कटिहार: बड़ी नदियों को ज्यादातर लोग तबाही का कारण मानते हैं. इस जिले के चार प्रखंड कमोबेश हर साल बाढ़ व कटाव की विभीषिका को ङोलता है. जिले से गुजरने वाली प्रमुख नदी गंगा, कोसी व महानंदा के जरिये हर साल आने वाली बाढ़ व कटाव की वजह से अधिकांश लोग इसे अभिशाप की संज्ञा भी देते रहे हैं. केंद्र व राज्य सरकार बाढ़ को विभीषिका मान कर हर साल बाढ़ नियंत्रण के नाम पर करोड़ों की राशि खर्च करती है.
हालांकि राज्य व केंद्र सरकार समय-समय पर इस मामले में विशेषज्ञों से मशविरा भी करते रहे हैं. गंगा-कोसी तथा उसके आसपास की सहायक नदियों के सहारे कटिहार जिले को समृद्ध व खुशहाल बनाया जा सकता है. इस पर प्रभात खबर ने बुधवार को आप सबको रू-ब-रू कराया है. आज महानंदा नदी की बात करते हैं. महानंदा कटिहार जिले में बहने वाली प्रमुख नदी है. जिले के पूर्वी भाग में यह नदी बहती है. कटिहार जिले के कदवा, आजमनरगर, प्राणपुर, अमदाबाद, डंडखोरा, बारसोई, व बलरामपुर प्रखंड महानंदा नदी के दायरे में आता है. इस नदी में वर्ष 1986 में आयी प्रलयंकारी बाढ़ की याद आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देते हैं.
अधिकांश विशेषज्ञों, नौकरशाह व राजनीतिज्ञ महानंदा नदी को बाढ़ फैलाने के रूप में जानते हैं तथा उसी दृष्टिकोण से बाढ़ नियंत्रण के लिए योजना व परियोजना बनती रही है. बाढ़ से बचाने के नाम पर बनी योजना-परियोजना के जरिये महानंदा नदी पर करोड़ों-अरबों रुपये खर्च किये गये हैं. यह काम आज भी जारी है. प्रभात खबर अपनी खास रपट के जरिये यह बात सामने ला रही है कि महानंदा नदी जीवनदायिनी भी हो सकती है. इस लाइन पर क्यों नहीं सोचा जा रहा है. बाढ़ नियंत्रण के नाम पर करोड़ों खर्च होती है. फिर भी बाढ़ हर साल तबाही मचाती है.
क्या हैं सुझाव
चूंकी महानंदा नदी के जल स्तर में अचानक वृद्धि हो जाती है. वहां के लोगों को बचाव का मौका नहीं मिल पाता है, जिससे काफी नुकसान होता है. अगर बाढ़ की पूर्व सूचना मिल जाये, तो स्थानीय लोग अपना बचाव कर सकते हैं. क्षेत्र में ऊंचा शेड बनाया जाये, ताकि बाढ़ की स्थिति में लोग वहां ठहर सकें. शेड इस तरह का हो, कि लोग वहां रह सके, अनाज रख सकें, मवेशियों के रहने की व्यवस्था हो.
राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी
महानंदा नदी के जरिये क्षेत्र का समग्र विकास होगा. लेकिन इसके लिए दीर्घकालिक रोड मैप तैयार करना होगा. संसद व विधान मंडल में यह गूंजना चाहिए, ताकि केंद्र व राज्य सरकार विशेषज्ञों की टीम भेज कर इसके लिए डीपीआर तैयार कर सके. यह सब कुछ तभी संभव है, जब आमलोग इसके लिए आगे आये तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रबल हो. जनप्रतिनिधि व राजनीतिक दल के एजेंडे में यह प्रमुखता से शामिल रहे हैं. परिस्थिति बदल रही है. सूचना व तकनीक का युग आ गया है. ऐसे में जन प्रतिनिधि व व्यवस्था पर परंपरागत लीक से हट कर काम करने की जरूरत है.
कहते हैं विशेषज्ञ
बाढ़ पर शोध करने वाले शिक्षाविद पंकज कुमार झा कहते हैं कि कटिहार जिले के बाढ़ पर ही उनका शोध पत्र तैयार हुआ है. अध्ययन के दौरान यह बात सामने आयी कि अब बाढ़ नियंत्रण से काम नहीं चलेगा, बल्कि अब बाढ़ प्रबंधन के जरिये ही महानंदा नदी जैसे नदियों को जीवनदायिनी बनाया जा सकता है.