कटिहार : जिले में कृषि क्षेत्र में कई फसल किसानों की ओर से लगाया जाता है. इसमें कृषि विभाग की ओर से अनुदान उपादान सहित कई योजनाओं से किसानों को लाभ दिया जाता है. लेकिन इस सबसे पड़े कुछ महिलाओं ने समूह बनाकर मशरूम की खेती की शुरुआत की है. हालांकि विभाग की ओर से उन्हें किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की जा रही है. फिर भी इन सभी महिलाओं ने समूह के माध्यम से मशरूम की खेती कर अपना आमदनी बनाने का नया जरिया ढूंढ निकाला है.
हालांकि मशरूम की खेती का प्रशिक्षण समय-समय पर नहीं होने के कारण इसकी खेती से अब तक जिले के किसान लाभान्वित नहीं हो सके हैं. आगे इस दिशा में इसकी खेती से कोई लक्ष्य नहीं बना पा रहे हैं. लेकिन महिलाओं के जज्बा को सलाम करते हुए यही कहा जा सकता है कि जिले में मशरूम की खेती का बीड़ा उठाकर इन्होंने एक नयी मिसाल पेश की है. हालांकि इनके समक्ष कई चुनौतियां हैं फिर भी इन महिलाओं ने हार नहीं मानने की कसम खा रखी है.
कैसे शुरू किया मशरूम की खेती करना : शहर के हृदयगंज स्थित प्रयास महिला स्वयं सहायता समूह के महिलाओं द्वारा मशरूम की खेती को लेकर आपस में विचार विमर्श कर इसकी खेती शुरू की. समूह के महिला लक्ष्मी कुमारी पिता नागेश्वर मालाकार ने बताया कि एक कमरे में जिसमें खेती के अनुरूप वातावरण हो उसमें खेती की जा रही है. उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र कटिहार से मशरूम की खेती के लिए पूर्व में प्रशिक्षण लिया था. प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कृषि विभाग की ओर से किसी भी प्रकार का सहायता नहीं मिला. कुल 15 महिलाओं की संख्या वाले इस समूह ने पांच हजार की लागत से मशरूम की खेती करने का बीड़ा उठाया है.
श्रीमती कुमारी ने बताया कि 30 दिसंबर 2016 से मशरूम की खेती किया जा रहा है. जिसमें अब तक अच्छा मशरूम उग आये हैं. उन्होंने बताया कि जितना मशरूम लगाया गया है. उसमें पांच हजार की लागत को छोड़कर दस से पंद्रह हजार मुनाफा कमाया जायेगा. उन्होंने बताया कि अगर आत्मा जिला कृषि से सहायता मिले तो इस खेती को व्यापक स्तर पर किया जायेगा.
विभाग की ओर से नहीं दी गयी कोई सहायता
15 महिलाओं वाले समूह ने पांच हजार की लागत से मशरूम की खेती करने का उठाया है बीड़ा
ऐसे होती है मशरूम की खेती
मशरूम की खेती के लिए जिला स्तर पर वैसे तो आत्मा की ओर से प्रशिक्षण का दम भरा जाता है. लेकिन जमीनी हकीकत देखे तो इस मामले में जिला कृषि हो या आत्मा हो कोई भी आगे बढ़कर किसी प्रकार सहायता या प्रशिक्षण आयोजित नहीं किया जाता है. हालांकि आत्मा के उप परियोजना निदेश शशिकांत झा ने बताया कि समय-समय पर मशरूम की खेती के लिए किसानों को जागरूक किया जाता है. लेकिन किसानों की रुचि नहीं होने के कारण कार्यक्रम को आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि गेहूं का भूसा में बीज डालकर मशरूम तैयार किया जाता है. एक बैग में 200 ग्राम बीज लगता है.
एक तुलाई में आधा किलो मशरूम निकलता है. एक बार की खेती में तीन से चार बार तोड़ा जाता है. बाजार में डेढ़ सौ से दौ सौ रुपये की दर पर बिक्री की जाती है. बीज को सबौर कृषि महाविद्यालय भागलपुर से मंगाया जाता है. उन्होंने बताया कि अगर किसान मशरूम की खेती में अभिरुची लेते हैं तो उन्हें विशेष प्रशिक्षण के लिए शिमला स्थित मशरूम की संस्थान में प्रशिक्षण के लिए भेजा जायेगा.
प्रभात खबर की खेती बाड़ी से प्रभावित होकर खेती के लिए आगे आये किसान