मड़ुआ की रोटी अब लोगों को नसीब नहीं
मानसी : प्रखंड के खेत खलिहानों में एक जमाने में मड़ुआ की खेती बड़े एवं छोटे तबके के किसान भी करते थे. आज इसकी खेती को तरस रहे हैं. आलम यह है की फरकिया एवं आसपास में मड़ुआ की खेती विलुप्त होती जा रही है. कृषि विभाग भी इसकी खेती के लिए प्रोत्साहन से हाथ खड़े कर लिए हैं. विभाग की ओर से भी किसानों को मड़ुआ की खेती के प्रति जागरूकता नहीं किया जा रहा हैं.
परंपरागत खेती के रूप में विख्यात मड़ुआ एक जमाने में खेतों में लहलहाती रहतीं थी. तब खेतों में चारो तरफ मड़ुआ ही मड़ुआ नजर आते थे. आज मड़ुआ की फसल देखने को लोगों की आखें तरस जाती हैं. मड़ुआ की रोपाई जुलाई से अगस्त माह में और कटाई अक्टूबर से नवम्बर माह के बीच होती हैं.स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है मड़ुआ मड़ुआ स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक हैं.
मड़ुआ में औषधीय गुण भी काफी होते हैं. मड़ुआ से बनने बाले पदार्थ के सेवन करने से शरीर तंदुरुस्त रहता हैं. साथ ही रक्तचाप व मधुमेह जैसी बिमारियों से भी शरीर को बचाता हैं. औषधीय गुणों से भरपूर खेती आज विलुप्त होता जा रहा है.
कहते हैं कृषि पदाधिकारीविलुप्त हो रहे मड़ुआ की खेती के संबंध में कृषि पदाधिकारी आशुतोष कुमार ने बताया की इसका सीधा कारण है की यहां के किसान मड़ुआ की खेतों छोड़ धान, गेंहू, मक्का आदि की खेती की ओर आकर्षित होना हैं. ऐसे में मड़ुआ की खेती से कहीं अधिक मुनाफा किसानों को धान, गेहूं व मक्का की खेती से हो रही हैं. इन्हीं सब कारण से मड़ुआ की फसल से किसान विमुख हो रहे हैं.