कुर्लीकोट : बिहार का अंतिम सीमा क्षेत्र स्वामी विवेकानंद बस पड़ाव, से रोजाना दर्जनों बसे खुलती है. जिसमें जिला मुख्यालय और राज्य मुख्यालय तक जाती है. ठाकुरगंज, गलगलिया बस पड़ाव पश्चिम बंगाल की सीमा और नेपाल की सीमा को छूने वाली किशनगंज जिला में है. ठाकुरगंज से बिहार की राजधानी पटना मुख्यालय से लेकर कई अन्य जिलों के लिए भी बस से यहां से खुलती है. लेकिन बसों में सुरक्षा भगवान भरोसे ही हैं.
अगर आप बस में सफर कर रहे है और सही सलामत घर लौट आये तो ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करें. हालांकि, समय-समय पर परिवहन विभाग द्वारा सुरक्षा को लेकर निर्देश जारी किये जाते हैं. पर उसके अनुपालन के प्रति न तो विभाग सचेत है. और न ही बस मालिक. रोजाना बसों में हो रहे घटनाओं को लेकर सुरक्षा पर सवाल तो खड़ा हुआ है.
लेकिन, इसका प्रतिफल सामने निकलकर नहीं आया है. जब से लंबी दूरी के लिए वातानुकूलित बसों का चलना शुरू हुआ है. तब से हादसों की गुंजाइश और सफर करने वाले यात्री कितने सुरक्षित हैं. इसकी अनदेखी की जा रही है. सुरक्षा के मापदंड पर कितने बस कसौटी पर खरे उतर रहे हैं. इसकी भी जांच मात्र औपचारिकता व कोरम बनकर रह गयी है.
किशनगंज जिला मुख्यालय के अलावे बसे पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल इस्लामपुर, सिलीगुड़ी, बागडोगरा, बिहार के अररिया, पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, भागलपुर आदि कई जगह बड़ी बसे लंबी दूरी की यात्रा करते है. लेकिन, बसों में क्या सुरक्षा के व्यवस्था हैं यह बसों में चढ़ने वाले यात्री भी देखते हैं.
क्या हैं सुरक्षा के मापदंड
परिवहन विभाग की मानें तो सभी बसों में सुरक्षा के एक तय मानक बनाये गये हैं. जिसका अनुपालन सभी को करना अनिवार्य होता है. उसकी समय-समय पर जांच भी की जाती है. सभी वाहनों में फायर सेफ्टी उपकरण रखने का प्रावधान पूर्व से ही है लेकिन देखा गया है कि अधिकांश बसों में आग से सुरक्षा के नाम पर सिर्फ उपकरण टांग दिये गये हैं. इसके लिए बस चालक और कर्मियों को ना तो प्रशिक्षित किया गया है और ना ही उसके प्रति कोई जवाबदेही दी गयी है.
वैसे भी लंबी दूरी की बसों को छोड़ दिया जाये तो लोकल किसी भी तरह के वाहनों में फायर सेफ्टी की कोई उपकरण नजर नहीं आयेंगे. अधिकांश बसों में एक चालक और खलासी होता है. खलासी पूरी तरह कम उम्र का और अशिक्षित होते हैं. उसकी जवाबदेही यात्रियों के सामान को उचित स्थान पर रखना रहता है. ऐसे में अगर सेफ्टी उपकरण मौजूद भी हो तो आपातकाल में उसे उपयोग कौन करेगा. नियमानुसार बसों की क्षमता के अनुसार एक या एक से अधिक फायर इंस्टिग्यूशर का प्रावधान है.
पहले की यात्री बसों में आपातकालीन द्वार की व्यवस्था होती थी. लोकल बसों में भी आसानी से दिख जाती थी, लेकिन जब से वातानुकूलित बसों का चलन बढ़ा है तब से इसकी गुंजाइश पूरी तरह खत्म हो गयी है. ऐसी बसों में खासकर खिड़कियां मोटे शीशों से फिक्स्ड होती है. और गेट भी एक ही होता है. संकट की घड़ी में यात्रियों के लिए या किसी मुसीबत से कम नहीं है. जिसका ताजा उदाहरण पूर्णिया में हुए बस हादसा से लिया जा सकता है. आग लगने पर बसों का गेट ऑटोमेटिक लॉक हो जाता है. जिससे यात्री परेशान हो जाते हैं.
रोजाना जिले के अधिकारियों की आंखों के सामने से गुजरती हैं बसें
बसों के पीछे जिला प्रशासन में जिला पदाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, बस मालिक का नंबर अंकित किया जाता हैं. लेकिन, न तो कोई यात्रा कर रहे यात्रियों द्वारा किसी तरह की शिकायत दर्ज करायी जाती है. न ही मनमाने तरीके से वसूली की जा रहीं राशि और सुरक्षा व्यवस्था में लापरवाही बरतने की शिकायत की जाती है.
क्षमताओं से अधिक बसों में यात्रियों को भरने के बाद माल का लोडिंग करना भी बसों के चालकों और मालिकों के कमाई से जुड़ा रहने के कारण यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी को भी दरकिनार कर दिया जाता हैं. ऐसे में परिवहन विभाग के अधिकारियों की चुप्पी क्यों नहीं टूट रही है ये तो वही बेहतर जाने. लेकिन, जिले में रोजाना सैकड़ों यात्रियों के जीवन के साथ, उनके जीवन का दांव खेला जा रहा है.
बसों में फायर सेफ्टी के नाम पर खानापूर्ति
इलाके में रेल सुविधा कम होने के कारण रोजाना हजारों की संख्या यात्रियों को बस का सहारा लेना पड़ता है. बस में सफर करने को मजबूर यात्री को उचित किराया चुकाने के बावजूद भी बस में खड़े होकर जाना पड़ता है. जबकि, महिलाओं के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था बसों में नहीं रहती है. बसों के किराये भी मनमाने तरीके से वसूले जा रहें है.
लेकिन, इस पर कोई जांच नहीं होता है. बड़ी बसों में एसी लगी रहती है. जबकि, यात्रियों को उसके बारे में कुछ नहीं मालूम होता है. सफर के दौरान ना तो यात्रियों को कोई ऐसी हिदायत दी जाती है. जिससे किसी का उस तरफ ध्यान भी जाये. बस मालिकों का और एजेंटों का केवल भाड़ा लेने में दिलचस्पी होती है. और भाड़ा बढ़ाने में होती है. उन्हें पब्लिक की जान से कोई फर्क नहीं पड़ता है. बसों में चढ़ने उतरने क्रम में यात्रियों को अगर चोट लग जाये. तो इससे भी बस चालकों का कोई लेना देना नहीं होता है.