खगड़िया : हाल के कुछ वर्षों में अंचल नजारत में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था. यहां करोड़ों रुपये के गोलमाल की बातें सामने आ रही है. गड़बड़ी की आशंका के मद्देनजर सीओ नौशाद आलम ने अंचल के पूर्व नाजिर पर प्राथमिकी दर्ज करायी है. अब पुलिस अनुसंधान में यह खुलासा होगा कि सरकारी राशि के गोलमाल हुई या नहीं.
लेकिन फिलहाल इस मामले में सभी ने चुप्पी साध रखी है. कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि जनता के लिए जो राशि सरकार ने दी थी. वो जनता के कल्याण में खर्च हुई अथवा बाबुओं ने अपने कल्याण में राशि खर्च कर ली. वर्तमान में जो स्थिति है वो चौंकाने वाले हैं. सीओ ने जो पूर्व नाजिर पर प्राथमिकी दर्ज करायी है. उससे कई खुलासे होंगे.
इस राशि से होना था महादलितों का कल्याण
अंचल कार्यालय में करोड़ों रुपये के खर्च का कोई हिसाब किताब नहीं है. ये राशि अलग अलग मद के थे. इन राशि से बाढ़ पीड़ितों को सहायता पहुंचानी थी. उन्हीं राशि से महादलित के कल्याण होने थे. नाव मालिकों के बकाये राशि का भुगतान होना था. इसके अलावा प्राकृतिक आपदा के शिकार हुए लोगों के आश्रितों के भरण पोषण के लिए ये राशि राज्य/जिला स्तर से अंचल कार्यालय को दिये गये थे. यहां तक कि किसानों से मालगुजारी के तौर पर लिए गये लगान शुल्क का लाखों रुपये कार्यालय को मिले थे.
नमें से अधिकांश राशि पीड़ित, गरीब व मजदूर वर्ग को मिलने थे. जिसका फिलहाल कोई लेखा जोखा कार्यालय में नहीं है. सीओ ने थानाध्यक्ष को दिये आवेदन में कहा है कि कई मद की पंजी का प्रभार पूर्व नाजीर के द्वारा नहीं दिया गया है. वर्ष 13-14 में सहाय मद के एक करोड़ सतावन लाख, अनुदान मद के 3 लाख रुपये, वर्ष 14-15 में 2245 सहाय मद के 21 लाख 9 हजार रुपये महादलित विकास योजना के 11 लाख 35 हजार रुपये का आवंटन प्राप्त हुआ था. जिसका कोई हिसाब किताब कार्यालय में उपलब्ध नहीं है. सीओ ने दर्ज करायी गयी प्राथमिकी में यह भी कहा है. उक्त अवधि में प्राप्त हुए आवंटन के खर्च का वाउचर तक कार्यालय में उपलब्ध नहीं है. जो कि अप्रत्यक्ष रूप से राशि गबन की संभावना को इंगित करता है.
रोकड़ पंजी भी गायब : अंचल कार्यालय में सरकारी योजना की राशि है. खर्च का हिसाब किताब के साथ साथ रोकड़ बही भी उपलब्ध नहीं है. सीओ ने थानाध्यक्ष को कहा है कि वर्ष 2008 से 2015 तक का रोकड़ बही भी कार्यालय से गायब है. पूर्व नाजिर पर आरोप है कि उन्होंने लगान रसीद से प्राप्त 9 लाख 27 हजार रुपये भी जमा नहीं कराये. ये राशि वित्तीय वर्ष 15-16 में प्राप्त हुए थे. सीओ ने वर्ष 13-14 एवं 14-15 में के साथ साथ दर्ज प्राथमिकी में यह भी कहा है कि वर्ष 11-12 से 14-15 तक बाढ़ आपदा मद में करोड़ों रुपये का आवंटन प्राप्त हुए था. जिसके अभिश्रव के अभाव में अंकेक्षण और एसी व डीसी विपत्रों बिल नहीं भेजा जा सका है.
दो साल बाद एफआइआर क्यों ?
गड़बड़ियों/घोटालों की आशंका के मद्देनजर यह पहला मामला नहीं है. जहां एफआइआर दर्ज हुई है. ऐसे कई प्राथमिकी दर्ज हुए हैं और होने भी चाहिये. लेकिन अंचल नाजिर पर दर्ज प्राथमिकी इन दिनों जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है. लोग पूछ रहे है कि आखिर उक्त नाजिर को वर्ष 2015 में ही बर्खास्त कर दिया तो प्राथमिकी में इतनी देर क्यों लगायी गयी. समाहरणालय से महज आधे किमी की दूरी पर अवस्थित अंचल कार्यालय में इतने लंबे समय से यह सब कुछ होता रहा तो फिर समय रहते वरीय अधिकारी ने इस मामले मे कड़े आदेश अबतक क्यों नहीं दिये. जानकार बताते हैं कि इतनी बड़ी राशि का अगर गोलमाल हुआ है
तो यह अकेले नाजिर के बस की बात हो ही नहीं सकती. उल्लेखनीय है कि इस मामले की जानकारी काफी समय से कुछ वरीय पदाधिकारी को भी थी. तो सवाल उठता है कि उन्होंने क्यों नहीं सीधे डीएम से प्राथमिकी दर्ज कराने की अनुमति मांगी. करीब दो वर्षों से प्रखंड/ अंचल के वरीय प्रभारी क्या कर रहे थे. सीओ नौशाद आलम की माने तो उन्होंने इसकी जानकारी वरीय अधिकारी को दी थी तो फिर एफआइआर दर्ज कराने में इतनी देर क्यों लगी. सवाल तो ओर भी कई है
. जिसका जवाब अब पुलिस ढुंढेगी और अन्य लोगों की भूमिका तलाश करेगी. जिन्होंने इस मामले में चुप्पी साध रखी थी. यहां यह बताना आवश्यक है कि इस मामले में प्राथमिकी तब दर्ज हुई जब यह मामला आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्य अमृत के पास पहुंचा और उन्होंने एडीएम को सीधे रिपोर्ट के साथ पांच सितंबर को तलब किया. दर्ज एफआइआर मे तिथि चार सितंबर अंकित है यानी साफ है कि सुनवाई की तिथि के एक दिन पूर्व प्राथमिकी दर्ज हुई है. वो भी फर्जीबाड़े के तीन अजमानतीय धारा क्रमश: 429,409, एवं 406 में प्राथमिकी दर्ज की गयी है.