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गरीबों का हो रहा आर्थिक दोहन

मेन पावर की कमी . जुगाड़ टेक्नोलॉजी पर िनर्भर है स्वास्थ्य व्यवस्था सरकार के लाख दावे के बावजूद जिले में स्वास्थ्य सेवा की हकीकत कुछ और बयां कर रही है. सच तो यह है जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था मेन पावर की कमी के कारण चरमरा गयी है. जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था जुगाड़ टेक्नोलॉजी पर ही […]

मेन पावर की कमी . जुगाड़ टेक्नोलॉजी पर िनर्भर है स्वास्थ्य व्यवस्था

सरकार के लाख दावे के बावजूद जिले में स्वास्थ्य सेवा की हकीकत कुछ और बयां कर रही है. सच तो यह है जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था मेन पावर की कमी के कारण चरमरा गयी है. जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था जुगाड़ टेक्नोलॉजी पर ही निर्भर है.
मधेपुरा : सरकार द्वारा मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए नयी-नयी व्यवस्था की जा रही है. स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए लाख दावे किये जा रहे हैं, लेकिन सरकार के लाख दावे के बावजूद जिले में स्वास्थ्य सेवा की हकीकत कुछ और बयां कर रही है. सच तो यह है जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था मेन पावर की कमी के कारण चरमरा गयी है. जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था जुगाड़ टेक्नोलॉजी पर ही निर्भर है.
सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था काफी चिंता जनक है. कर्मियों व डॉक्टरों की कमी के कारण गांव के पीएचसी से लेकर जिले के अस्पतालों में मरीजों को सही चिकित्सा सुविधा मयस्सर नहीं है. जिस कारण अधिकतर मरीज प्राइवेट क्लनिक या बाहर का रूख अखतियार कर रहे हैं. पीएचसी एवं एपीएचसी में चिकित्सक व कर्मियों की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोगों व गरीब तबके के लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा का अभाव हमेशा खटकते रहता है.
जिस कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जिले के अस्पतालों रूख लेना पड़ रहा है. लेकिन यहां भी सदर अस्पताल में बेहतर चिकित्सा सुविधा लोगों को नसीब नहीं हो रहा है. बहरहाल गरीबों को िनजी क्लिनिक में जाना पड़ता है जहां उनका आर्थिक दोहन होता है.
बेड की है कमी
जिले के सरकारी अस्पतालों में बेड का अभाव है. जिस कारण मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में तीन सौ बेड की व्यवस्था मरीजों के लिए होना है. लेकिन कमरे के अभाव के कारण मात्र एक सौ बेड की व्यवस्था है. मरीजों की संख्या अधिक होने पर अस्पताल प्रशासन को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. वहीं मरीजों का बेड के अभाव में सही इलाज संभव नहीं हो पाता है.
फर्मासिस्ट, ओटी सहायक का अभाव
जिले में स्वास्थ्य कर्मियों के अभाव के कारण चिकित्सा सुविधा लोगों को सही ढंग से नहीं मिल पा रही है. पूरे जिले में सरकारी अस्पतालों में 37 फर्मासिस्ट के पद सृजित है. जिनमें छह कार्यरत है. वहीं ओटी सहायक के जिले में 82 पद सृजित है. जिनमें मात्र पांच कार्यरत है. स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के कारण अस्पताल आने वाले मरीजों को अपेक्षित सेवा का अवसर नहीं मिलता है. कर्मियों की कमी के कारण सदर अस्पताल में बाहर से आये रोगियो का सही देख भाल नहीं हो रहा है.
ग्रेड ए नर्स की है कमी
जिले में सरकारी अस्पतालों में ग्रेड ए नर्स के 222 पद सृजित है. जिनमें सदर अस्पताल में छह ग्रेड ए नर्स कार्यरत है और बांकी जगह खाली पड़ा हुआ है. बिना नर्स की मरीजों की देखभाल सही ढंग से नहीं हो पा रहा है. पूरे जिले में देखा जाय तो एएनएम के 796 पद सृजित है. जिनमें मात्र 104 कार्यरत है. सदर अस्पताल में सात एएनएम के भरोसे चिकित्सा सुविधा लोगों को दी जा रही है.
अल्ट्रासाउंड की नहीं है व्यवस्था
जिले के पीएचसी सहित सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था नहीं है. मरीजों को अल्ट्रासाउंड के लिए बाहर जाना पड़ता है. बाहर से अल्ट्रासाउंड कराने पर मरीजों को ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. सदर अस्पताल में बहुत से ऐसे रोगी आते है जिन्हें इलाज के लिए अल्ट्रासाउंड की आवश्यकता पड़ती है.
विशेष कर गरीब मरीज बाहर से अल्ट्रासाउंड कराने में असमर्थ होते है. पैसे के अभाव के कारण बिना अल्ट्रासाउंड कराये ही आधे अधूरे इलाज करवा कर घर लौट जाते है. जिस कारण गरीब मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अल्ट्रासाउंड नहीं होने के कारण अस्पतालों में लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है.

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