127 वर्षों से गोशाला मेला हो रहा गुलजार फोटो है 9 में – गोशाला में लगी भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा. 18 में – मेले का आनंद उठाते लोग. 19 में – मेले में रोमांच पैदा करता मौत का कुआं.20 में – मेला में घूमते लोग. 21 में – टावर झूला .गोशाला मेला के दिन बंद रहता था बाजार नगर कीर्तन के माध्यम से मिलता था निमंत्रण वाहनों से लिया जाता था गोशाला टैक्स व्यापारी गोशाला टैक्स के रूप में देते थे टिकट प्रतिनिधि, खगड़ियाजिले का गौरव कहा जाने वाला गोशाला मेला 127 वर्षों गुलजार हो रहा है. जब गोशाला मेला के दिन बाजार बंद रहता था, उस दिन सुई से लेकर घर का कोई भी सामान खरीदने के लिए बाजार के लोगों को भी गोशाला मेला आना पड़ता था. गोशाला मेला के अवसर पर ढोल बाजा के साथ बाजार के व्यवसायियों को विधिवत निमंत्रण दिया जाता था. आमंत्रण के एवज में व्यवसायी पशुओं के लिए अनाज, चुन्नी, मूढ़ी आदि के अलावा गोशाला विकास के लिए नकद चंदा भी देते थे. शुरुआत में एक दिन ही लगता था मेलाऐतिहासिक गोशाला मेला की शुरुआत एक दिन (एक दिवसीय) से हुई थी. कालांतर में मेला की अवधि बढ़ा कर तीन दिन की गयी. तीन दिनों की अवधि को बढ़ा कर सात दिनों हुई. 127 वर्ष पूर्व जब गोशाला मेला की शुरुआत हुई, उस समय मात्र एक दिन ही मेला का आयोजन होता था. मेला से पूर्व नगर कीर्तन का अयोजन होता था. नगर कीर्तन में भाग लेने के लिए नामी गिरामी प्रवचनकर्ताओं को बुलाया जाता था. नगर कीर्तन के माध्यम से बाजार के लोगों को गोशाला मेला देखने एवं उसमें अपनी सहभागिता देने के लिए आमंत्रित किया जाता था. नगर कीर्तन में जहां प्रवचनकर्ता प्रवचन देते थे. वहीं नगर कीर्तन के समय गोशाला के गायों को शहर में प्रदर्शन होता था. गो माता के खाने की सामग्री देते थे दान मेंनगर कीर्तन के दौरान बाजार में व्यवसायी गोमाता के खाने की सामग्री दान में देते थे. दान की सामग्री से ही कई बैल गाड़ी भर जाती थी. वहीं गोशाला के विकास के लिए नकद राशि भी दान में दी जाती थी. जिस दिन गोशाला मेला लगता था उस दिन बाजार पूरी तरह बंद रहता था. मेला में ही सुई से लेकर अन्य सामान उपलब्ध होते थे. गोशाला स्थापना के बाद मारवाड़ी समाज के अलावे बाजार के व्यापारियों के द्वारा अनेक तरह का सहयोग किया जाता था. व्यवसायी वर्ग गोशाला विकास के लिए टैक्स के रूप में टिकट देते थे. गोशाला के विकास के लिए बाजार में प्रवेश करने वालों को भी गोशाला का रसीद काटा जाता था. जिसका पैसा गोशाला को दिया जाता था. विजयदशमी को नीलकंठ देख कर आने वाले समय के मंगल होने की कामना की जाती है. विजयादशमी के दिन नीलकंठ देखने के लिए आने वाले व्यवसायी भी गोशाला में दान के रूप में यथा शक्ति नकद राशि देते थे. विजयादशमी के दिन गोशाला कर्मी कुरसी टेबुल लगा कर बैठते थे. ताकि दान देने वालों का नाम रजिस्टर पर अंकित कर राशि का लेखा जोखा रखा जा सके.
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127 वर्षों से गोशाला मेला हो रहा गुलजार
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