ठाकुरगंज(किशनगंज) : एक जमाना था जब बहुरूपियों को देख कर लोग खुश होते थे. हफ्ता भर तक विभिन्न रूपों में उसके मनोरंजन के बाद उन्हें मेहनताना देकर सम्मानित करते थे. लेकिन आधुनिकता की इस नये दौर में कद्रदानों की संख्या में आयी कमी के कारण दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी बहुरुपियों के लिए मुश्किल हो रहा है.
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बहुरूपियों को सरकारी प्रोत्साहन की दरकार
ठाकुरगंज(किशनगंज) : एक जमाना था जब बहुरूपियों को देख कर लोग खुश होते थे. हफ्ता भर तक विभिन्न रूपों में उसके मनोरंजन के बाद उन्हें मेहनताना देकर सम्मानित करते थे. लेकिन आधुनिकता की इस नये दौर में कद्रदानों की संख्या में आयी कमी के कारण दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी बहुरुपियों के […]
पिछले एक सप्ताह से नगर क्षेत्र में कभी यमराज तो कभी रावण तो कभी अलीफ लैला के जिन्न और न जाने क्या क्या रूप धर कर लोगों का मनोरंजन कर राजस्थान के सीकर जिला नीम का थाना निवासी विशाल कुमार भाट कहते है कि इस कला में लोगों का आकर्षण कम होता रहा है. जिस कारण बहुरूपियों को अपना पुश्तैनी काम छोड़ना पड़ रहा है.
विशाल की मानें तो पहले जब किसी कस्बे में बहरूपिया पहुंचते थे तो लोग उसकी कला, उसके डायलॉग एवं वेशभूषा को देखने के लिए उत्साहित रहते थे. परंतु अब वह बात नहीं रही. बहुरूपिये आज गांव-गांव घूमने के बदले चैरिटी शो में शादी विवाह में जाकर अपना पेट भरना ज्यादा मुनासीब समझते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें अपने इस काम में जरा भी हीनता महसूस नहीं होती है. परंतु वे अपने बच्चों को बहुरूपिया नहीं बनायेंगे. वे सरकार से इस कला को जिंदा रखने के लिए बहुरूपियों के लिए प्रोत्साहन की उम्मीद रखते हैं.
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