजों को संभालना काफी मुश्किल होता है. लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा व्यवस्था को सुदृढ़ करने की अब तक कोई पहल नहीं किया जा रहा है. मेल ओपीडी में तैनात चिकित्सक डा. डीएस मिश्रा द्वारा 11.55 तक मेल ओपीडी के लगभग 100 मरीजों को देखा गया था. जबकि स्कीन ओपीडी के 35 मरीजों को भी इनके द्वारा ही उपचार किया गया.
डा. मिश्रा ने बताया कि ओपीडी के चिकित्सक कक्ष में पंखा भी नहीं है. भीषण गर्मी में भी मरीजों को देखकर उचित सलाह व दवा दिया जा रहा है. इन सभी बिंदुओं पर गौर करें तो सदर अस्पताल में आने वाले मरीजों को भेड़ बकरियों के समान उपचार मुहैया हो रहा है. जबकि सरकार द्वारा प्रति वर्ष करोड़ों रुपये आम आवाम के उपचार के नाम पर खर्च किया जा रहा है. इसके अलावे एक दो चिकित्सक को छोड़ ओपीडी में अधिकांश चिकित्सक 12 व 1 बजे के बीच में ही ओपीडी से रुखसत हो जाते हैं. और मरीज चिकित्सकों की आश में दो बजे तक बैठे रहते है. जब चिकित्सक नहीं आये तो पुन: अपने घर के लिए बिना उपचार कराये ही अगले दिन आने का विचार कर चले जाते है.
पैथोलॉजी में प्रतिदिन दर्जनों महिलाएं जाती हैं वापस
करीब पंद्रह मिनट तक रूकने के बाद हम 12 बजे पैथोलॉजी के पास पहुंचे. लगभग 70 से 75 महिला पुरुष जांच के लिए लाइन में खड़े थे. पैथोलैब के लैब टेक्नीशियन द्वारा 12 बजे तक 86 मरीजों का विभिन्न जांच संबंधी सैंपल लिया गया था. लाइन में खड़े सभी जांच करवाने वाले को शुक्रवार को आने को कहा गया. जिसमें कई मरीज दूर दराज के क्षेत्रों से आते है. ऐसे में पुन: मरीजों का आर्थिक मानसिक शोषण यहां भी होता है. और फिर मरीज को दलालों द्वारा यह कहकर कि कल फिर आना होगा भाड़ा खर्चा लगेगा. चलों हम प्राइवेट संस्था में जांच करवा देते है. जहां दलालों का पूर्व से ही प्रति मरीज कुछ कमीशन फिक्स होता है . ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि दलालों के चंगुल में फंसा है. सदर अस्पताल का ओपीडी के वार्ड.