कटिहार : विधानसभा चुनाव को लेकर गुरुवार को अधिसूचना जारी होने के साथ ही सियासी व प्रशासनिक हलचल तेज हो गयी है. इस बीच दशहरा को लेकर भी रौनक बढ़ने लगा है.
चुनावी व त्योहारों के हलचल के बीच मजदूरों का पलायन जारी है. यद्यपि निर्वाचन आयोग के निर्देश पर जिला प्रशासन ने विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से स्वीप कोषांग के तहत व्यापक पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है.
विभिन्न गतिविधियों के जरिये मतदाता जागरूकता अभियान ग्रास रूट तक चल रही है. लेकिन मजदूरों पर इस अभियान का असर नहीं दिख रहा है. हर रोज बड़े पैमाने में मजदूरों का पलायन हो रहा है. यह भी अजीब बात है कि कटिहार सहित कोशी व सीमांचल इलाके में विधानसभा चुनाव पांचवें चरण यानी 5 नवंबर को होना है.
जबकि इसी इलाके से मजदूरों को पलायन हर रोज हो रहा है. कटिहार जक्शन में हर रोह शाम में मजदूरों का मेला जैसा नजर आता है. खासकर शाम सात बजे से लेकर 12 बजे मध्य रात्रि तक कटिहार स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या एक, दो, तीन तथा प्लेटफार्म के भीतरी व बाहरी परिसर में ट्रेन का इंतजार मजदूर करते हैं. इसी अवधि में ट्रेन अमृतसर
, दिल्ली व अन्य शहरों के लिए यहां से खुलती है. मजदूरों के पलायन की रफ्तार बताता है कि उनके लिये विधानसभा चुनाव में वोट डालने या त्योहारों का आनंद उठाने से अधिक जरूरी रोजी रोटी है. प्रभात खबर ने आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ‘वोट करें-बिहार गढ़ें’ मुहिम के तहत आम लोगों से जुड़ा ज्वलंत मुद्दा सामने ला रही है.
इसी श्रृंखला के तहत आज मनरेगा के बावजूद मजदूरों का पलायन की रपट यहां प्रस्तुत की जा रही है. नहीं रूक रही है मजदूरों का पलायन–केंद्र सरकार के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों का पलायन रोकने के उद्देश्य से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) लाया गया.
अगले वर्ष 2016 में इस कानून को लागू हुए एक दशक पूरा हो जायेगा. लेकिन जिस उद्देश्य से मनरेगा लागू की गयी, यह अपने उद्देश्य को पूरा करने में नाकाम रहा. कटिहार जिले में मनरेगा के फ्लॉप होने की वजह से ही बड़े पैमाने पर मजदूरों का पलायन हो रहा है.
कई मजदूर तो बातचीत में यहां तक कह देते हैं कि मनरेगा के भरोसे रहें तो उनके घर का चुल्हा-चक्की भी बंद हो जायेगा. व्याप्त भ्रष्टाचार के वजह से मनरेगा अपने उद्देश्य में नाकाम रही है.
मजदूरों की मानें तो इसमें मनरेगा का दोष नहीं है बल्कि क्रियान्वयन करने वाली सिस्टम इसके लिए जिम्मेदार है. अगर ईमानदारी से मजदूरों को अपने गांव में 100 दिन का भी रोजगार मिल जाय तो वह बाहर काम करने के लिए नहीं जायेंगे. लेकिन ऐसी स्थिति नहीं है. यही वजह है कि हर रोज जिले से मजदूरों का पलायन हो रहा है.
क्या है मनरेगा—मनरेगा के तहत सरकार ने 100 दिन काम देने की गारंटी मजदूरों को दी है. मनरेगा में यह भी कहा गया है कि गांव में ही मजदूरों को साल में एक सौ दिन रोजगार उपलब्ध करायी जायेगी. इसके लिए मजदूरों का जॉब कार्ड बनाया गया.
सरकार द्वारा समय-समय पर काम मांगों अभियान भी चलाया गया. कटिहार जिले के 16 प्रखंड में अगस्त 2015 तक 435911 मजदूरों का पंजीकरण मनरेगा के तहत करके उन्हें जॉब कार्ड दिया गया. जॉब कार्ड के तुलना में मजदूरों को काम नहीं दिया गया. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 10 प्रतिशत मजदूरों को भी साल में सौ दिन का रोजगार नहीं मिला.
जबकि मनरेगा में यह भी प्रावधान किया गया है कि जॉब कार्डधारी रोजगार के लिए आवेदन देते हैं तो रोजगार उपलब्ध नहीं कराने की स्थिति में सरकार के द्वारा उन्हें भत्ता दिया जायेगा.
लेकिन ऐसा जिले में नहीं हो रहा है. केस स्टडी – एक—आजमनगर के महेश मंडल अपने छोटे भाई सुनील के साथ बुधवार की शाम प्लेटफार्म संख्या एक के बाहर मिलते हैं. प्रभात खबर से बातचीत करते हुए वह कहते हैं कि चुनाव से उनका तथा उनके परिवार का पेट नहीं भरेगा.
मनरेगा की बात पर भड़कते हुए वह कहते हैं कि मनरेगा तो जनप्रतिनिधि व प्रशासन के लिए है. इससे मजदूरों को कहां लाभ मिलता है. अगर गांव में काम मिल जाता तो बाहर काम करने नहीं जाते.
केस स्टडी – दो—-कमोवेश इसी तरह की दर्द हसनगंज के राजेंद्र शर्मा ने बयां की. कहते हैं कि गांव में काम नहीं मिलने की वजह से वह लुधियाना रोजगार के लिए जा रहे हैं. आम्रपाली एक्सप्रेस पकड़ने पहुंचे श्री शर्मा कहते हैं कि मनरेगा में काफी गड़बड़झाला है. नाम किसी का होता है और मजदूरी किसी दूसरे को मिलता है. गांव में काम नहीं मिलने की वजह से ही वह लुधियाना काम करने के लिए जा रहे हैं.