भभुआ (सदर): स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों व कर्मियों की कमी लोगों के लिए परेशानी का सबब बना है. स्वास्थ्य विभाग जैसे-तैसे अस्पताल आने वाले मरीजों की देखभाल कर रहा है. स्थिति यह है कि सदर अस्पताल भी मानदेय कर्मियों के भरोसे चल रहा है. अस्पताल की ओटी से लेकर दवा वितरण व इमरजेंसी का काम भी इन्हीं मानदेय कर्मियों के भरोसे चल रहा है.
सरकारी नियमों पर अगर गौर करे, तो हर एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर के रहने का प्रावधान है. लेकिन, इस जिले की 16 लाख की आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार) केवल 48 डॉक्टरों के भरोसे है, जबकि जिले में डॉक्टरों के स्वीकृत पदों की संख्या 148 है.
झोलाछाप डॉक्टरों की कटती है चांदी
डॉक्टर की डिग्री लेने वाले तो निजी अस्पताल खोल कर मरीजों का इलाज कर ही रहे हैं. सरकारी डॉक्टरों की कमी के चलते गांवों में फैले झोला छाप डॉक्टरों की भी खूब चांदी कट रही है. प्रखंडों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टरों के नहीं उपलब्ध रहने के कारण मरीज इन्हीं झोला छाप डॉक्टरों पर भरोसा कर इनकी लूट का शिकार हो रहे हैं.
अस्पतालों में सजर्न की कमी
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, जिले के अस्पतालों में सजर्न की भी कमी है. कुछ अस्पतालों में सजर्न हैं, लेकिन ओटी असिस्टेंट नहीं हैं. इसके अलावा भभुआ सहित जिले के कई प्रखंडों में दर्जनों डॉक्टर निजी अस्पताल खोल कर बैठे हैं. सदर अस्पताल में सजर्न की कमी के चलते मरीज अस्पताल की जगह निजी क्लिनिक में पहुंच जा रहे हैं.