सोनो : बिहार विधानसभा का सबसे अंतिम क्षेत्र चकाई हमेशा से चुनावी सूर्खियां बटोरता रहा है़ यहां इस बार का चुनाव भी पूर्व की भांति चर्चित रहा. क्योंकि यहां एनडीए समर्थित दो नेता चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ कूद पड़े थे. एक लोजपा से चुनाव लड़े तो दूसरे ने निर्दलीय बन चुनावी मैदान में थे.
इसका सीधा फायदा राजद प्रत्याशी को मिला. जिसने सुमित कुमार सिंह को 12113 मतों से पराजित किया़ दरअसल यह संभावना उसी वक्त से जतायी जाने लगी थी. जब सीटिंग विधायक सुमित को एनडीए से टिकट नहीं दिया गया था़ उस वक्त के हम नेता व चकाई के विधायक रहे सुमित कुमार सिंह को उम्मीद थी कि एनडीए से उन्हें टिकट मिलेगा क्योंकि वे न सिर्फ जिला के कद्दावर नेता व पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के पुत्र थे. बल्कि वे चकाई के सीटिंग विधायक भी थे.
जिन्होंने झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ कर काफी कम उम्र के विधायक बनने का गौरव भी प्राप्त किया था़ परंतु उनके इस चाहत में सबसे बड़ा रोड़ा बने युवा लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष सह गत चुनाव के उपविजेता विजय कुमार सिंह़ लोजपा की जीद को देखते हुए एनडीए की तरफ से चकाई सीट लोजपा को मिल तो गया,
परंतु यहीं से उसकी परेशानी भी बढ़नी शुरू हो गयी़ चकाई के विधायक रहे व जीतन राम मांझी के करीबी माने जाने वाले सुमित सिंह के कार्यकर्ताओं में उन्हें एनडीए से टिकट नहीं मिलने से भारी रोष हो गया़ कार्यकर्ताओं के दवाब के बाद सुमित ने अपना क्षेत्र नहीं बदलते हुए चकाई से ही निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा किया़ संयोग कहें कि निर्दलीय प्रत्याशी रहते हुए भी उन्हें हम का चुनाव चिंह टेलीफोन मिल गया ़
इस तरह अपरोक्ष रूप से चकाई में एनडीए समर्थित दो प्रत्याशी खड़े थे. जो एक दूसरे का कट्टर प्रतिद्वंद्वी माने जाते है़ ऐसे में सीधा फायदा महागठबंधन से राजद को मिलना तय हो गया था़ भाजपा के वरिष्ठ नेता में शुमार व कई बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले फाल्गुनी प्रसाद यादव के निधन के बाद स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उनकी पत्नी सावित्री देवी को चुनाव लड़ने के लिए तैयार करते हुए भाजपा के शीर्ष नेताओं से उनके लिए एनडीए का टिकट मांगा.
परंतु स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं की एक न सुनी गयी़ आघात व आक्रोश को दिल में लिए सावित्री देवी अपने कार्यकर्ताओं के साथ अंतत: लालू यादव के पास पहुंची़ दांव भुनाने में माहिर माने जाने वाले लालू ने सावित्री देवी को चकाई से महागठबंधन की प्रत्याशी घोषित करने में तनिक भी देर नहीं किया़ उन्हें यहां की स्थिति का पता हो गया था़ फाल्गुनी यादव की मौत के बाद सावित्री देवी को सहानुभूति वोट मिलना तय था़
इतना ही नहीं जातिगत समीकरण में भी इस विधानसभा में यादवों का सर्वाधिक वोट संख्या को देखते हुए उनकी स्थिति मजबूत बन रही थी़ सावित्री देवी को राजद से टिकट मिलते ही बड़ी संख्या में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने सावित्री देवी को अपना समर्थन दे दिया़ यादव, मंडल व कुर्मी वोट के अलावे मुस्लिम वोट को अपना मानकर चुनाव लड़ी सावित्री देवी को न सिर्फ इस समीकरण का भरपूर फायदा मिला. बल्कि विपक्षी अपने दो कद्दावर प्रतिद्वंद्वियों का एक दूसरे के खिलाफ होना भी उनके लिए वरदान साबित हुआ़
इस चुनाव में उपविजेता रहे निर्दलीय प्रत्याशी सुमित कुमार सिंह के प्राप्त मत व तीसरे नंबर पर रहे लोजपा प्रत्याशी विजय कुमार सिंह के प्राप्त मतों को मिला दे तो विजेता सावित्री देवी के प्राप्त मत से काफी अधिक हो जाते है़ चुनाव के दौरान क्षेत्रीय स्तर पर सुमित व विजय दोनों एक दूसरे को प्रबल प्रतिद्वंद्वी मान कर सावित्री देवी के बजाय एक दूसरे का खिलाफ प्रचार करने पर ज्यादा जोर लगाया़ चुनाव के वक्त ही
क्षेत्र के प्रबुद्घ लोगो ने चकाई में सुमित व विजय के एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने पर एनडीए को संभावित नुकसान होने की बात करने लगे थे जो अंतत: सच ही साबित हुआ़ बहरहाल जहां महागंठबंधन कार्यकर्ता जीत की खुशी मना रहे हैं. वहीं विपक्षी दोनों प्रत्याशी सहित उनके कार्यकर्ता निराशा में डूब गये हैं.