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नोट की कमी से बैंकों का बिगड़ रहा बैलेंस

बैंकों में हर रोज लंबी-लंबी लाइनें लग रहीं हैं. बैंक रोजाना करोड़ों रुपये बांट रहे हैं लेकिन इसके बावजूद लाइन कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है. गोपालगंज : कैश के लिए बैंक पूरी तरह से आरबीआइ पर निर्भर हैं. बैंक सभी को कैश उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं. हालांकि व्यवसायियों ने […]

बैंकों में हर रोज लंबी-लंबी लाइनें लग रहीं हैं. बैंक रोजाना करोड़ों रुपये बांट रहे हैं लेकिन इसके बावजूद लाइन कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है.
गोपालगंज : कैश के लिए बैंक पूरी तरह से आरबीआइ पर निर्भर हैं. बैंक सभी को कैश उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं. हालांकि व्यवसायियों ने अपने चालू खाते में छोटे नोट जमा करने शुरू कर दिये हैं लेकिन बचत खाते में पैसा नहीं के बराबर है. करंट अकाउंट में जितना पैसा गत महीनों तक जमा होता था. अभी उसका 10 फीसदी ही आ रहा है. बाजार में आयी गिरावट अब धीरे- धीरे दूर हो रही है. बैंकों की अन्य बचत खातों में रुपया बिल्कुल भी जमा नहीं हो रहा है.
इनमें एफडी, केवीपी, एनएससी, आरडी, पीपीएफ आदि शामिल हैं. हालांकि दिसंबर में आरडी खातों में रुपये जमा होने शुरू हो गये हैं. बैंकों में कैश का संकट बरकरार रहा. दो हजार से पांच हजार रुपये तक का भुगतान कर पाने में सक्षम थे. कैश का संकट ग्रामीण बैंक से लेकर आंध्रा बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, एचडीएफसी, यूनियन बैंक, आइडीबीआइ, कारपोरेशन बैंक समेत अधिकतर बैंकों में कैश के संकट से ग्राहक जूझते रहे. सरकार की सख्ती के बाद से बचत और जन- धन खातों में जमा होनेवाली मोटी धनराशि भी अब रुक गयी है. जन-धन खातों में ही सैकड़ों करोड़ रुपये जमा करा दिये गये. गोपालगंज में मोटे अनुमान के अनुसार जन-धन खातों में 360 करोड़ रुपये ज्यादा जमा हुए. लेकिन कार्रवाई की घोषणा के बाद अब यह सिलसिला रुक गया है.
क्या कहते हैं अधिकारी
हर दिन रुपये जमा करनेवालों की संख्या कम हो रही है. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि बैंकों से छोटे नोट जा तो रहे हैं, लेकिन वापस नहीं आ रहे हैं. जमा और निकासी का अंतर एक के मुकाबले 10 गुने का है, जिसके चलते व्यवस्था सुधरने में दिक्कत आ रही है.
अनिल कुमार, एलडीएम, गोपालगंज
गोपालगंज : ग्राहक बड़ी उम्मीद लेकर बैंक काउंटर पर पहुंचे लेकिन निराशा ही हाथ लगी. लगभग हर छोटी शाखा से आधा-अधूरा ही भुगतान किया गया.
उपलब्ध रुपये के आधार पर शाखाओं ने ग्राहक संख्या का अंदाजा लगा कर एक निश्चित राशि निर्धारित की और सभी को उतने का ही भुगतान किया गया. विड्राल या चेक भरते समय कर्मचारी उन्हें सचेत भी करते रहे कि इससे ज्यादा धनराशि न भरें. जितनी भीड़ बैंक काउंटर पर थी, उससे कम भीड़ एटीएम पर नहीं रही. शुक्रवार को ज्यादातर बैंकों के अधिकतर एटीएम चले लेकिन शाम होते-होते जवाब दे गये. केवल एसबीआइ का एटीएम व सेंट्रल बैंक के एटीएम देर रात तक चलते रहे.
रुपये के लिए मारामारी : आरबीआइ से मांग के अनुरूप रुपये न मिलने के कारण बैंकों के सामने लगातार संकट बढ़ता जा रहा है. शुक्रवार को पीएनबी, केनरा बैंक, आइडीबीआइ, बैंक आॅफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, कारपोरेशन बैंक, इलाहाबाद बैंक को कुछ रुपये आये. लेकिन ये रुपये इतने कम हैं कि एक दिन का भी काम नहीं चलेगा. रुपये की कमी से उपभोक्ताओं को संतुष्ट कर पाना बैंकों लिए मुश्किल होता जा रहा है. लगातार निर्धारित समय से अधिक देर तक काम करने के बावजूद बैंक कर्मियों को उपभोक्ताओं के आक्रोश का शिकार होना पड़ रहा है. सर्वाधिक संकट ग्रामीण बैंक में है. इसकी ज्यादातर शाखाएं ग्रामीण अंचलों में हैं जिनसे बड़ी संख्या में किसान व मनरेगा मजदूर जुड़े हुए हैं. इस बैंक की अधिकतर शाखाएं बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी है.
ग्रामीण शाखाओं से सिर्फ निकासी : शहरी व अर्धशहरी क्षेत्रों की शाखाएं तो व्यापारियों या अन्य उपभोक्ताओं से रुपये जमा करवा कर किसी तरह काम चला रही हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों की शाखाओं से सिर्फ निकासी के लिए इंतजार हो रहा है.
न तो वहां बाजार है और न ही बड़े व्यापारी, जो अच्छी-खासी रकम बैंक में जमा कर सकें. इस वजह से वे केवल से भेजे गए नोट पर निर्भर हैं. यहां किसी भी बैंक के पास इतने नोट नहीं हैं कि वे ग्रामीण शाखाओं को पर्याप्त रुपये भेज सकें.
बैंकों ने की टोकन व्यवस्था
भीड़ के मद्देनजर ज्यादातर बैंकों ने टोकन व्यवस्था लागू कर दी है. ताकि लोग अपना टोकन लेकर देख लें कि कितने समय बाद उनका नंबर आयेगा और तब तक अपना कोई दूसरा काम निबटा लें.
निर्धारित समय के आसपास आकर बैंक में जमा-निकासी कर दें. इसलिए बैंकों में बहुत भीड़ नहीं दिख रही है लेकिन काम में कोई कमी नहीं आयी है. शुक्रवार को भी सुबह से लेकर देर रात तक बैंक कर्मी काम निबटाने में लगे रहे.

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