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साहबों के ऑफिस में नहीं है पेयजल

उदासीनता . पीने के पानी के लिए बस चापाकल, गिलास तक मयस्सर नहीं गरमी परवान पर है. हर आधे घंटे पर गला तर करने की नौबत आ जाती है. ऐसे में सरकारी कार्यालयों में पहुंचने वाले लोग पानी के लिए इधर-उधर मारे फिरते हैं. कोसी क्षेत्र में चापाकल पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं, लेकिन […]

उदासीनता . पीने के पानी के लिए बस चापाकल, गिलास तक मयस्सर नहीं

गरमी परवान पर है. हर आधे घंटे पर गला तर करने की नौबत आ जाती है. ऐसे में सरकारी कार्यालयों में पहुंचने वाले लोग पानी के लिए इधर-उधर मारे फिरते हैं. कोसी क्षेत्र में चापाकल पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं, लेकिन पानी में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण हल्की बदबू होती है. लेकिन जब प्यास लगती है तो कुछ नहीं दिखता बस किसी तरह पानी मिल जाये. बस स्टैंड पर रोज हजारों यात्री पहुंचते हैं लेकिन शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं है. समाहरणालय
में कूलिंग मशीन है लेकिन यहां तक आम आदमी की पहुंच नहीं. सबसे खास बात यह है कि लोग पानी कैसे पियेंगे इसका खयाल कहीं भी नहीं रखा गया. चापाकल चालू है पर वहां कोई गिलास या अन्य बरतन नहीं है. लिहाजा लोग चुल्लू से पानी पीते हैं.
मधेपुरा : गरमी परवान पर है. हर आधे घंटे पर गला तर करने की नौबत आ जाती है. ऐसे में सरकारी कार्यालयों में पहुंचने वाले लोग पानी के लिए इधर-उधर मारे फिरते हैं. कोसी क्षेत्र में चापाकल पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं, लेकिन पानी में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण हल्की बदबू होती है. लेकिन जब प्यास लगती है तो कुछ नहीं दिखता बस किसी तरह पानी मिल जाये. बस स्टैंड पर रोज हजारों यात्री पहुंचते हैं लेकिन शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं है. समाहरणालय
में कूलिंग मशीन है लेकिन यहां तक आम आदमी की पहुंच नहीं. सबसे खास बात यह है कि लोग पानी कैसे पियेंगे इसका खयाल कहीं भी नहीं रखा गया. चापाकल चालू है पर वहां कोई गिलास या अन्य बरतन नहीं है. लिहाजा लोग चुल्लू से पानी पीते हैं.

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