Jamui: जिले के खैरा प्रखंड के फतेहपुर गांव की सीमा का सड़क हादसे में एक पैर खो देने के बावजूद करीब 500 मीटर दूर तक एक पैर के सहारे पगडंडियों पर कूदते हुए स्कूल जाती है. यह खबर मिलने के बाद बिहार सरकार के मंत्री ने जिलाधिकारी को सूचना पहुंचायी और उसके बाद जिलाधिकारी बुधवार को सीमा से मिलने उसके गांव पहुंचे. साथ ही तत्काल एक ट्राइ साइकिल भेंट की.
'महावीर चौधरी ट्रस्ट' उठायेगा सीमा के इलाज की जिम्मेदारी
बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि ''अब सीमा चलेगी भी और पढ़ेगी भी.'' उन्होंने कहा है कि ''समुचित इलाज की जिम्मेदारी अब 'महावीर चौधरी ट्रस्ट' उठायेगा. मामला बिहार सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के मंत्री सुमित कुमार सिंह के क्षेत्र का है. इसकी जानकारी स्थानीय जिलाधिकारी को दे दी गयी है.''
जल्द ही पटना में लगाया जायेगा कृत्रिम पैर
साथ ही भवन निर्माण विभाग के मंत्री अशोक चौधरी ने कहा है कि ''शीघ्र-अतिशीघ्र बिटिया को पटना लाया जायेगा, जहां कृत्रिम पैर के प्रत्यर्पण के बाद बिटिया अपने दोनों पैरों से चल पायेगी और शिक्षित व विकसित बिहार के निर्माण में अपनी भागीदारी निभायेगी.''
बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद भी मदद का बढ़ाया हाथ
इसके बाद जमुई के जिलाधिकारी अविनाश कुमार सीमा से मिलने के लिए उसके घर गये. उन्होंने दिव्यांग सीमा को तत्काल ट्राइ साइकिल भेंट की. अशोक चौधरी ने कहा कि बच्ची के यथोचित इलाज की व्यवस्था की जा रही है. वहीं, बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद भी बच्ची की मदद को आगे आये हैं. उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि ''अब यह अपने एक नहीं दोनो पैरों पर कूद कर स्कूल जायेगी. टिकट भेज रहा हूं, चलिए दोनों पैरों पर चलने का समय आ गया.''
निरक्षर मां-बाप की बेटी होने के बावजूद सीमा को पढ़ने का जुनून
मालूम हो कि चौथी कक्षा में पढ़नेवाली 10 वर्षीया छात्रा सीमा गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ती है. पांच भाई-बहनों में सीमा एक पैर होने के बावजूद किसी पर बोझ नहीं बनी है. मजदूरी करनेवाले निरक्षर माता-पिता होने के बावजूद सीमा को पढ़ने-लिखने का जुनून है.
पढ़-लिखकर शिक्षक बनना चाहती है सीमा
सीमा का सपना पढ़-लिखकर शिक्षक बनने का है. मालूम हो कि सीमा दो साल पूर्व गांव में ही एक सड़क हादसे का शिकार हो गयी थी. वहीं, स्कूल के शिक्षकों का कहना है कि सीमा एक पैर से ही स्कूल आती है. अपना काम स्वयं करती है. मां बेबी देवी ने बताया कि गरीबी के कारण वे बेटी का किताब भी नहीं खरीद पाते. स्कूल के शिक्षक मुहैया कराते हैं.