लखीसराय/कजरा : लखीसराय जिला अपने गर्भ में इतिहास के अनेकों राज को समेटे हुए है. चाहे वह जिला मुख्यालय स्थित लाली पहाड़ी हो जहां विगत 25 नवंबर को खुद सीएम नीतीश कुमार ने खुदाई कार्य प्रारंभ कराया था तथा जहां से खुदाई के दौरान बौद्ध महाविहार के अवशेष भी मिलने शुरू हो गये हैं. वहीं जिले के अन्य कई ऐसे अनछूए हिस्से हैं जहां अगर राज्य सरकार सही से खुदाई कार्य कराये तो न सिर्फ देश को यहां के स्वर्णिम इतिहास का पता चलेगा बल्कि लखीसराय जिला का उत्तरोत्तर विकास हो सकेगा. ऐसा ही एक क्षेत्र सूर्यगढ़ा प्रखंड के कजरा थाना अंतर्गत उरैन पहाड़ी है. वहां भी अब तक भगवान बुद्ध के आने के कई प्रमाण मिल चुके हैं. यहां उनके पैरों के चिह्न से लेकर उनके रहने और स्तूप होने तक की बात कही जाती है.
उरैन पहाड़ी के आसपास से पौराणिक काल की मूर्तियों के मिलने और चोरी होने तक का सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है. खुदाई के कार्य से निकलने वाली वस्तुओं बौद्ध भिक्षुओं से संबंधित मूर्तियां के निकलने से इसके महाबीर बौद्ध से जुड़े होने का काफी सारे प्रमाण मिल रहे है. इधर, ग्रामीणों की माने तो पहाड़ी पर एक गुफा भी है जो रखरखाव के अभाव में जंगली खर पतवार से ढक गया है. इस गुफा में भी बेशकीमती मूर्तियां होने के भी संकेत बताये जा रहे है. शायद इस गुफा में काफी रहस्य छिपे हों. जिसके खुलने से भी कई रहस्यों से पर्दा उठ सकता है. जिसके खुलने का इंतजार सबों को है. ग्रामीणों के बीच खुदाई कार्य को लेकर भी काफी उत्सुकता बनी हुई है. उन्हें लगता है कि यदि खुदाई में इतिहास के पन्ने खुलेंगे तो उनके क्षेत्र का भी निश्चित विकास हो सकेगा.
पुरातत्व के जानकारों की मानें तो लॉरेंस ऑस्टिन वैडेल ने 1892 में छपी एक पुस्तक में ‘जनरल ऑफ द ऐसीएटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल’ में उरैन की पहाड़ी का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने लिखा था कि ‘मुंगेर जिला स्थित उरैन पहाड़ी पर बुद्धिस्ट के कई सारे प्रमाण हैं, साथ ही साथ बौद्ध धर्म के लिए मन्नत स्तूप भी हैं जो बौद्ध धर्म के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है’. वहीं आर्कियोलॉजिस्ट कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रो़ रूपेंद्र कुमार चटोपाध्याय ने आज से 25 वर्ष पूर्व सन् 1992 में ही अपने टीम के साथ उरैन पहुंच कर उरैन की पहाड़ी के इतिहास की रिपोर्ट तैयार की थी जिसे बिहार सरकार में एसआई के पूर्व निदेशक रहे अजीत प्रसाद को सौंपी गयी थी.
वहीं आर्कियोलाजिस्ट कैंब्रिज विश्वविद्यालय लंदन के प्रोफेसर दिलीप कुमार चक्रवर्ती, सचिंद्र नारायण झा के साथ मिलकर रूपेंद्र कुमार चटोपाध्याय ने रिसर्च किया था. जिस रिपोर्ट के बाद उरैन में दो सत्र 2016-17 एवं 2017-18 में खुदाई की जा रही है. इस संबंध में पिछले दिनों उरैन पहुंचने पर आर्कियोलॉजिस्ट प्रो रूपेंद्र कुमार चटोपाध्याय ने बताया कि था कि ‘हिस्टोरिकल आर्कियोलाजी ऑफ साउथ एशिया’ नामक पुस्तक का एक चेप्टर है ‘ऑनटिस्ट एंड औगिस्ट ऑफ साउथ बिहार’ में कई सारे क्षेत्रों का जिक्र है जिसमें उरैन का भी उल्लेख किया गया है. साथ ही साथ ‘साउथ एशियन स्टडीज’ में भी प्रो दिलीप कुमार चक्रवर्ती के साथ उनलोगों ने भी उरैन का जिक्र किया था.
अभी तक जितने भी पुरातत्वविद उरैन आये उनके लगभग रिपोर्ट में उरैन पहाड़ी पर मन्नत स्तूप होने का वर्णन किया गया है.प्रो. रूपेन्द्र कुमार चटोपाध्याय ने बताया कि उरैन में पाषाणकाल से भी पहले के सभ्यता थी. जिसके संबंध में यहां खेतीबारी और पशुपालन का ठोस प्रमाण मिला. उरैन पहाड़ी पर बौद्ध धर्म के लोग काफी दूर दराज से मन्नत स्तूप की परिक्रमा के लिये आते थे. उनका साक्षात प्रमाण पहाड़ पर भगवान बुद्ध के पैरो के निशान और मन्नत स्तूप में भगवान बुद्ध के बैठक मुद्रा का चित्र के साथ साथ वरमी अभिलेख साफ साफ प्रमाणिक है. अंग्रेज लेखक लॉरेंस ऑस्टिन वाडेल ने अपनी रिपोर्ट में उरैन पहाड़ी में बौद्धिष्टों का प्रमाणिक जिक्र किया था. साथ ही उन्होंने यह भी बताया था कि उसी दौरान उरैन क्षेत्र में रेलवे लाइन (पटरी) बिछाने का कार्य भी चल रहा था. साथ ही साथ उन्होंने सरकार को यह भी कहा था कि यहां रेलवे लाइन बिछाने के कारण यहां के पहाड़ से पत्थर की निकासी की जा रही है जिसके कारण यहां से काफी सारे मुर्तियां चोरी होने की भी बात कही गयी. जिसमें इस धरोहर को बचाने के लिए सरकार से अपील भी की थी.
उरैन पुरातात्विक खुदाई के लिए एएसआई द्वारा खुदाई का लाइसेंस 2016-17 एवं 2017-18 के लिए निर्गत किया गया है. जिस क्रम में खुदाई के दौरान बौद्ध भिक्षुओं के सेल, पाषाण युग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं. पुरातत्व विभाग के उपनिदेशक पुरातत्वविद् एवं डायरेक्टर ऑफ उरैन प्रोजेक्ट गौतमी भट्टाचार्या के निर्देशन में सात छात्र एवं छात्राओ द्वारा खुदाई कार्य किया जा रहा है. जिसकी देखरेख सहायक पुरातत्वविद नीरज कुमार मिश्रा के द्वारा की जा रही है.
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