मधेपुरा : जिले के छात्र राजनीति से जुड़े नि:शक्त दिलीप पटेल कहते हैं कि सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि नि:शक्त को लेकर समाज संवेदनशील है. हालांकि, इसके विपरीत भी कई उदाहरण हमारे सामने आते हैं. लेकिन, जब सवाल सरकारी मशीनरी का आता है तो यह सवाल बहुत खटकता ही नहीं बल्कि चुभता है.
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दिव्यांगों के लिए ऑफिस हैं दिव्यलोक
मधेपुरा : जिले के छात्र राजनीति से जुड़े नि:शक्त दिलीप पटेल कहते हैं कि सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि नि:शक्त को लेकर समाज संवेदनशील है. हालांकि, इसके विपरीत भी कई उदाहरण हमारे सामने आते हैं. लेकिन, जब सवाल सरकारी मशीनरी का आता है तो यह सवाल बहुत खटकता ही नहीं बल्कि चुभता […]
सच यह है कि कोई दिव्यांग व्यक्ति अगर अपनी बात अधिकारियों से मिल कर रखना चाहे तो उसके लिए यह टेढ़ी खीर साबित होती है. एक भी सरकारी कार्यालय ऐसा नहीं है जहां नि:शक्त किसी की सहायता से भी आला अधिकारियों के कक्ष तक आसानी से पहुंच सकें. कार्यालयों में रैंप नहीं बना है.
अधिकारियों तक पहुंचने के लिए नि:शक्तों को किसी की मदद लेनी पड़ती है. ऐसे में एक दिव्यांग के आत्मविश्वास की रोज धज्जियां उड़ जाती है. जब तक तीन-चार लोग मिल कर व्हील चेयर को नहीं उठाएं या नि:शक्त व्यक्ति को गोद में नहीं उठाएं तो वे अधिकारियों के कक्ष तक नहीं पहुंच सकते. ऐसे में इन नि:शक्त लोगों के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है और इसे देखने वाला कोई नहीं. िन:शक्तों का कहना है कि व्यवस्था नहीं होने से कार्यालयों में जाने में दिक्कत होती है.
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