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जलमीनार से जलापूर्ति पर लगा ग्रहणस्वच्छ पेय जल आम लोगों के लिए दूर की कौड़ी

कुणाल : मधेपुराजिले में लोगों को स्वच्छ जल मुहैया होना फिलवक्त दूर की कौड़ी बनी हुई है. ऐसा नहीं कि इस दिशा में कार्य नहीं किया जा रहा है. लेकिन कुछए की गति से चल रहे कार्य का आम लोगों को कोई फायदा नहीं मिल रहा. कोसी के इस क्षेत्र में पानी में आयरन का […]

कुणाल : मधेपुराजिले में लोगों को स्वच्छ जल मुहैया होना फिलवक्त दूर की कौड़ी बनी हुई है. ऐसा नहीं कि इस दिशा में कार्य नहीं किया जा रहा है. लेकिन कुछए की गति से चल रहे कार्य का आम लोगों को कोई फायदा नहीं मिल रहा.

कोसी के इस क्षेत्र में पानी में आयरन का होना बड़ी समस्या है. पानी को लौह मुक्त करने के लिए कई योजनाएं लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की ओर से चलाई गयी.

जिले के कई प्रखंडों में जल मीनार बनाकर इसके जरिये स्वच्छ पानी की सप्लाई की योजना भी बनाई गयी. लेकिन इस योजना का हाल यह है कि अधिकतर जगहों पर जलमीनार बन तो गये हैं, लेकिन कहीं सप्लाई के लिए पाइपें नहीं बिछाई गयी हैं. जहां पाइप बिछाई गयी है, तो वहां जल की आपूर्ति नहीं हो रही है.

गिने-चुने प्रखंड को छोड़ दें तो हर जगह जलापूर्ति की स्थिति बदहाल है.विगत पांच वर्ष के दौरान पीएचइडी की ओर से करीब साढ़े बारह करोड़ रुपये की राशि से घैलाढ़, गम्हरिया, शंकरपुर, बभनी, ग्वालपाड़ा, आलमनगर, उदाकिशुनगंज, कुमारखंड, पुरैनी, श्रीनगर, बिहारीगंज, मौरा झरकाहा में नए टावर का निर्माण कार्य शुरू हुआ. वहीं सिहेंश्वर प्रखंड में पुराना वाटर टावर बेकार होने के कारण फिर से एक नए टावर का निर्माण कराया गया.

पाइप लाइन पुनर्गठन और नई मशीनें भी लगायी गयी.— गम्हरिया — स्थान – लागत – क्षमता – गम्हरिया – 82 लाख 61 हजार — पच्चीस हजार लीटर – बभनी – 82 लाख 99 हजार– तीस हजार लीटरविभाग का दावा – दोनों जगह जलापूर्ति चालू. बभनी में ट्रांसफारमर नहीं लगने के कारण जनरेटर सेट से जलापूर्ति की जा रही है.हकीकत : – गम्हरिया प्रखंड में दो जगहों पर जल मीनार का निर्माण जुलाई 2008 में पूरा होना था.

लेकिन निर्माण वर्ष 2014 में पूरा हुआ. गम्हरिया और बभनी में जल मीनार बन गया. पाइप भी बिछा दी गयी. बभनी में करीब पांच वर्ष पहले पाइप बिछा दी गयी थी. हाल यह है कि अब यहां पाइप टूटने फूटने लगी है. लोग अब तक जलापूर्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं. — शंकरपुर –स्थान – लागत – क्षमता – शंकरपुर – एक करोड़ 22 लाख 40 हजार — पचास हजार लीटर- मौरा झरकाहा – एक करोड़ 40 लाख – विभाग का दावा – शंकरपुर में जलापूर्ति चालू है. सुचारू रूप से लोगों को लौहमुक्त पानी मिल रहा है.

मौरा झरकाहा में ट्रायल रन में जलापूर्ति चालू हकीकत – शंकरपुर प्रखंड की कहानी भी इससे अलग नहीं. यहां पचास हजार लीटर क्षमता का जलमीनार बनकर तैयार है. पाइप भी बिछा दी गयी. लेकिन यहां सप्ताह में एक दिन ही जलापूर्ति होती है.

एक कर्मचारी सप्ताह में एक दिन आता है. उसी दिन जलापूर्ति होती है. पाइप भी अधिकतर जगहों पर क्षतिग्रस्त हो गयी है.वहीं मौरा झरकाहा में आंशिक पाइप लाइन बिछायी गयी है. जल मीनार बन कर तैयार है. काम चल ही रहा है. –

– घैलाढ़ — स्थान – लागत – क्षमता – घैलाढ़ – 82 लाख 61 हजार रूपये — 75 हजार लीटरविभाग का दावा – जलापूर्ति के लिए यांत्रिक प्रमंडल को हस्तांतरित किया गया है. हकीकत – विभाग जलापूर्ति के नाम पर यांत्रिक प्रमंडल को हस्तांतरित करने की बात कह कर पल्ला झाड़ लेता है.

लोग वर्षों से जलापूर्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं. कार्यालय में ताला जड़ा रहता है. कर्मचारी महीने में एक-आध बार ही आते हैं. — पुरैनी — स्थान – लागत – क्षमता – पुरैनी – एक करोड़ नौ लाख, 37 हजार 100 – 75 हजार लीटरविभाग का दावा – जलापूर्ति के लिए यांत्रिक प्रमंडल को हस्तांतरित किया गया है.

हकीकत – धीमी गति से निर्माण कार्य के बाद जल मीनार पूरा हुआ. दो साल पहले पाइप लाइन बिछाई गयी. महीने में दो-तीन बार जलापूर्ति की जाती है. — ग्वालपाड़ा — स्थान – लागत – क्षमता – ग्वालपाड़ा – 77 लाख 56 हजार- 75 हजार लीटरविभाग का दावा – जलापूर्ति चालू है. लोगों को लौहमुक्त पानी मुहैया हो रहा है.

हकीकत – सच यह है कि एक सप्ताह पहले जलापूर्ति का ट्रायल लिया गया. पाइप लाइन केवल बाजार में ही बछायी गयी है. जबकि आबादी वाले इलाके और प्रशासनिक कार्यालय इलाके अब तक पाइप लाइन से अछूते हैं. एक कर्मचारी महीने में कभी-कभी आते हैं. — आलमनगर — स्थान – लागत – क्षमता – आलमनगर – एक करोड़ 49 लाख 94 हजार 6 सौ – 75 हजार लीटर विभाग का दावा – पहले बनायी गयी पानी टंकी से आंशिक जलापूर्ति नये जल मीनार का निर्माण कार्य प्रगति में है. हकीकत – आलमनगर में 1980 में थाना चौक पर जल मीनार बनायी गयी थी.

फिलवक्त यह जल मीनार बंद है. कभी-कभार एक कर्मचारी को देखा जाता है. वहीं नये जल मीनार का काम वर्ष 2008 में समाप्त होना था. जल मीनार तो बन गया है लेकिन उसमें न मशीन लगायी गयी है और न नयी पाइप लाइन ही बिछायी जा रही है. — उदाकिशुनगंज —स्थान – लागत – क्षमता – उदाकिशुनगंज – 99 लाख 41, 600 – 75 हजार लीटर विभाग का दावा – केवल प्रखंड परिसर में आंशिक जलापूर्ति चालू किया गया है

.हकीकत – जलापूर्ति कभी चालू नहीं किया गया. हालांकि पाइप लाइन बिछी हुई है. —- कुमारखंड —- स्थान – लागत – क्षमता – कुमारखंड – 99 लाख 74 हजार – 75 हजार लीटर – श्रीनगर -एक करोड़ 10 लाख 20 हजार 200 – 75 हजार ली विभाग का दावा – कुमारखंड में केवल प्रखंड परिसर में आंशिक जलापूर्ति चालू किया गया है. वहीं श्रीनगर में योजना बाढ़ के कारण बंद है.

हकीकत – कुमारखंड में जल मीनार बना हुआ है. न जलापूर्ति की जा रही है और न पाइप लाइन ही बिछायी गयी है. वहीं श्रीनगर में भी काम के नाम पर कुछ नहीं किया गया है. बाढ़ वर्ष 2008 में आने से पहले यहां काम भी शुरू नहीं किया गया था लेकिन योजना को बाढ़ में गलत तौर पर क्षतिग्रस्त दिखा दिया गया है. —बिहारीगंज —स्थान – लागत – क्षमता बिहारीगंज – 82 लाख 61 हजार – 25 हजार लीटर विभाग का दावा – सीधे पंपिंग द्वारा जलापूर्तिहकीकत – बिहारीगंज में जल मीनार नहीं बनाया गया है.

सीधे पंप सेट से पानी निकाल कर सप्लाई की जा रही है. गौरतलब है कि यहां जल मीनार के लिए 82 लाख 61 हजार रूपये का प्राक्कलन स्वीकृत किया गया था. — सिंहेश्वर— स्थान – लागत – क्षमता सिहेंश्वर – 3 करोड़ 88 लाख 82 हजार – 60 हजार लीटर विभाग का दावा – यहां पुरानी पाइप लाइन का पुनर्गठन किया गया.

झिटकिया में नया टावर निर्माण हुआ और नई मशीनें लगायी गयींहकीकत – सिंहेश्वर में नयी पाइप लाइन बिछायी गयी लेकिन पुराने पाइप लाइन में कचरा जमा होने के कारण उनसे जलापूर्ति सुचारू रूप से नहीं होती है.

हालांकि प्रखंड मुख्यालय में जलापूर्ति की स्थिति बेहतर है. —- वर्जन —‘ जल मीनार बनने के बाद ट्रायल लिया जाता है. इसके बाद संचालन के लिए यांत्रिक विभाग को जिम्मेदारी दे दी जाती है.’ – संजय कुमार, कार्यपालक अभियंता, लोक स्वास्थ्य प्रमंडल, मधेपुरा —————————–अगर मिले शुद्ध जल तो बदलेगी जिंदगी – कोसी क्षेत्र के पानी में लौह की मात्रा सामान्य स्तर से काफी अधिक होने के कारण फैलती है कई बीमारी मधेपुरा .

विगत दो महीने के भीतर जिले के मुरलीगंज के जीतापुर, सिंहेश्वर के इटहरी गहुंमनी आदि इलाके में डायरिया का प्रकोप फैला तो कई लोगों की जान पर बन आयी.

ये दृश्य जिले के विभिन्न इलाकों में आम हैं. इन बीमारियों का सीधा कारण दूषित पेय जल से जुड़ा है. कोसी क्षेत्र के जल में लौह सहित अन्य दूषित अवयव होने के कारण लोगों के शुद्ध पेय जल की काफी जरूरत है.

इसके कारण लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है. इस क्षेत्र के लोगों में पाचन संबंधित बीमार सहित पेट की अन्य बीमारियां पायी जाती है. लोगों की आय का खासा हिस्सा उनकी बीमारी पर खर्च होता है और उनकी जिंदगी भी प्रभावित हो जाती है.

चिकित्सकों की मानें तो कोसी क्षेत्र के पेय जल में मौजूद दूषित अवयवों के कारण लीवर, लीवर इंफेक्शन, डायरिया, कोलेरा, जोंडिस, अतिसार, बुखार, हेपेटाइटिस ए आदि बीमारी आम है.

सदर अस्प्ताल में पदस्थापित डा संतोष कुमार, डा सजल कुमार, डा पी भास्कर, डा विपिन गुप्ता, डा डीपी गुप्ता आदि चिकित्सकों के साथ प्रभात खबर की बातचीत में यह साफ तौर पर सामने आया कि अगर लोगों को शुद्ध पेय जल मुहैया तो वे कई बीमारियों से बच सकते हैं.

यहां के लोगों का अधिकतर समय और पैसा बीमारी के इलाज में व्यय होता है. अगर ये समय और पैसे बचें तो यह क्षेत्र समृद्ध हो जायेगा. — कोसी क्षेत्र के पानी में अवयवों की मात्रा– वांछित मौजूदा मात्राआयरन – 1़ 0 3़ 0 फ्लोराइड – 1़ 5 सामान्य कहीं- कहीं ज्यादानाइट्रेट – 45 सामान्य कहीं-कहीं ज्यादा

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