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प्लास्टिक उद्योग ने बरबाद किया कुंभकारों का पुश्तैनी रोजगार

प्लास्टिक उद्योग ने बरबाद किया कुंभकारों का पुश्तैनी रोजगार फोटो – मधेपुरा 08 कैप्शन – मिट्टी से दूर हो कर प्लास्टिक की परंपरा शुरू करने वालों की कीमत चुका रही कुम्हार जाति – अब केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित रह गया है मिट्टी के बरतनों का उपयोग प्रतिनिधि, उदाकिशुनगंज फाइबर व प्लास्टिक को बढ़ावा […]

प्लास्टिक उद्योग ने बरबाद किया कुंभकारों का पुश्तैनी रोजगार फोटो – मधेपुरा 08 कैप्शन – मिट्टी से दूर हो कर प्लास्टिक की परंपरा शुरू करने वालों की कीमत चुका रही कुम्हार जाति – अब केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित रह गया है मिट्टी के बरतनों का उपयोग प्रतिनिधि, उदाकिशुनगंज फाइबर व प्लास्टिक को बढ़ावा मिलने के कारण मिट्टी से बरतन बना कर जीविकोपार्जन करने वाले कुंभकार जाति के लोगों का पारंपरिक रोजगार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. सरकार इन जाति के रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कोई नीति नहीं बना पायी है. अगर ऐसी स्थिति बनी रही तो कुंभकार जाति को अपने पारंपरिक धंधा से विमुख हो जाना पड़ सकता है. तब ऐसे परिवारों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो जायेगी. हालांकि, बहुत सारे परिवार इस धंधा को छोड़ मजदूरी कर किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. मिट्टी से बनाये जाता हैं ये बर्तन व अन्य सामान कुंभकार जाति के लोग रोटी बनाने के लिए खपड़ी, चावल पकाने के लिए हांड़ी, पानी रखने के लिए घड़ा व सुराही, पूजा पाठ करने के लिए धूपदानी, दीया, पानी व चाय पीने के लिए कुल्हड़, बच्चों का खिलौना, दूध दूह कर रखने के लिए मिटिया, दही जमाने के लिए लदिया और इसके के अलावे पूजा पाठ की अन्य सामग्रियों के साथ-साथ खपरैल बनाया करते थे. चाक पर निर्मित इन समानों को पका कर घर की महिलाएं गांव – गांव जा कर बेचा करती थी. पुरुष दूर दराज के गांव बैलगाड़ी पर बरतन ले जाकर बेचा करते थे. जिससे अच्छी आमदनी होती थी और परिवार का भरण पोषण करने में आर्थिक समस्या आड़े नहीं आती थी.स्वास्थ्य के लिए मिट्टी का बरत लाभकारी मिट्टी से निर्मित घड़ा व सुराही में पानी रख कर पीने से स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से काफी फायदेमंद होता है. इसमें रखा पानी आयरन मुक्त हो जाता है. पानी का आयरन घड़ा या सुराही मे सोखने की क्षमता होती है. मिट्टी के बरतन में पका भोजन भी शुद्ध माना गया है. इसी तरह खपरैल से निर्मित घरों में गर्मी का प्रभाव नहीं रहता है. कहां-कहां चलता था रोजगार उदाकिशुनगंज प्रखंड के जागीरघाट, गोपालपुर, बखड़ी, मंगल वासा, बाराटेनी, मधुबन, पुरैनी प्रखंड मुख्यालय के अलावे बघरा, बथनाहा, चौसा प्रखंड के लौआ लगान, फुलौत, जैसे अन्य गांवों के कुंभकार अपने पुस्तैनी धंधा में अभी भी लगे हुए हैं. लेकिन खपत कम होते रहने से ऐसे परिवार निराश होते जा रहे हैं. इसी वजह से उदाकिशुनगंज प्रखंड के सभी कुंभकार मिट्टी से बरतन बनाने का धंधा छोड़ कर खेतों में मजदूरी कर रहे हैं. होती है कठिनाई इस रोजगार से जुड़े चौसा प्रखंड के फुलौत गांव के अनिल कुमार पंडित, बैजू पंडित किशोर पंडित ने बताया कि पहले उन्हें मिट्टी खरीदनी नहीं पड़ती थी. लेकिन अब तो छह सौ रूपये टेलर मिट्टी खेत मालिकों से खरीदना पड़ रहा है. जबकि चार सौ रुपये प्रतिखेत ट्रैक्टर भाड़ा व मजदूरों को मजदूरी देना पड़ रहा है. बरतन बनाने का लागत खर्च बढ़ गया है. अगर बनाये गये समान की बिक्री होती रहेे तो परिवार का भरण पोषण होता रहेगा. पहले भोज में पानी पीने वाला बड़ा व चाय पीने वाला छोटा कुल्हड़ बनाने का आर्डर गृह स्वामी से मिला करता था. लेकिन अब तो कुल्हर कोई खरीदते ही नहीं है. यही स्थिति दही जमाने वाले लदिया या छांछी का हो गया है. खपड़ी भी नहीं दिखता है. फाइबर व प्लास्टिक उद्योग ने किया चौपट फाइबर व प्लास्टिक से निर्मित समान के बाजार में छा जाने से मिटटी से निर्मित बरतन बनाने के पारंपरिक धंधों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. यहां तक बच्चों का खिलौना भी अब प्लास्टिक का बनने लगा है. ऐसी स्थिति में मिटटी के खिलौनों के उपर किसी का ध्यान हीं नहीं जाता है. अब यह धंधा भी बंद करना पड़ गया है. खपरैल का स्थान चदरा व फाइबर की छत ने ले लिया है. शादी में मिट्टी का लगहर, पुगहर में जब तक मंडप में नहीं रखा जाता था. तब तक शादी की रस्म पूरी नहीं होती थी. लेकिन आधुनिकता ने इस रस्म को ही समाप्त कर दिया है. पूजा पाठ तक ही है सीमित मिट्टी के बरतनों का उपयोग अब धार्मिक अनुष्ठानों तक ही रह गया है. चांद चौठ, दीपावली और छठ में विशेषकर मिट्टी के बरतन का उपयोग होने के कारण ये त्योहार अब कुंभकार जाति के लिए एक आस बन कर रह गये हैं.प्लास्टिक से दूरी जरूरी प्लास्टिक पर आधारित जीवन शैली का खामियाजा केवल कुंभकार को ही नहीं उठाना पड़ रहा है बल्कि हमें भी देर सबेर इसका हिसाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए. प्लास्टिक ऐसा कचरा है जिसे धरती सड़ा नहीं सकती. नतीजतन धरती का एक परत प्लास्टिक के कारण जहरीला होता जा रहा है. इसकी उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है. प्लास्टिक के कारण मानव शरीर में कई नयी बीमारियों को जन्म दे रही है. अगर जल्दी ही हमने अपने जीवन से प्लास् टिक को दूर नहीं किया तो हमारी आने वाली पीढ़ियां इसके लिए हमें दोषी ठहरायेंगी. यह तो हम पर निर्भर है कि एक तरफ हम जो अपनी पीढ़ियों के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं दूसरी तरफ उनके लिए विषैली दुनिया का निर्माण भी कर रहे हैं.

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