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एक दर्जन थैलीसीमिया मरीजों को है मदद की दरकार, हर 20 दिनों पर चढ़ाना पड़ता है एक यूनिट खून

जहानाबाद : जिले में गंभीर आनुवांशिक बीमारी थैलीसीमिया से ग्रस्त मरीजों की संख्या बढ़कर एक दर्जन से अधिक हो गयी है. इन मरीजों को हरेक 15-20 दिनों पर रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है. सदर अस्पताल स्थित ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉ मनीष सिंह बताते हैं कि सदर अस्पताल की ओर से नौ मरीजों को […]

जहानाबाद : जिले में गंभीर आनुवांशिक बीमारी थैलीसीमिया से ग्रस्त मरीजों की संख्या बढ़कर एक दर्जन से अधिक हो गयी है. इन मरीजों को हरेक 15-20 दिनों पर रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है. सदर अस्पताल स्थित ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉ मनीष सिंह बताते हैं कि सदर अस्पताल की ओर से नौ मरीजों को थैलीसीमिया कार्ड दिया गया है.

वहीं अन्य दो लोगों के कार्ड बनने की प्रक्रिया प्रोसेस में है. इन सभी मरीजों को ब्लड बैंक द्वारा नि:शुल्क रक्त दिया जाता है. ताकि इनका जीवन बचा रहे. जनवरी से लेकर अब तक कुल 30 यूनिट रक्त दिया गया है.
वहीं एक साल में करीब 140 यूनिट खून इन थैलीसीमिया मरीजों के जीवन को बचाये रखने के लिए ब्लड बैंक द्वारा दिया जाता है. जहानाबाद में रक्तदान के क्षेत्र में काम कर रही संस्था रक्त सेवा के अध्यक्ष रजनीश कुमार विक्कू बताते हैं कि संस्था के सदस्यों द्वारा इन मरीजों को रक्त उपलब्ध करवाने की पूरी कोशिश की जाती है.
कुछ मरीजों का ब्लड ग्रुप दुर्लभ है. इस कारण इनको रक्त उपलब्ध करवाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ती है. जिले के युवाओं को आगे आकर इन थैलीसीमिया मरीजों के लिए रक्तदान करना चाहिए ताकि इनका जीवन बच सके.
रक्तदाताओं के भरोसे चल रही है जिंदगी : जिले के सभी थैलीसीमिया मरीजों की उम्र दो साल से 12 साल के बीच है. शहर से टेनीबिगहा मुहल्ले का रहने वाला दो वर्षीय समीर को थैलीसीमिया की गंभीर बीमारी है.
उसके पिता राजेश कुमार बताते हैं कि जब समीर चार माह का था, तब इस बीमारी का पता चला. इसके बाद से तो जैसे जिंदगी ही बदल गयी. समीर को सांस लेने में तकलीफ होती है. वहीं हमेशा थकान से ग्रसित रहता है. वजन भी नहीं बढ़ रहा और त्वचा का रंग भी रक्त की कमी से पीला हो जाता है.
अन्य बच्चे जैसा उसको खेलते-कूदते न देखकर पूरा परिवार हमेशा चिंता में डूबा हुआ रहता है. समीर को हर 20 दिनों पर रक्त चढ़ाना पड़ता है. ब्लड बैंक में खून उपलब्ध रहने पर आसानी से मिल जाता है, लेकिन जब कभी वहां ओ निगेटिव ग्रुप का रेयर रक्त नहीं रहता है तो फिर रक्तदाता की खोजबीन में भारी मशक्कत करनी पड़ती है.
डॉक्टर बताते हैं कि समीर को पूरी तरह ठीक करने के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट करना होगा, लेकिन उसका खर्च 15 लाख से ज्यादा होने के कारण मध्यम वर्गीय परिवार के लिए बहुत मुश्किल है. ऐसे में बेटे का जीवन बचा रहे इसके लिए लगातार रक्त की व्यवस्था करने में लगे रहते हैं और मन हमेशा किसी अनिष्ट की आशंका से ग्रसित रहता है.
लगभग ऐसी ही कहानी मोदनगंज के रितिक गुप्ता और शिवानी गुप्ता की है. दोनों भाई-बहन थैलीसीमिया के मरीज हैं और दोनों को 15-20 दिन पर रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. काको पचरूखिया रजनीश कुमार, कृपा बिगहा के अमरजीत कुमार, कमलपुर के अमलेश कुमार सहित दर्जनों बीमार बालकों की कहानी इससे जुदा नहीं है.
क्या है थैलीसीमिया
डॉ मनीष बताते हैं कि थैलीसीमिया बच्चों को माता-पिता से मिलने वाली जेनेटिक बीमारी है. इस रोग में लाल रक्त कोशिकाओं का बनना रुक जाता है, जिससे हेमोग्लोबीन की कमी हो जाती है. इस रोग की पहचान तीन माह के उम्र के बाद ही हो पाती है. मरीज को बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है.
इस बीमारी की रोकथाम बोन मैरो ट्रांसप्लांट से किया जा सकता है जो सगे भाई-बहन ही दे सकते हैं. यह बीमारी संतान को नहीं हो, इसके लिए विवाह के पहले ही दंपति को अपना-अपना थैलीसीमिया परीक्षण कराना चाहिए. अगर दोनों थैलीसीमिया के लक्षण हैं तो संतान को थैलीसीमिया बीमारी जन्म से ही रहेगी.

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