काफी संख्या में किसान ऐसे गन्ने की खेती कर रहे
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घाटे का सौदा बनीं गन्ने की अस्वीकृत प्रजातियां
काफी संख्या में किसान ऐसे गन्ने की खेती कर रहे किसानों को जागरूक करने के लिए शुरू की हुई मुहिम गोपालगंज : गन्ने की अस्वीकृत प्रजातियां अब किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही हैं. ऐसे गन्ने से चीनी परता कम मिलने के कारण चीनी मिलों ने किसानों से इनको न बोने की […]
किसानों को जागरूक करने के लिए शुरू की हुई मुहिम
गोपालगंज : गन्ने की अस्वीकृत प्रजातियां अब किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही हैं. ऐसे गन्ने से चीनी परता कम मिलने के कारण चीनी मिलों ने किसानों से इनको न बोने की अपील की है. साफ कहा है कि आनेवाले समय में नहीं खरीदेंगे. कई प्रजातियों में रोग व कीटों के प्रकोप के कारण विभाग ने इनको अस्वीकृत कर दिया है.
सरकार स्तर से इनका रेट भी कम निर्धारित किया गया है. उत्तर बिहार में समस्या इसलिये गंभीर है, क्यों कि जाने-अनजाने में काफी संख्या में किसान ऐसे गन्ने की खेती से जुड़े हैं.
यह हैं अस्वीकृत प्रजातियां : कोसे 92423- (कोयंबटूर- सेवरही) नामक यह गन्ने की प्रजाति सेवरही शोध संस्थान से 1992 में विकसित की गयी थी. उस समय मौजूद प्रजातियों में यह सबसे अधिक उपज देनेवाली थी. इसका पौधा गन्ना व पेड़ी दोनों उत्पादन के लिहाज से बेहद फायदेमंद थे. जगह-जगह सूखने व रोगग्रस्त होने के कारण दो साल पहले इस पर रोक लगा दी गयी. कोशा- 91269(कोयंबटूर-शाहजहांपुर) नामक प्रजाति 1991 में शाहजहांपुर शोध संस्थान से विकसित की गयी थी. यूपी की बॉर्डर से जुड़े होने के कारण किसान इन प्रजातियों को लाकर बोने में लगे थे. इससे भी काफी अच्छी उपज मिलती थी. दो साल पहले इसमें जगह-जगह कीट लगने व रोगग्रस्त होने की शिकायत मिलने के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया. कोपी 9302- (कोयंबटूर- पूसा) यह पूसा से 1993 में विकसित की गयी प्रजाति थी. जलवायु के लिहाज से यह बेहद उपयुक्त थी. एक तो इससे चीनी परता बेहद कम मिलता था, दूसरे यह भी रोगग्रस्त होने लगी. इसके बाद प्रतिबंधित कर दिया गया.
क्या कहते हैं अधिकारी
गन्ना किसानों को अस्वीकृत प्रजातियों को बोने से होनेवाले नुकसान के साथ ही स्वीकृत प्रजातियों की खासियत बताते हुए उनका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. चीनी मिलों ने भी साफ कहा है कि वह आनेवाले दिनों में अस्वीकृत प्रजातियां नहीं लेंगी. सरकार ने भी रेट कम तय रखा है. किसानों को चाहिए कि हर हाल में स्वीकृत प्रजातियों की खेती करें.
पीआरएस पाणिकर, महाप्रबंधक, विष्णु सुगर मिल , गोपालगंज
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