लखीसराय : जिले के दाल का कटोरा कहे जाने वाले बड़हिया टाल स्वयं दाल के लिए मोहताज बन गया है. बावजूद केंद्र व राज्य सरकार इसके प्रति संवेदनशील नहीं है. जिससे किसानों में गहरा आक्रोश व्याप्त है.
1064 हेक्टेयर में फैली बड़हिया टाल में किसानों द्वारा एक मात्र फसल रबी फसल चना, मंसूर, खेसारी, केराव, गेहूं, राई का उत्पादन किया जाता है. फरवरी मार्च महीने में रबी फसल कटाई के बाद जून जुलाई में हरूहर व गंगा नदी के पानी से खेत तीन माह तक डूबा रहता है. कार्तिक माह में पानी निकासी के बाद किसानों द्वारा रबी की बुआई की जाती है.
हालांकि टाल के दर्जनों गांव के किनारे जमीन पर किसानों द्वारा दो फसल रबी व भदई का उत्पादन किया जाता है. लेकिन 10 वर्षों से प्राकृतिक आपदा, कीड़ा खोरी, फसल रोग से रबी फसलों का उत्पादन लागत पूंजी से कम पैदावार हो रहा है. जिससे किसानों की हालत तो जर्जर है ही वहीं बड़हिया बाजार में दर्जनों दाल मिल बंद हो गया है.
इसके बावजूद भी केंद्र व राज्य सरकार बड़हिया टाल के प्रति सजग दिखायी नहीं दे रहे हैं. जिससे किसान में गहरा आक्रोश व्याप्त है. जागरूक किसान मुन्ना सिंह ने बताया कि सरकार बड़हिया टाल के प्रति थोड़ा भी ध्यान देता तो किसान भी राजा होता व राज्य सरकार भी पंजाब, हरियाणा राज्य की तरह दलहन के क्षेत्र में आत्म निर्भर बन जायेगा.
वहीं विजय सिंह ने बताया कि बड़हिया टाल में एक एकड़ जमीन पर किसानों द्वारा खेती की जाये व प्राकृतिक मौसम साथ दे दे तो 15-20 हजार रुपये का मुनाफा हो सकता है. पट्टाधारी किसानों को 5 से 10 हजार का मुनाफा हो सकता है. लेकिन पिछले 10 वर्षों से प्राकृतिक मौसम के साथ नहीं देने के कारण किसानों को मुनाफा के बजाय घाटे का सौदा साबित हो रहा है.
किसान दिलखुश कुमार ने बताया कि केंद्र व राज्य सरकार दोनों मिल कर एक बड़ी योजना बड़हिया टाल में लाकर पईन उगाही, चार स्थानों पर स्लुईस गेट, नदी उगाही व बिजली ,सड़क की व्यवस्था कर दे तो किसान के साथ राज्य सरकार भी अनाज में आत्मनिर्भर बन जायेगा व बिहार से मजदूरों का पलायन भी रूक जायेगा.
निक्की सिंह ने बताया कि इस टाल में उत्पादन अधिक होने पर भूसा से बना उद्योग भी अस्तित्व में आ जायेगा.कहते हैं डीएओजिला कृषि पदाधिकारी ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि किसान उत्तम बीज, समय पर बुआई के साथ ही अच्छे व वैज्ञानिक तरीके से खेती करे तो फसल की पैदावार अच्छी हो सकती है.
उन्होंने बताया कि खेती पर कुछ प्राकृतिक आपदा का असर होता है, लेकिन इसी बीच किसानों को खेती वैज्ञानिक तरीके से करनी चाहिए.