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मधेपुरा व सहरसा के आइसीयू में लटक रहा है ताला चमकी बुखार से लड़ने का अस्पताल कर रहे दावा

मधेपुरा : न हाथ न हथियार, चुनौतियां है बेशुमार… यह लाइन स्वास्थ्य महकमा पर सटीक बैठती है. कोसी प्रमंडल के मधेपुरा व सहरसा स्थित सदर अस्पताल में आइसीयू की सुविधा अभी तक बहाल नहीं हुई है. कभी कभार होने वाले सड़क हादसे व गंभीर मरीजों के इलाज के लिए हायर सेंटर या निजी नर्सिंग होम […]

मधेपुरा : न हाथ न हथियार, चुनौतियां है बेशुमार… यह लाइन स्वास्थ्य महकमा पर सटीक बैठती है. कोसी प्रमंडल के मधेपुरा व सहरसा स्थित सदर अस्पताल में आइसीयू की सुविधा अभी तक बहाल नहीं हुई है. कभी कभार होने वाले सड़क हादसे व गंभीर मरीजों के इलाज के लिए हायर सेंटर या निजी नर्सिंग होम में रेफर कर दिया जाता है.

अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार आइसीयू भवन व उपकरण मौजूद है, लेकिन कर्मियों की कमी के कारण आइसीयू शुरू नहीं की गयी है. यही वजह है कि आइसीयू में सालों से ताला लटक रहा हैं.
ऐसे में जिले के अंदर मुजफ्फरपुर जैसे हालात उत्पन्न हो गये तो शासन प्रशासन ही नहीं मरीजों पर आने वाली शामत का अंदाजा लगाया जा सकता है. इंस्फेलाइटिस होने की स्थिति में मरीज को सबसे पहले आइसीयू या ट्रामा सेंटर की जरूरत होती है. मूलभूत सुविधा में स्वास्थ्य को पहला स्थान प्राप्त है, लेकिन सुविधा मुहैया कराने में सभी उदासीन बने हुए है.
लगती है गुहार, नहीं सुनते है सरकार : आधिकारिक सूत्रों के अनुसार सदर अस्पताल प्रबंधन द्वारा हर महीने आइसीयू में कर्मचारियों की कमी को लेकर आवेदन दिया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के सचिव व प्रधान सचिव इस आवेदन पर कोई पहल नहीं कर रहे हैं.
स्वास्थ्य विभाग व प्रधान सचिव द्वारा सिर्फ आश्वासन दिया जाता है कि तैयारी चल रही है. वही अस्पताल के अधिकारियों द्वारा बताया गया कि आइसीयू में सभी तरह के उपकरण की व्यवस्था है, लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण सेवा का लाभ मरीजों को नहीं मिल रही है. गौरतलब है मधेपुरा समेत लगभग पूरे बिहार आइसीयू में स्टाफ की कमी को झेल रहा है.
मरीजों को रेफर करने की है मजबूरी : आइसीयू की सुविधा नहीं रहने पर के कारण मरीजों को इलाज कराने के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल या पटना और दरभंगा की और रुख करना पड़ता. इससे गरीब वर्ग के लोगों को परेशानी होती है. बताया जाता है पिछले एक साल से जिला स्वास्थ्य समिति आइसीयू सेवा की पहल कर रही है,
लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है. सदर अस्पताल में मिली जानकारी के अनुसार प्रतिमाह औसत एक सौ से अधिक मरीजों को मधेपुरा सदर अस्पताल से पीएमसीएच या डीएमसीएच रेफर किया जाता है. खासकर कोई बड़ी घटना या दुर्घटना होने पर अस्पताल में मरीजों का उचित इलाज नहीं हो पा रहा है.
रास्ते में ही हो जाती है मौत : जब मरीजों को सदर अस्पताल से हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है तो कभी कभी जाने के क्रम में ही मौत हो जाती है. लोगों का कहना है कि अगर आइसीयू की सुविधा यहां होती तो घायलों की जान बच सकती है. ऐसी कई घटनाएं होती है बावजूद सदर अस्पताल में आइसीयू की व्यवस्था को लेकर कोई कदम नहीं उठा रही है. इससे लोगों में असंतोष व्याप्त है.
आइसीयू होने से बच सकती थी बमबम की जान
दो दिन पूर्व मुरलीगंज नगर क्षेत्र के वार्ड छह गोसाई टोला निवासी बोतल साह के 14 वर्षीय पुत्र बमबम की मौत चमकी की वजह से हो गयी. परिजनों ने बताया कि शरीर में चमकी के लक्षण दिखने पर बमबम को स्थानीय पीएचसी में भर्ती कराया गया, लेकिन हालत खराब होने पर सदर अस्पताल रेफर कर दिया गया.
सदर अस्पताल में आइसीयू नहीं रहने की वजह से डॉक्टर ने अन्यत्र रेफर कर दिया. जिसके बाद परिजनों ने कटिहार मेडिकल कॉलेज के आइसीयू में भर्ती कराया, जहां ससमय आइसीयू उपलब्ध नहीं होने की वजह से बमबम की मौत हो गयी.

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