वीरान पड़ा है औद्योगिक प्रांगण वजूद पर संकट : बंद हो गये उद्योग के तीनों सेंटर ,बढ़ी बेरोजगारी, शासन प्रशासन का ध्यान नहीं चर्मशोधन, ऊन व बाल्टी फैक्ट्री का खत्म हो गया अस्तित्व अफसरों की कमी से सही ढंग से नहीं हो रहा जिला उद्योग विभाग का संचालन फोटो-7,8 इंट्रो: कभी रहता था गुलजार. गूंजती थी मशीनों की आवाज. रहती थी श्रमिकों का चहल कदमी लेकिन आज छायी है वीरानी. यह हाल है शहर स्थित औद्योगिक प्रांगण क्षेत्र का. इस प्रांगण की तीन प्रमुख औद्योगिक इकाईयां पूरी तरह बंद हो गयी. साथ ही शहर में संचालित अन्य उद्योग धंधे का वजुद भी मिट चुका है. कई लोग बेरोजगार हो गये हैं उधोग धंधों की संभावित आवश्यकता रहने के बावजूद इस ओर शासन प्रशासन का ध्यान नहीं जा रहा है. परिणाम यह है कि हजारों की संख्या में शिक्षित बेरोजगार युवक-युवतियां रोजगार के लिए तरस रहे हैं.जहानाबाद. बड़े ही तामझाम के साथ शहर के निजामुदीनपुर के समीप औद्योगिक प्रांगण की स्थापना की गयी थी. चमड़ा उद्योग के दो सेंटर चर्मशोधन और चर्म वस्तु निर्मित सेंटर के अलावा उन बुनाई केन्द्र संचालित की गई थी. जिसका वजूद पूरी तरह समाप्त हो गया. ओद्योगिक प्रांगण में संचालित किए गए ये तीनों सेंटर अब बंद हो गए हैं. बल्व और बालटी उद्योग भी बंद. शहर में बालटी और बल्व उद्योग की भी स्थापन की गई थी. यहां निर्मित बालटी और बल्व सूबे के विभिन्न जिलों में सप्लाई की जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं होता. आवश्यक रख-रखाव एवं सरकारी सहायता के अभाव में इन दोनों उद्योगों का अस्तित्व भी समाप्त हो गया. नहीं हैं स्थायी जी एम. उद्योग विभाग जहानाबाद में विभाग के महाप्रबंधक का पद भी लंबे समय से खाली है. स्थायी जी एम नहीं रहने के कारण विभाग का काम जैसे-तैसे संचालित हो रहा है. फिलहाल गया के जी एम माकेश्वर द्विवेदी जहानाबाद के अतिरिक्त प्रभार में हैं जो कार्यों के दोहरे दबाव के कारण यहां नियमित रूप से नहीं आते हैं. पूर्व जीएम राय ज्ञानचंद्र के सस्पेंड किए जाने के बाद 17 मार्च 2015 को नालंदा के जी एम सुरेश कुमार ने अतिरिक्त प्रभार संभाला था. पुन: 25 जुलाई से गया के महाप्रबंधक माकेश्वर द्विवेदी अतिरिक्त प्रभार में हैं. कई पद हैं रिक्त. इस जिले में उद्योग धंधों के विकसित नहीं होने की दिशा में एक बाधा यह भी है कि यहां कई पद रिक्त हैं. जिला उद्योग केन्द्र में प्रबंधक के दो पद सृजित हैं और दोनों रिक्त हैं. औद्योगिक निरीक्षक के स्वीकृत तीन पद में एक रिक्त है. ऐसी हालत में उद्योग धंधे का वजूद मिटना स्वभाविक कहा जा रहा है. इसके अलावा पदस्थापित कर्मियों की डयूटी के प्रति लापरवाही बरतना भी उद्योग धंधे सफल नहीं होने के कारक तत्व हैं. सभी संभावनाएं रहने के बावजूद भी उद्योग स्थापित करने की दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है. फलस्वरूप कई जरूरतमंद बेरोजगार इसके लाभ से वंचित हैं. रोजगार पाने के लिए अन्यत्र स्थान र जा रहे हैं. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम पर टिकी है आस. यह कार्यक्रम सुक्ष्म, लघु और मध्यम उधम मंत्रालय भारत सरकार का एक क्रांतिकारी निर्णय कहा जाता है. इसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम को विलय कर तैयार किया गया है. खादी और ग्रामोउद्योग आयोग इस योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल अभिकरण है लेकिन इसका व्यापक ढंग से यहां प्रचार-प्रसार की कमी देखी जा रही है. शहर और गांवों के अधिकतम शिक्षित और बेरोजगारों को इसकी जानकारी नहीं है. वैसे लोगों को यह जानना जरूरी है कि विनिर्माण क्षेत्र के लिए 25 लाख और सेवा क्षेत्र के लिए 10 लाख इस कार्यक्रम की परियोजना का अधिक तम आकार है. इन्हें मिलेगा इस कार्यक्रम का लाभ. अधिकतम एक लाख रुपए की पूंजीगत लागत पर कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार देना आवश्यक है. इस योजना के अन्तर्गत वैसे आवेदक ही लाभान्वित हो सकेंगे जिन्होंने स्वयं अथवा उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने राज्या या केन्द्र सरकार द्वारा संचालित ऐसी किसी भी योजना में लाभ या अनुदान पहले प्राप्त नहीं किया हो. विनिर्माण क्षेत्र के लिए 10 लाख और सेवा क्षेत्र के लिए 5 लाख से अधिक की परियोजना लागत के लिए कम से कम 8 वीं कक्षा पास रहना अनिवार्य है.
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वीरान पड़ा है औद्योगिक प्रांगण
वीरान पड़ा है औद्योगिक प्रांगण वजूद पर संकट : बंद हो गये उद्योग के तीनों सेंटर ,बढ़ी बेरोजगारी, शासन प्रशासन का ध्यान नहीं चर्मशोधन, ऊन व बाल्टी फैक्ट्री का खत्म हो गया अस्तित्व अफसरों की कमी से सही ढंग से नहीं हो रहा जिला उद्योग विभाग का संचालन फोटो-7,8 इंट्रो: कभी रहता था गुलजार. गूंजती […]
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