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155 लाख की दवा खरीद में घपला!

अनदेखी. आपूर्तिकर्ता कंपनी को पहुंचाया फायदा, ऑडिट टीम ने पकड़ी गड़बड़ी स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है. विभिन्न सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी की पुरानी आदत से मजबूर स्वास्थ्य विभाग की स्थिति में अभी भी कोई खास सुधार नहीं हो पाया है. स्थिति यह है कि स्वास्थ्य महकमें में जिसको जहां मौका मिल […]

अनदेखी. आपूर्तिकर्ता कंपनी को पहुंचाया फायदा, ऑडिट टीम ने पकड़ी गड़बड़ी

स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है. विभिन्न सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी की पुरानी आदत से मजबूर स्वास्थ्य विभाग की स्थिति में अभी भी कोई खास सुधार नहीं हो पाया है. स्थिति यह है कि स्वास्थ्य महकमें में जिसको जहां मौका मिल रहा है अवैध कमाई में हिस्सेदार बनने से जरा भी नहीं हिचक रहे हैं. चाहे कागज पर चल रहे स्वास्थ्यकर्मियों की ट्रेनिंग में हेराफेरी की बात हो या फिर दवा खरीद से लेकर विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का. कहा जाता है कि सरकारी नियम कायदे को ताक पर रख करीब 155 लाख की दवा खरीद में परदे के पीछे पैसों के खेल में अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक की जेब गरम की गयी.
खगड़िया : इधर, सरकारी अस्पतालों में रखी दवा वितरण के बिना एक्सपायर होते रहे लेकिन स्वास्थ्य विभाग में नियम कायदे को ताक पर रख कर करोड़ों की दवा खरीद कर जेब गरम करने में मशगुल रहा. ना दवा के गुणवत्ता के मानक की जांच की गयी… ना ही सरकारी दर का ख्याल रखा गया. बिना जरूरत के ही वर्ष 2011-12 व 2012-13 में सरकारी नियम कायदे को ठेंगा दिखाते हुए स्वास्थ्य विभाग ने करीब 155 लाख की दवाई खरीद ली.
ऑडिट टीम की जांच में दवा खरीद घोटाला का खुलासा होने के बाद कार्रवाई की फाइल ठंडे बस्ते में डाल कर टालमटोल किया जा रहा है. बताया जाता है कि उस वक्त दवा खरीद में मनपसंद फर्म ही नहीं बल्कि सरकार द्वारा अनुमोदित दवाई से अलग मनमाफिक दवा खरीद कर गोलमाल किया गया. ऑडिट की जांच रिपोर्ट में साफ साफ कहा गया है कि स्थानीय क्रय समिति द्वारा अनुमोदित दर पर गैर जरूरी दवा की खरीद कर ली गयी.
दवा के अनुपलब्धता का प्रमाण पत्र भी नहीं लिया गया और ना ही दवा के मानक जांच की गयी. ऐसे में मरीजों पर इन दवाओं के कुप्रभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. इधर, ऑडिट की आपत्ति पर स्वास्थ्य विभाग के जवाब को असंतुष्ट मानते हुए कार्रवाई की जरूरत जतायी गयी है.
जरा नियम भी पढ़ लें : सरकारी स्तर पर दवा खरीद के लिये स्वास्थ्य विभाग के संकल्प संख्या 9/क्रय-2-37/97 के अनुसार राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों में दवाएं उपलब्ध करवाने के लिये उन दवाओं का नाम, आपूर्तिकर्ता तथा कीमत का निर्धारण निविदा निकाल कर राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा अनुमोदित सूची सभी सीएस व जिला स्वास्थ्य समिति को उपलब्ध करवाते हुए पालन करने का निर्देश दिया गया था.
अर्थात इन दवाओं का क्रय करने के लिये उन्हें अलग से निविदा निकालने एवं क्रय समिति गठन की आवश्यकता नहीं थी. नियम के अनुसार अस्पतालों के प्रभारी, सिविल सर्जन को दवा उपलब्ध करवाने के लिये पत्र भेजेंगे. जिसके आधार पर सिविल सर्जन दवाओं का आकलन कर संबंधित फर्म को मांग पत्र भेज देंगे.
सिविल सर्जन कार्यालय की फाइल में मिली गड़बड़ी : सिविल सर्जन कार्यालय के अभिलेखों की जांच में पाया गया कि सामान्य परिस्थिति के रहते हुए भी जिला क्रय समिति द्वारा अनुमोदित दर पर 1,55,95,525 रुपये की दवा स्थानीय स्तर पर खरीद कर ली गयी. मतलब दवा मद की आवंटित राशि से अधिकतम दवाओं का क्रय आपातकालीन निविदा निकाल क्रय समिति कर गठन कर अधिकांश दवा राज्य स्वास्थ्य समिति के अनुमोदित फर्म से नहीं खरीदी गयी. ऑडिट टीम ने साफतौर पर कहा है कि सरकारी नियम कायदे को ताक पर रख कर राज्य स्वास्थ्य समिति के अनुमोदित फर्म की बजाय स्थानीय क्रय समिति द्वारा अनुमोदित दर पर किया गया था.
बात करने से कतरा रहे सिविल सर्जन
ठंडे बस्ते में दबी हेराफेरी में शामिल स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी व कर्मचारी पर कार्रवाई की फाइल के बावत पूछने के लिये सिविल सर्जन डॉ रासबिहारी सिंह मीडिया से मुंह छुपा रहे हैं. पूरे प्रकरण पर बात करने के लिये उनके सरकारी मोबाइल पर कॉल रीसिव नहीं होने के कारण उनका पक्ष नहीं लिया जा सका है. इधर, सीएस की चुप्पी कुछ और ही इशारा कर रहे हैं.
स्वास्थ्य विभाग के जवाब से ऑडिट टीम असंतुष्ट
ऑडिट टीम ने दवा खरीद में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पकड़ते हुए स्वास्थ्य विभाग से कई बिंदुओं पर स्पष्टीकरण पूछा गया था. स्थानीय स्तर पर दवा क्रय करने की क्या जल्दी थी? स्थानीय स्तर पर दवा क्रय करने के पूर्व उक्त दवा के लिये राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा अनुमोदित फर्म या आपूर्तिकर्ता से पत्राचार क्यों नहीं किया गया?, दवा अनुपलब्धता का प्रमाण पत्र लिये बिना करोड़ों की राशि से दवा खरीदने की क्या जल्दी थी?
ऐसे कई सवाल उठाते हुए ऑडिट के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि स्थानीय स्तर पर उन्हीं दवाइयों का क्रय किया गया जिनकी आवश्यकता मरीजों को थी. ये दवाइयां राज्य स्वास्थ्य समिति के अनुबंधित सूची में दर्ज नहीं था. इसलिये पत्राचार नहीं किया गया. जवाब से असंतुष्ट ऑडिट टीम ने इसे अमान्य मानते हुए कहा है कि दवा के अनुपलब्धता का प्रमाण पत्र नहीं लिया गया जो क्रय नियमों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है.
नियमत: दवा प्राप्त होने के बाद प्रत्येक बैच का नमूना की जांच रिपोर्ट आने के बाद वितरण किया जाना चाहिये. लेकिन खगड़िया में 2011-12 व 2012-13 में 30 दवाओं को जांच के लिये भेजा गया लेकिन दो दवाओं की जांच रिपोर्ट ही प्राप्त हुआ. ऐसे में स्थानीय स्तर पर दवा खरीद में मानक की गारंटी नहीं होने के कारण इन दवाओं के कुप्रभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता है.
राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा अनुमोदित फर्म की बजाय स्थानीय क्रय समिति के निर्णय पर दवा खरीद में खूब हुई बिचौलियागिरी
सरकारी नियम कायदे को ताक पर रख कर करोड़ों की दवा खरीद में अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक की जेब गरम
राज्य स्वास्थ्य समिति के अनुबंधित सूची की बजाय बिना अनुपलब्धता प्रमाण पत्र लिये ही खरीद ली गई मनपसंद दवाई
मामला वर्ष 2011-12 व 2012-13 में नियम को ताक पर रख कर स्वास्थ्य विभाग में 155 लाख की दवा खरीद का
दवा के मानक की जांच किये बिना खरीद व मरीजों के बीच वितरण से स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली कटघरे में
2011 – 13 तक 30 दवाओं के नमूने मानक जांच के लिये प्रयोगशाला में भेजे गये, मात्र दो की जांच रिपोर्ट आई
ड्रग्स व कास्मेटिक एक्ट 1956 के मानक के अनुरूप पहले जांच होनी चाहिए फिर मरीजों के बीच वितरण
टालमटोल जवाब से असंतुष्ट ऑडिट टीम ने गड़बड़ी करने वालों पर कार्रवाई पर दिया जोर
दवा खरीद में हेराफेरी के लिये जिम्मेवार अधिकांश स्वास्थ्यकर्मियों पर कार्रवाई की फाइल ठंडे बस्ते में डाला

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